लिक्विड फंडों पर प्रतिफल पिछलीे कुछ महीनों के दौरान घटा है। 1 साल का प्रतिफल अब 3.4 प्रतिशत पर है, जो पिछले दो दशकों में सबसे कम है और कई बैंकों द्वारा सावधि जमाओं पर पेश अल्पावधि ब्याज दरों से नीचे है। इससे खासकर उन संस्थागत निवेशकों पर प्रभाव पड़ेगा जो ऐसे फंडों की परिसंपत्तियों में करीब 80 प्रतिशत तक का योगदान देते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि यह आरबीआई द्वारा अनुकूल कदमों के बाद व्यवस्था में आई अतिरिक्त तरलता से संभव हुआ है। आरबीआई ने रिवर्स रीपो दरें 3.35 प्रतिशत पर रखी हैं और इसका असर लिक्विड फंडों के प्रतिफल में दिख रहा है। मिरई ऐसेट एएमसी में मुख्य निवेश अधिकारी (फिक्स्ड इनकम) महेंद्र जाजू ने कहा, ‘प्रतिफल मौजूदा स्तर पर बने रहने की संभावना है क्योंकि यह स्पष्ट है कि आरबीआई दरें बढ़ाने के मूड में नहीं है। व्यवस्था में अतिरिक्त तरलता है और ऋण में तेजी नहीं आई है, और मैं नहीं मानता कि बाजार प्रतिफल अगले कुछ महीनों में ज्यादा तेजी से बढ़ेगा।’
हालांकि कंपनियों ने लिक्विड फंडों में अतिरिक्त नकदी निवेश बरकरार रखा है, क्योंकि ऐसे फंडों द्वारा पेश पर्याप्त नकदी संपूर्ण प्रतिफल के लिए महत्वपूर्ण है। सुंदरम एमएफ के प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्याधिकारी सुनील सुब्रमण्यम ने कहा, ‘लिक्विड फंडों द्वारा पेश दरें अभी भी काफी प्रतिस्पर्धी हैं, खासकर, एक महीने और उससे कम की सावधि जमा दरों के मुकाबले। इसके अलावा, बैंक 2 करोड़ रुपये और उससे अधिक की जमाओं के लिए कम दरों की पेशकश कर सकते हैं, और अक्सर समयपूर्व निकासी के लिए शुल्क तय कर सकते हैं। लिक्विड फंड आपको दर लागू होने के सात दिन के बाद किसी भी दिन पैसा निकालने की अनुमति देते हैं। इसलिए शुद्घ तौर पर लिक्विड फंड प्रतिफल अभी भी बैंक एफडी दरों से बेहतर बना रह सकता है।’
प्लान रुपी इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के संस्थापक अमोल जोशी का कहना है कि लिक्विड फंडों को मुख्य तौर पर प्रतिफल-आधारित योजनाओं के रूप में नहीं बेचा जाता है और वित्तीय सलाहकार दो कारणों से इनका समर्थन करते हैं। पहला है स्कूल शुल्क के भुगतान (6 महीने का बकाया) जैसी अल्पावधि जरूरतें पूरी करने या आपात रकम रखना। दूसरा है अतिरिक्त रकम रखना, जिसे सिस्टमैटिक ट्रांसफर प्लान के जरिये अपेक्षित इक्विटी फंड के लिए स्थानांतरित किया जा सके। जोशी ने कहा, ‘तरलता और प्रतिफल के लिए लिक्विड फंडों में निवेश कर चुके निवेशकों को प्रतिफल पर दबाव का सामना करना पड़ेगा।’
सुब्रमण्यम के अनुसार, कंपनियां विभिन्न बैंकों के साथ श्रेष्ठ ब्याज दरों पर जोर देती हैं और कुछ वृद्घिशील रकम भविष्य में बैंकों के साथ लगा सकती हैं, यदि दरें लिक्विड फंडों के मुकाबले ऊंची रहें।
उन्होंने कहा, ‘यदि बैंक परिसंपत्ति देनदारी असमानता की वजह से अल्पावधि पूंजी की किल्लत से जूझता है तो वह 15-दिन या 30-दिन की जमाओं के लिए ऊंची दरें चुका सकता है। साथ ही कॉरपोरेट ट्रेजरी बैंकों के रिकॉर्ड का आकलन करते हैं और उन्हें ऊंची दरों की पेशकश के बाद भी कुछ बैंकों में पैसा लगाने समय चिंताओं का सामना करना पड़ सकता है।’ एक वित्तीय योजनाकार कीर्तन शाह ने कहा, ‘कम से कम 6 महीने की निवेश अवधि वाले निवेशक अपनी पैसा आईडीएफसी फस्र्ट बैंक, बंधन बैंक, या एयू स्मॉल फाइनैंस बैंक जैसे बैंकों के बचत खातों में लगाने पर विचार कर सकते हैं। इसकी वजह यह है कि यदि बचत खाते के संदर्भ में, वे जरूरत के हिसाब से रकम निकाल सकते हैं। आर्बीट्राज फंड भी लिक्विड फंडों के मुकाबले बेहतर कर-बाद प्रतिफल हासिल कर सकते हैं, क्योंकि मौजूदा अंतर काफी अधिक है और कराधान अधिक अनुकूल है।’
आईडीएफसी फस्र्ट बचत खाता बैल्ेंस पर 6 प्रतिशत सालाना की ब्याज दर की पेशकश करती है जो 1 करोड़ रुपये या इससे कम के लिए है, और 10 करोड़ रुपये से कम या उसके बराबर की राशि वाले खातों के लिए 5 प्रतिशत की पेशकश करता है। बंधन बैंक 1 लाख से 10 करोड़ रुपये के दायरे में बैलेंस पर 6 प्रतिशत, 10-50 करोड़ रुपये पर 6.55 प्रतिशत, और 50 करोड़ रुपये से ज्यादा के बैलेंस पर 7.15 प्रतिशत की पेशकश करता है। एयू एसएफबी 10 लाख रुपये से लेकर 5 करोड़ रुपये से कम के बैलेंस पर 7 प्रतिशत दर की पेशकश करता है। कॉरपोरेट ट्रेनर, लेखक और स्तंभकार जयदीप सेन ने कहा, ‘मार्जिन पर कुछ रकम बैंक एफडी या अल्ट्रा शॉर्ट-टर्म, लो-ड्यूरेशन, और मनी मार्केट फंडों जैसे अन्य डेट श्रेणियों में जा सकती है।’
उन्होंने कहा कि 3-4 महीने की अवधि वाले निवेशक अल्ट्रा शॉर्ट-टर्म फंडों, और 6 महीने से एक साल की निवेश अवधि वाले निवेशक लो ड्यूरेशन या मनी मार्केट फंडों पर विचार कर सकते हैं। पिछले डेढ़ वर्ष की अवधि में लंबी अवधि से जुड़े निवेशकों ने बैंकिंग और पीएसयू फंडों, कॉरपोरेट बॉन्ड फंडों, और शॉर्ट-टर्म डेट फंड जैसी श्रेणियों में पैसा लगाया।