वित्त-बीमा

जलवायु जोखिम से निपटने के लिए आरबीआई बनाएगा नए नियम: गवर्नर संजय मल्होत्रा

भारतीय रिजर्व बैंक जलवायु परिवर्तन के वित्तीय प्रभावों का आकलन करने और बैंकों व एनबीएफसी के लिए जोखिम प्रबंधन रूपरेखा विकसित करने पर कर रहा है काम।

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बीएस संवाददाता   
भाषा   
Last Updated- March 13, 2025 | 10:45 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने आज कहा कि वह बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों जैसे विनियमित संस्थाओं के लिए जलवायु जोखिम प्रबंधन योजना की रूपरेखा तैयार करने के लिए खुलासा मानकों को अंतिम रूप देने में लगा है। केंद्रीय बैंक ऋणदाताओं के लिए जलवायु परिदृश्यों का विश्लेषण करने और उन जोखिमों के दबाव का आकलन करने के लिए मार्गदर्शन नोट भी तैयार करने वाला है।

मल्होत्रा ने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन जोखिमों का प्रभाव केवल वित्तीय प्रणाली तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था तक फैला हुआ है। चाहे वह कॉरपोरेट हो या एमएसएमई या कृषि क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन के जोखिम सभी पर हैं। इसके लिए न केवल वित्तीय क्षेत्र के नियामकों और विनियमित संस्थाओं बल्कि विभिन्न सरकारी एजेंसियों के बीच भी समन्वय और सामंजस्य की आवश्यकता है।

आरबीआई गवर्नर ने नई दिल्ली में आरबीआई द्वारा जलवायु परिवर्तन जोखिम और वित्त पर आयोजित नीति संगोष्ठी में कहा, ‘अल्पावधि में हमारा लक्ष्य जलवायु संबंधी जोखिम के प्रभाव का न केवल संस्थाओं पर बल्कि समग्र वित्तीय प्रणाली पर भी आकलन करने में सक्षम होना है।’

उन्होंने कहा, ‘केंद्रीय बैंक अपने विनियामक सैंडबॉक्स पहल के तहत जलवायु परिवर्तन जोखिमों और सुलभ कर्ज पर एक समूह गठित करेगा। हम जलवायु परिवर्तन और संबंधित पहलुओं पर एक विशेष ‘ग्रीनथॉन’ आयोजित करने की भी योजना बना रहे हैं।’ गवर्नर ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित जोखिम के दो पहलू हैं, जिनके बारे में विनियामकों, नीति निर्माताओं और पेशेवरों को अवगत होना चाहिए।

पहला सुविधा प्रदान करने वाला है, जिसमें क्षमता निर्माण, पारिस्थितिकी तंत्र का विकास और हरित फाइनैंसिंग शामिल है। दूसरा विवेकपूर्ण पहलू जोखिम प्रबंधन से संबंधित है। उन्होंने कहा, ‘वित्तीय प्रणाली के लिए जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिम के प्रबंधन में केंद्रीय बैंकों की भूमिका बढ़ रही है। हरित तथा पर्यावरण अनुकूल बदलाव के लिए ऋण को सुविधाजनक बनाने में उनकी भूमिका चर्चा का विषय रही है और इसके अलग-अलग आयाम हैं।’

विकसित अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों ने पारंपरिक रूप से परिसंपत्ति-तटस्थ दृष्टिकोण अपनाया है। दूसरी ओर उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में केंद्रीय बैंकों ने अपने-अपने देश की परिस्थितियों और विकास उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए कुछ क्षेत्रों को ऋण देने की नीति अपनाई है। भारत नवीकरणीय ऊर्जा सहित विशिष्ट क्षेत्रों को ऋण मुहैया कराता है।

मल्होत्रा ने कहा, ‘कई ऐसे माध्यम हैं जो जलवायु परिवर्तन जोखिम की वित्तीय प्रणाली को प्रभावित करते हैं।’ उन्होंने कहा कि एक केंद्रीय बैंक के रूप में आरबीआई जलवायु परिवर्तन से वित्तीय प्रणाली के जोखिम से निपटने में अपनी भूमिका के प्रति सजग है।

First Published : March 13, 2025 | 10:45 PM IST (बिजनेस स्टैंडर्ड के स्टाफ ने इस रिपोर्ट की हेडलाइन और फोटो ही बदली है, बाकी खबर एक साझा समाचार स्रोत से बिना किसी बदलाव के प्रकाशित हुई है।)