बैंकों को हाल के वर्षों के रीपो दर में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा की गई कटौती का लगातार लाभ मिल रहा है। उनका ब्याज मार्जिन (कोषों की लागत और उधारी दर के बीच अंतर) वित्त वर्ष 2021 में 375 आधार अंक की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया, क्योंकि कोष की लागत में गिरावट उधारी दरों में कमी से ज्यादा हो गई। बिजनेस स्टैंडर्ड के नमूने में शामिल 31 सूचीबद्घ बैंकों की संयुक्त ब्याज आय वित्त वर्ष 2021 में 0.6 प्रतिशत घट गई थी, जबकि उनका ब्याज खर्च (जमाकर्ताओं को चुकाया जाने वाला ब्याज) पिछले वित्त वर्ष 8.5 प्रतिशत घट गया था जिससे उनके ब्याज मार्जिन में वृद्घि को बढ़ावा मिला।
आंकड़े से पता चलता है कि मार्जिन वृद्घि बैंकों के लिए दीर्घावधि आधारित बदलाव है। पिछले पांच वर्षों में, बैंकों का ब्याज मार्जिन वित्त वर्ष 2016 के 3.17 प्रतिशत से 59 आधार अंक बढ़कर पिछले वित्त वर्ष 3.75 प्रश्तिात हो गया।
एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, और ऐक्सिस बैंक जैसे निजी क्षेत्र के बैंकों ने भी ऊंचा मार्जिन दर्ज किया। उनका ब्याज मार्जिन वित्त वर्ष 2021 में बढ़कर 423 आधार अंक हो गया, जो एक साल पहले 412 आधार अंक था। इस बीच, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) ने वित्त वर्ष 2021 में 349 आधार अंक का मार्जिन दर्ज किया, जो एक साल पहले 306 आधार अंक था।
विश्लेषकों ने मार्जिन वृद्घि के लिए आरबीआई की रीपो दर और बाजार में उधारी दर के बीच अंतर को जिम्मेदार बताया है। नारनोलिया सिक्योरिटीज में मुख्य निवेश अधिकारी शैलेंद्र कुमार का कहना है, ‘रीपो दर और बेंचमार्क कॉरपोरेट उधारी दर के बीच अंतर अब करीब 300 आधार अंक की सर्वाधिक ऊंचाई पर है। इसके परिणामस्वरूप, जहां बैंकों की कोष लागत में भारी कटौती हुई है, वहीं उनकी उधारी दरें हाल के वर्षों में मामूली बढ़ी हैं। इससे बैंकों के लिए ब्याज मार्जिन बढ़ा है।’
बैंकों की औसत कोष लागत वित्त वर्ष 2021 में एक साल पहले के 4.97 प्रतिशत से करीब 50 आधार अंक घटकर 4.48 प्रतिशत रह गई। समान अवधि में उनकी अग्रिमों और निवेश पर प्रतिफल सिर्फ 19 आधार अंक तक घटकर 8.23 प्रतिशत रह गया था।
पिछले पांच वर्षों में, कोष की औसत लागत वित्त वर्ष 2016 के 6.06 प्रतिशत से 157 आधार अंक तक घटी है। समान अवधि में उनकी अग्रिमों और निवेश पर प्रतिफल सिर्फ 99 आधार अंक तक घटा है।
हालांकि विश्लेषकों का कहना है कि बैंक ऋण वृद्घि में सुस्ती की वजह से ऊंचे मार्जिन का पूरा फायदा उठाने में सक्षम नहीं रहे हैं। जेएम फाइनैंस इंस्टीट्यूशनल इक्विटी के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य रणनीतिकार धनंजय सिन्हा कहते हैं, ‘अग्रिमों और वाणिज्यिक ऋणों पर अंतर 500 आधार अंक के साथ ऊंचा है, लेकिन बैंक कंपनियों और रिटेल सेगमेंटों से ऋण मांग के अभाव की वजह से सरकारी बॉन्डों और लिक्विड फंडों जैसी कम प्रतिफल वाली परिसंपत्तियों में अपने कोष का करीब 70-80 प्रतिशत निवेश कर रहे हैं।’
वित्त वर्ष 2021 में बैंकों की संयुक्त अग्रिम महज 5.7 प्रतिशत बढ़ीं, और पिछले 12 वर्षों में यह सबसे धीमी गति है। अग्रिम वित्त वर्ष 2020 में 10.3 प्रतिशत तक बढ़ीं। तुलनात्मक तौर पर, जमाओं में पिछले वित्त वर्ष 11.8 प्रतिशत तक का इजाफा दर्ज किया गया था और बॉन्डों तथा लिक्विड परिसंपत्तियों में बैंकों का निवेश 17.3 प्रतिशत तक बढ़ा था। विश्लेषकों को आगे चलकर मार्जिन में गिरावट आने की आशंका है। धनंजय कहते हैं, ‘बैंकिंग उद्योग में ब्याज अंतर चरम पर है और अब इसमें कमी आ सकती है।’ अन्य विश्लेषक भी मुद्रास्फीति में तेज वृद्घि की वजह से आरबीआई द्वारा संभावित दर वृद्घि से बैंकों की आय पर दबाव पडऩे की आशंका जता रहे हैं।