भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा है कि यह जरूरी है कि सूक्ष्म वित्त (एमएफआई) क्षेत्र वृद्घि करने के लिए वित्तीय समावेशन के अपने मूल उद्देश्य को न भूले। उन्होंने कहा कि कर्जदारों द्वारा बहुत अधिक कर्ज लिए जाने और उसकी वसूली के लिए एमएफआई की ओर से उठाए जाने वाले अनुचित कदमों से वर्षों में अर्जित उसकी उपलब्धियां समाप्त हो सकती हैं।
राव वित्तीय समावेशन का पुनर्रुद्घार पर आयोजित सा-धन राष्ट्रीय सम्मेलन में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, ‘अत्यधिक ऋणग्रस्तता के नकारात्मक परिणामों, वसूली के लिए कठोर तरीकों को अपनाने और ग्राहकों को परेशान करने से उत्पन्न होने वाले खराब नतीजों से एमएफआई के तंत्र पर बुरी तरह से असर पड़ेगा।’ सा-धन सूक्ष्म ऋणदाताअें के एक स्व-नियामक संगठन है।
राव ने कहा, ‘उच्च संपत्ति वृद्घि और प्रतिफल पाने के लिए ऋणदाताओं को असावधान नहीं होना चाहिए। एमएफआई की ओर प्रतिकूल कार्रवाई के जरिये कोई भी चूक दशकों में अर्जित उसकी साख को खत्म कर सकती है और यह क्षेत्र उसको गंवाना सहन नहीं कर पाएगा।’ राव ने कहा कि लाभ के लिए सूक्ष्म ऋणों की जड़ों और इसकी शुरुआत के उद्देश्यों को नहीं भूलना चाहिए।
डिप्टी गवर्नर ने कहा कि ऋणदाताओं को निश्चित तौर पर स्व-पर्याप्तता और वित्तीय स्थिरता को अपने उद्देश्यों के रूप में लेना चाहिए जबकि सूक्ष्म वित्त के सामाजिक और कल्याण के लक्ष्यों की कीमत पर लाभ कमाने को प्रमुखता देने से हो सकता है कि उपयुक्त परिणाम नहीं मिले।
रिजर्व बैंक ने जून में ऋण-आमदनी अनुपात की एक सीमा का प्रस्ताव दिया था और कहा था कि ऋण इस तरीके से दिया जाना चाहिए कि किसी परिवार के लिए ब्याज के भुगतान और बकाये ऋण के मूलधन के पुनर्भुगतान की रकम कभी भी उसकी आमदनी के 50 फीसदी से ऊपर नहीं जाए।