सरकार कोविड-19 महामारी को देखते हुए मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के तीन बाहरी सदस्यों का कार्यकाल कुछ अवधि के लिए बढ़ा सकती है। इसके साथ ही समिति के लिए नए बाहरी सदस्यों की तलाश भी जारी है। सूत्रों ने इस बात की जानकारी दी है। समिति के तीन बाहरी सदस्यों के तौर पर भारतीय सांख्यिकी संस्थान के प्रोफेसर चेतन घाटे, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की निदेशक पमी दुआ और भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद के एच ढोलकिया की नियुक्ति 22 सितंबर 2017 को की गई थी। इन्हें चार वर्षों की अवधि या अगले आदेश तक नियुक्त किया गया था।
एमपीसी के सदस्यों में आरबीआई के तीन लोग भी शामिल हैं। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास एमपीसी की अध्यक्षता करते हैं, जबकि डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र और कार्यकारी निदेशक मृदुल के सग्गर दो अन्य सदस्य हैं। इस पूरी प्रकिया की जानकारी रखने वाले एक सरकारी सूत्र ने कहा,’हम बैंकिंग नियामक की सलाह के साथ विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। कुछ सदस्यों का मानना है कि बाहरी सदस्यों का कार्यकाल थोड़ी अवधि के लिए बढ़ाया जाना चाहिए।’
हालांकि सूत्र ने यह नहीं बताया कि कार्यकाल कितनी अवधि के लिए बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस फिलहाल कार्यकाल बढ़ाने को एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है और इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
समिति के नए बाहरी सदस्यों की तलाश अभी जारी है। सूत्र ने कहा कि अगर हमें अनुभवी एवं योग्य उम्मीदवार मिल जाते हैं तो निश्चित तौर पर हम उन्हें समिति का हिस्सा बनाएंगे। एमपीसी में निर्णय बहुमत से लिया जाता है और हरेक सदस्य के पास एक वोट देने का अधिकार है। हालांकि मत बराबर होने पर आरबीआई गवर्नर अंतिम निर्णय पर पहुंचने के लिए एक अतिरिक्त वोट डाल सकते हैं।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पिछले चार वर्षों के दौरान एमपीसी ने अच्छा काम किया था और महंगाई 2 से 6 प्रतिशत के बीच रखने में सफल रही, लेकिन कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को मदद देने के लिए में थोड़ी ढील देनी पड़ी। इसका नतीजा यह हुआ कि महंगाई में धीरे-धीरे तेजी आने लगी। हालांकि महंगाई में तेजी एक वजह आपूर्ति तंत्र में आई बाधा भी है। खासकर खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति में आई बाधा से महंगाई दर ऊपर भागी है और नीतिगत दरों में बदलाव कर खाद्य महंगाई पर काबू नहीं पाया जा सकता है।
नीतिगत नीति में दरों में बदलाव मुख्य रूप से मांग को ध्यान में रखकर किया जाता है। फरवरी 2019 के बाद एमपीसी ने विभिन्न चरणों के जरिये नीतिगत दरों में 250 आधार अंक की कमी की है। हालांकि समिति ने दरों में कटौती की और गुंजाइश नहीं देखते हुए 4 से 6 अगस्त को नीतिगत समीक्षा में दरें अस्थिर रखी गईं।
एमपीसी के बाहरी सदस्यों के कार्यकाल विस्तार पर भेजे गए ई-मेल का वित्त मंत्रालय एवं आरबीआई का कोई जवाब नहीं आया।