कर्जदाताओं को बेहद छोटे कर्जों के भुगतान में 29 दिन तक की देरी होने पर किसी तरह का जोखिम कम करने के लिए करीबी निगाह रखने की जरूरत है। ऐसा करने से लेनदारों की परिसंपत्ति गुणवत्ता में गिरावट आने का खतरा कम होगा।
कोविड महामारी ने मार्च 2020 से ही माइक्रो-फाइनैंस क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया हुआ है। आपूर्ति शृंखला एवं कारोबार परिचालन में आने वाली बाधाओं के अलावा बहुत छोटे कर्ज लेने वाले निम्न आय वर्ग पर भी इसने गहरा असर डाला है।
लघु उद्योगों को वित्तीय समर्थन देने के लिए गठित बैंक सिडबी के मुताबिक दिसंबर 2020 की तुलना में मार्च 2021 में स्थिति थोड़ी सुधरी थी। खासकर सक्रिय कर्जों की अदायगी के मामले में हालात बेहतर हुए थे। बैंक के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक शिवसुब्रमण्यन रमन्ना कहते हैं कि 90 दिनों से अधिक समय तक कर्ज नहीं चुकाने की दर दिसंबर 2020 में 4.96 फीसदी हो गई थी लेकिन मार्च 2021 में यह घटकर 4.12 फीसदी पर आ गई। यह माइक्रो-फाइनैंस क्षेत्र में हालात सुधरने के संकेत दर्शाता है।
सिडबी और इक्विफैक्स की तिमाही रिपोर्ट ‘माइक्रो-फाइनैंस प्लस’ बताती है कि इस क्षेत्र में 90 दिनों से अधिक की बकाया अवधि वाले कर्ज 31 मार्च 2020 को सिर्फ 0.86 फीसदी ही थे। कर्नाटक को छोड़कर बाकी सभी शीर्ष 10 राज्यों में यह अनुपात मार्च 2020 की तुलना में मार्च 2021 में बढ़ा ही है।
माइक्रो-फाइनैंस उद्योग का पोर्टफोलियो वित्त वर्ष 2020-21 में 18 फीसदी बढ़कर 2,49,277 करोड़ रुपये हो गया। समूचे उद्योग के सकल कर्ज पोर्टफोलियो में 80 फीसदी अंशदान इन 10 बड़े राज्यों का था जबकि पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा कर्ज बकाया था।
सिडबी की रिपोर्ट कहती है कि क्षेत्रवार बाजार हिस्सेदारी में कर्ज वितरण के लिहाज से पूर्व क्षेत्र का कुल ऋण वितरण में 45 फीसदी हिस्सा रहा और वह सबसे आगे रहा।