वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच ने आज कहा कि भारत में ऋण पुनर्गठन के कदम से परिसंपत्ति गुणवत्ता को लेकर पारदर्शिता में कमी आएगी और कोष उगाही की राह में समस्याएं पैदा होंगी।
ऋण पुनर्गठन की अनुमति देने वाली भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नीति से बैंकों के लिए कैपिटल बफर तैयार करने का विकल्प खुल सकता है। फिच रेटिंग्स ने कहा है कि लेकिन यह 2010-2016 में अपनाई गई उस रणनीति की याद दिलाता है जिससे बैंकों के लिए समस्याएं बढ़ गई थीं।
व्यापक रूप से ऋण पुनर्गठन की अनुमति देने के भारत के 2010-2016 का अनुभव खराब क्रियान्वयन और कमजोर निगरानी से जुड़ा हुआ था।
अब 2020 में, ऋण पुनर्गठन की अनुमति ‘स्टैंडर्ड परिसंपत्तियों’ के तौर पर चिह्नित होगी।
मौजूदा परिवेश में कोष उगाही चुनौतीपूर्ण बनी हुई है। नई नीति से परिसंपत्ति गुणवत्ता को लेकर पारदर्शिता में कमी आएगी जिससे पूंजी उगाही की राह कुछ हद तक प्रभावित हो सकती है।
फिच ने कहा है कि निजी निवेशक सरकार के स्वामित्व वाले ऋणदाताओं में हिस्सेदारी बिक्री में भागीदारी को लेकर तब तक अनिच्छुक बने रह सकते हैं जब तक उनकी बैलेंस शीट पर महामारी का प्रभाव स्पष्ट नहीं हो जाता।