प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो क्रेडिट: Pixabay
अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए पारस्परिक टैरिफ (reciprocal tariff) से देश में समुद्री और ट्रेड जोखिम इंश्योरेंस पर असर पड़ने की संभावना है। इससे इंश्योरेंस की दरें बढ़ सकती हैं। एक्सपर्ट्स के अनुसार, अमेरिकी सरकार ने इस टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है, जिससे भारत को बातचीत के लिए समय मिल गया है।
3 अप्रैल, 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले सामानों पर 26 प्रतिशत पारस्परिक टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। ट्रम्प के अनुसार, यह टैरिफ भारत द्वारा अमेरिकी आयात पर लगाए गए 52 प्रतिशत टैरिफ के जवाब में था। हालांकि, 11 अप्रैल को ट्रंप ने भारत सहित कई देशों पर इस टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया, ताकि बातचीत हो सके। इस दौरान चीन को छोड़कर सभी भागीदार देशों पर 10 प्रतिशत अतिरिक्त आयात टैरिफ लागू रहेगा।
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के अनुसार, यदि भारत के सामानों पर 26 प्रतिशत टैरिफ लागू होता है, तो यह देश के समुद्री और ट्रेड जोखिम इंश्योरेंस पर दबाव डालेगा।
बजाज एलियांज जनरल इंश्योरेंस के मुख्य तकनीकी अधिकारी अमरनाथ सक्सेना ने कहा, “अमेरिका को निर्यात होने वाले सामानों पर टैरिफ से कुछ अप्रत्यक्ष असर पड़ेगा। इंश्योरेंस सामान के मूल्य को कवर करता है, और अगर टैरिफ के कारण सामान का मूल्य बढ़ता है, तो समुद्री कार्गो इंश्योरेंस का प्रीमियम भी बढ़ेगा। दावों के लिए भुगतान की जाने वाली राशि भी बढ़ेगी। अगर टैरिफ लागू होता है, तो निर्यात की मात्रा स्थिर रहने पर समुद्री प्रीमियम बढ़ने की संभावना है।”
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 (अप्रैल-मार्च) में भारत के माल निर्यात का कुल मूल्य 0.08 प्रतिशत बढ़कर 437.42 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2023-24 में 437.07 बिलियन डॉलर था।
टैरिफ आमतौर पर व्यापार पैटर्न को प्रभावित करते हैं, जो ट्रेड फाइनेंस पर निर्भर होते हैं। ट्रेड फाइनेंस व्यापार क्रेडिट इंश्योरेंस से जुड़ा है। अगर टैरिफ लागू होता है, तो व्यापार प्रभावित होगा, जिससे विदेशी खरीदार उत्पादों पर छूट मांग सकते हैं। इससे निर्यातकों को सौदों पर दोबारा बातचीत करनी पड़ सकती है।
एक इंश्योरेंस एक्सपर्ट ने टैरिफ के संभावित प्रभाव के बारे में कहा कि निर्यातकों को वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी पड़ सकती है, जो उनके उत्पादों के लिए अपेक्षाकृत अस्थिर हो सकते हैं। इससे समय और प्रयास बढ़ेगा व जोखिम भी ज्यादा होगा। इन कारणों से, इंश्योरेंस एक्सपर्ट्स को इंश्योरेंस की मांग बढ़ने और दावों में बढ़ोतरी की उम्मीद है।
एक इंश्योरेंस एक्सपर्ट ने कहा, “इंश्योरेंस की मांग बढ़ेगी, और हमें पहले से ही पूछताछ में बढ़ोतरी दिख रही है। हालांकि, हम अभी भी यह मूल्यांकन कर रहे हैं कि टैरिफ लागू होने पर इसका कितना प्रभाव पड़ेगा।”
एडमे इंश्योरेंस ब्रोकर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिन क्षेत्रों का निर्यात मुख्य रूप से अमेरिकी मांग पर निर्भर है, उन्हें मार्जिन दबाव, नकदी प्रवाह की कमी और संभावित डिफॉल्ट का सामना करना पड़ सकता है। इससे व्यापार क्रेडिट बीमाकर्ताओं के लिए जोखिम बढ़ेगा, क्योंकि देरी के कारण दावे बढ़ सकते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर दावों का भुगतान विदेशी मुद्राओं में किया जाता है, तो रुपये के मूल्यह्रास से नुकसान का अनुपात बढ़ेगा। यह भारतीय सामान्य बीमाकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण सॉल्वेंसी मुद्दा है, खासकर उन लोगों के लिए जो पहले से ही कम अंडरराइटिंग मार्जिन के साथ काम कर रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी जोड़ा गया कि अनिश्चितता के कारण रीइंश्योरेंस प्रीमियम बढ़ने की संभावना है। साथ ही, बड़े ग्रुप सेल्प-इंश्योरेंस मॉडल की ओर बढ़ सकते हैं, ताकि लगातार अस्थिरता, बढ़ते प्रीमियम और सीमित कवरेज से बचा जा सके।