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क्रेडिट कार्ड पर लगने वाले शुल्क में कमी की संभावना

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 4:30 PM IST

  क्रेडिट कार्ड से लेन-देन पर लगाए जाने वाले शुल्क में कमी आने की संभावना है, चाहे यह केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप से हो, या किसी अन्य तरीके से। वहीं यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) पर फिर से शुल्क लगाने के फैसले के असर को बैंकों के लिए कार्ड पर शुल्क घटाकर कम किया जा सकता है। रिजर्व बैंक के चर्चा पत्र पर उद्योग जगत के हिस्सेदारों ने यह प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने अभी कोई रुख नहीं तय किया है, ऐसे में मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) पर ओवरहैंग तब तक जारी रह सकता है, जब तक कि रिजर्व बैंक के अंतिम दिशानिर्देश नहीं आते हैं। एमडीआर वह दर है, जो भुगतान के विभिन्न तरीकों पर भुगतान प्रॉसेसिंग शुल्क के रूप में कारोबारी से लिया जाता है। 
भुगतान की विभिन्न प्रणालियों पर शुल्क को लेकर आरबीआई की ओर से बुधवार को जारी चर्चा पत्र में एक नीति बनाने की कवायद की गई है, जिससे विभिन्न भुगतान सेवाओं या गतिविधियों जैसे यूपीआई, आईएमपीएस (तत्काल भुगतान सेवा), एनईएफटी (राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर), आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट), और डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, प्रीपेड पेमेंट इंस्ट्रूमेंट (पीपीआई) के लिए शुल्क का व्यवस्थित ढांचा तैयार हो सके। इस चर्चा पत्र पर 3 अक्टूबर के पहले फीडबैक और सुझाव मांगा गया है। केंद्रीय बैंक ने विभिन्न हिस्सेदारों से विभिन्न स्तर पर शुल्क लगाने की संभावना पर फीडबैक मांगा है, जो विभिन्न राशि की मात्रा के आधार पर लग सकता है। और अगर यूपीआई ट्रांजैक्शन पर शुल्क लिया जाता है तो क्या लेन देन के मूल्य के आधार पर एमडीआर लगाया जा सकता है या एमडीआर के रूप में एक नियत ली जानी चाहिए? साथ ही इस पर भी फीडबैक मांगा गया है कि क्या रिजर्व बैंक शुल्कों के बारे में फैसला करेगा या अगर शुल्क लगाया जाता है तो बाजार को इसकी दरें तय करने दिया जाए। पीडब्ल्यूसी इंडिया में लीडर-पेमेंट्स ट्रॉसफॉर्मेशन और पार्टनर मिहिर गांधी ने कहा, ‘उद्योग के हिस्सेदार यूपीआई पर एक बार फिर शुल्क लगाए जाने के बारे में विचार कर रहे हैं क्योंकि इस तरह के लेन-देन पर लागत आती है।’ गांधी ने कहा, ‘अगर शुल्क लगाया जाता है तो उद्योग के लिए बेहतर होगा। बढ़ते लेन-देन को देखते हुए इससे बैंकों को बेहतर बुनियादी ढांचा बनाने में मदद मिलेगी। दीर्घावधि के हिसाब से यह करना बेहतर है क्योंकि हमेशा के लिए सेवाएं मुफ्त में नहीं दी जा सकती हैं। शुरुआत में रिजर्व बैंक और एनपीसीआई शुल्क ढांचे को लेकर कुछ नियम बना सकता है।’
ग्रांट थॉर्नटन भारत में पार्टनर, फाइनैंशियल सर्विसेज कंसल्टिंग जयकृष्णन जी ने कहा, ‘यूपीआई लेन-देन पर शुल्क स्वाभाविक है, क्योंकि इसके प्रॉसेसिंग पर लागत आती है। रिजर्व बैंक के लिए आदर्श स्थिति यह होगी कि इसकी ऊपरी सीमा तय कर दे, जिससे ग्राहकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके, लेकिन दरों को विनियमित न करे। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के माध्यम से सही दरें बाजार तय करेगा। यूपीआई के सतत विकास के लिए शुल्कों का दीर्घावधि के हिसाब से सकारात्मक असर होगा, हालांकि कम अवधि या मध्यावधि के हिसाब से व्यापारियों पर इसका नकारात्मक असर होगा।’

First Published : August 19, 2022 | 11:31 AM IST