बैंकिंग व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी बनी हुई है और भारतीय रिजर्व बैंक इसे सामान्य करने की जल्दबादी में नहीं है। ज्यादा नकदी सामान्यतया चिंता की बाद होती है, क्योंकि इससे महंगाई बढ़ सकती है। लेकिन अभी स्थिति अलग है। इससे महंगाई बढऩे के बजाय बड़ी मात्रा में नकदी से नीतिगत दरों के प्रेषण और सरकार को सस्ती दरों पर उधारी मिलने में मदद मिल रही है।
ऐसी स्थिति में विश्लेषक यह उम्मीद कर रहे हैं कि अतिरिक्त नकदी की स्थिति अगले साल तक जारी रहेगी, जब तक कि अर्थव्यवस्था गति नहीं पकड़ लेती और क्षमता का उपयोग बढ़कर कम से कम 80 प्रतिशत नहीं हो जाता, जो अभी 70 प्रतिशत से नीचे है।
केयर रेटिंग में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘अतिरिक्त नकदी से सरकार को उधारी लेने में मदद मिल रही है। दरअसल यह राजस्व में कमी का विकल्प बन गया है और इससे महंगाई नहीं बढ़ेगी क्योंकि हम कम खर्च कर रहे हैं और क्षमता का उपयोग कम हो रहा है, जिसमें जरूरत पडऩे पर सुधार किया जा सकता है।’
सरकार की सालाना उधारी बढ़कर 12 लाख करोड़ रुपये हो गई है, जबकि आखिर तक के लिए संभावित अतिरिक्त उधारी की गणना अभी बाकी है। इसका आधा पहले ही लिया जा चुका है, जो व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी की वजह से हो गया। इससे रिजर्व बैंक का ब्याज दरें कम रखने का मकसद भी पूरा हो रहा है।
इंडसइंड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री गौरव कपूर के मुताबिक अतिरिक्त नकदी से महंगाई बढऩे की संभावना कम है क्योंकि अर्थव्यवस्था का संचालन क्षमता से कम पर हो रहा है और मांग बहुत कमजोर है। इसके बजाय व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी से निश्चित रूप से उधारी की लागत कम रखने में मदद मिल रही है। कपूर ने कहा, ‘संक्षेप में कहें तो कम दरों व नकदी के समर्थन से वित्तीय स्थिरता को टालने में मदद मिल रही है।’
सिकुड़ती अर्थव्यवस्था में सामान्य अवधारणाएं हमेशा सही नहीं होती हैं। भारतीय स्टेट बैंक के समूह मुख्य सलाहकार सौम्यकांति घोष ने कहा, ‘लोग नकदी रोक रहे हैं। इससे धन बढऩा ठप हो गया है। ऐसी परिस्थितियोंं में नकदी से महंगाई पर असर पडऩे की संभावना तब तक नहीं है, जब तक मांग नहीं बढऩे लगती।’