वाणिज्यिक बैंकों ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से सूक्ष्म, मझोले एवं लघु उद्योगों (एमएसएमई) के कर्ज को गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की श्रेणी में डालने के नियम आसान बनाने का अनुरोध किया है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर फैलने से रोकने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने जो लॉकडाउन और प्रतिबंध लगाए हैं, उनसे इस क्षेत्र पर बड़ा दबाव पड़ गया है।
बैंकिंग उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कहा कि बैंकिंग नियामक से एमएसएमई क्षेत्र में कर्ज को एनपीए मानने के लिए मौजूदा 90 दिन की अवधि को बढ़ाकर 180 दिन करने का अनुरोध किया गया है। एक बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक के शीर्ष अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि एमएसएमई के लिए एनपीए नियमों में बदलाव करने की मांग की जा रही है ताकि उसके कर्जों को एनपीए की श्रेणी में डालने के लिए मौजूदा 90 दिन के बजाय 180 दिन की अवधि लागू की जपाए। बैंकरों का कहना है कि एमएसएमई क्षेत्र पहले से ही दबाव में है और कोरोना की दूसरी लहर के कारण उसके लिए हालात बहुत मुश्किल हो जाएंगे।
अधिकारी के अनुसार नियमों में दो साल के लिए या स्थिति में सुधार होने तक ढील दी जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘बेसल-3 दिशानिर्देशों के अनुसार सभी संप्रभु राष्ट्रों के पास क्षेत्र के हिसाब से एनपीए नियमों में लचीलापन लाने की सुविधा है। लेकिल आरबीआई रूढि़वादी बना हुआ है क्योंकि उसे लगता है कि इस तरह हमारे देश की रेटिंग में सुधार हो सकता है। लेकिन नियमों में प्रावधान है कि जरूरत पडऩे पर देश एनपीए नियम पर विचार कर सकते हैं।’
केंद्रीय बैंक ने बुधवार को कोरोना की दूसरी लहर केबीच अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले प्रभाव कम करने के लिए कुछ उपायों की घोषणा की थी। इसमें एमएसएमई क्षेत्र के लिए कर्ज पुनर्गठन की अनुमति दी गई है, लेकिन इसका लाभ उन्हीं इकाइयों को मिलेगा, जिन्होंने पिछले साल इस योजना का फायदा नहीं लिया था। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार मध्यम आकार की 3,400 कंपनियां कर्ज पुनर्गठन की पात्र होंगी क्योंकि उनका बकाया कर्ज 25 करोड़ रुपये से कम है और वे आरबीआई द्वारा तय मानदंडों को पूरा करती हैं। क्रिसिल ने कहा कि पुनर्गठन से कंपनियों को कुछ समय के लिए तरलता यानी नकदी संबंधी राहत मिल जाएगी।
बैंकरोंं का कहना है कि कर्ज पुनर्गठन की अनुमति देने के बाद भी रिजर्व बैंक एनपीए के नियमों में ढील दे सकता है। एक अन्य बैंकर ने कहा कि आरबीआई के पास एनपीए नियमों में ढील देने के प्रस्ताव पर विचार करने की गुंजाइश है।
बैंकरों का कहना है कि कर्ज पुनर्गठन में दिक्कत यह है कि बैंकों को कर्ज की 10 फीसदी रकम अलग रखनी ही होगी। आम तौर पर कर्ज पुनर्गठन के समय बैंकों को 15 से 20 फीसदी रकम अलग रखनी होती है। लेकिन केंद्रीय बैंक द्वारा पिछले साल घोषित एकबारगी कर्ज पुनर्गठन योजना के तहत बैंकों को 10 फीसदी रकम अलग रखने के लिए कहा गया था। बैंकरोंं का कहना है कि 10 फीसदी रकम के साथ कर्ज पुनर्गठन से ज्यादा राहत नहीं मिलेगी।