पिछले सप्ताह आयकर अपील न्यायाधिकरण ने एक बार फिर कहा कि करदाताओं को आयकर अधिनियम की धारा 143 (2) के तहत नोटिस छह महीने के भीतर भेजना अनिवार्य है। जब आयकर विभाग को किसी करदाता के आयकर रिटर्न में अनियमितताएं मिलती हैं तो वह करदाता को 143(1), 143(2) या 143(3) के तहत नोटिस भेजता है। पिछले कुछ दिनों में कई करदाताओं को ऐसे नोटिस मिले हैं। आम तौर पर जब किसी करदाता को आयकर विभाग से नोटिस मिलता है तो वह डर जाता है। लेकिन डरने या चिंता करने के बजाय उसे उपयुक्त कागजात के साथ अपना पक्ष रखना चाहिए।
धारा 143(1)
करदाता जिस वित्त वर्ष में रिटर्न दाखिल करता है, सेंट्रल प्रोसेसिंग सेंटर (सीपीसी), बेंगलूरु उस वित्त वर्ष से एक साल के भीतर धारा 143(1) के तहत उसका निपटारा कर देता है। एनए शाह एसोसिएट्स में पार्टनर गोपाल वोहरा बताते हैं, ‘सीपीसी, बेंगलूरु रिटर्न में दी जानकारी का मिलान करता है। रिटर्न में दिए आंकड़ों की गड़बड़ी और दावों की सत्यता की जांच की जाती है और स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) के दावों का मिलान फॉर्म 26एएस या फॉर्म 16 में उपलब्ध ब्योरे से किया जाता है। साथ ही रिटर्न में दी गई सूचना और कर ऑडिट में दी गई जानकारी का मिलान भी किया जाता है। इस धारा के तहत करदाता द्वारा दिखाई कर देनदारी और सीपीसी द्वारा तय की गई गणना की भी तुलना की जाती है। सीपीसी जब रिटर्न का निपटान करता है तो तीन बातें हो सकती हैं। पहली बात, रिटर्न बिना समायोजन के ही निपटा दिया जाता है। दूसरी बात, कर रिफंड तय कर रिटर्न का निपटान किया जा सकता है। तीसरी बात यह हो सकती है कि रिटर्न की जांच करने के बाद आयकर विभाग करदाता से अधिक कर की मांग करे या रिफंड की रकम को कम कर दे। वोहरा कहते हैं, ‘विभाग द्वारा आंकड़ों में की गई रद्दोबदल यदि सही नहीं लग रही तो करदाता त्रुटि दूर करने के लिए कह सकता है या तथ्यों के आधार पर अपील कर सकता है।’
धारा 143(2)
कर विभाग धारा 143(2) के तहत नोटिस भेज कर करदाता को यह बताता है कि रिटर्न में दी गई जानकारी की पड़ताल का फैसला किया गया है। यह जांच तीन तरह की होती है। सबसे पहले सीमित जांच (कंप्यूटर असिस्टेड स्कू्रटनी सलेक्शन या सीएएसएस के तहत) की जाती है, जिसमें नोटिस में उल्लिखित ङ्क्षबंदु ही जांचे जाते हैं। दूसरे विकल्प में विभाग कुछ खास आंकड़ों पर ध्यान देने के बजाय पूरी जांच कर सकता है। इसका सीधा मतलब होता है कि विभाग रिटर्न और संबंधित कागजात पूरी तरह खंगालना चाहता है। एक विकल्प मैनुअनल स्क्रूटिनी का हो सकता है। हर साल केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा जारी मानदंडों के आधार पर कुछ खास मामलों की मैनुअल स्क्रूटिनी होती है।
क्लियरटैक्स के मुख्य कार्याधिकारी अर्चित गुप्ता कहते हैं, ‘आयकर विभाग को जब लगता है कि किसी करदाता ने आय छिपाई है या अधिक नुकसान का दावा कर दिया है अथवा कम कर भरा है तो वह इस तरह की जांच कर सकता है।’ धारा 143(2) के तहत नोटिस मिलने के बाद करदाता को इसकी वैधता की जांच करनी चाहिए। गुप्ता कहते हैं, ‘इसका मतलब है कि नोटिस स्पष्ट रूप से उसके ही नाम पर होना चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि नोटिस पंजीकृत डाक से आया है या नहीं। सबसे अहम बात यह है कि जिस वर्ष में रिटर्न दाखिल कया गया है उसकी समाप्ति से छह महीने के भीतर नोटिस मिला है या नहीं।’ नोटिस मिलने के बाद करदाता को मांगी गई जानकारियों के अनुसार साक्ष्य एवं दस्तावेज सौंपने चाहिए।
नोटिस को गंभीरता से लेना चाहिए और इसका जवाब देना चाहिए। वोहरा कहते हैं, ‘नोटिस की अनदेखी करने या इसका जवाब नहीं देने पर 10,000 रुपये जुर्माना लगाया जा सकता है। करदाता जवाब नहीं देता है तो कर विभाग इसका एकतरफा निपटान कर सकता है।’
धारा 143(3)
समीक्षा प्रक्रिया पूरी होने के बाद धारा 143(3) के तहत आदेश जारी किया जाता है। आदेश में करदाता को किसी तरह के कर या ब्याज (अगर देनदारी बनती है तो) की जानकारी दी जाती है या किसी रिफंड के बारे में बताया जाता है। टैक्समैन के उप प्रबंध निदेशक नवीन वाधवा कहते हैं, ‘अगर करदाता आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह आयकर आयुक्त (अपील) के समक्ष अपील कर सकता है।’