कहीं खुशी, कहीं गम …, फिर भी है दम

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 9:24 PM IST

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का वह कौन-सा गांव है जिसका विकास देख कर आप दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो सकते हैं। जवाब है, गुड़गांव!


लेकिन नाम पर जाने की गलती मत कीजिए। बड़ी बड़ी आलीशान इमारतों की चका चौंध ऐसी है कि कोई भी हैरान हो जाए। पिछले कुछ समय में यहां पेप्सी, नेस्ले, कोक, ब्रिटिश एयरवेज जैसी कंपनियों ने अपने दफ्तर खोले हैं तो जेनपेक्ट, आईबीएम, माइक्रोसॉफ्ट, डब्लूएनएस, ईएसपीएन, अमेरिकन एक्सप्रेस, प्राइस वॉटरहाउसकूपर, कैनन, नोकिया, एरिक्सन, सेपियेंट, एबीएन एमरो ने भी इधर का रुख किया है।

डीएलएफ का विशेष आर्थिक क्षेत्र इस शहर को और रोशन करने के लिए कमर कस चुका है। कुल मिलाकर कॉरपोरेट जगत ने गुड़गांव में विकास की संभावनाओं को भांपते हुए इसे अपना ठिकाना बनाना बेहतर समझा। जाहिर इसके पीछे कुछ ठोस वजहें रही होंगी। दरअसल दिल्ली मे बेहिसाब आबादी का बढ़ता दबाव और बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का टोटा गुंड़गांव की ओर रुख करने का कारण बना।

एनसीआर में विकास की गति देखी जाए तो नोएडा, गाजियाबाद वगैरह के मुकाबले गुड़गांव बीस ही दिखता है। इसके अलावा व्यावसायिक जमीनों की कीमतें दिल्ली के बनिस्पत काफी कम हैं। नतीजतन यहां से व्यावसायिक गतिविधियां चलाना सस्ता पड़ता है। लेकिन यह तस्वीर का केवल एक पहलू है। कुछ परतें उधेड़ी जाएं तो पता चलता है कि चराग तले अंधेरा भी होता है। जहां तक कीमतों का सवाल है तो दिल्ली के लिहाज से दाम कम जरूर है लेकिन पिछले कुछ समय में कीमतों में इजाफा हुआ है।

1997- 98 में जो जमीन 6 से 7 रुपये प्रति फीट की लीज पर मिल जाती थी आज उसकी लीज बढ़कर 60 से 70 रुपये प्रति फीट हो गई है। सुविधाएं बढ़ने के साथ समस्याएं की फेहरिस्त भी लंबी हुई है। गुड़गांव में व्यावसायिक इमारतें और जमीनें लीज पर देने व खरीदने बेचने का काम करने वाले प्रापर्टी डीलर इन पहलुओं पर तफ्सील से बात करते हैं।

क्या कहते हैं प्रॉपर्टी डीलर


रियल एस्टेट डीलरों की राय मिली जुली है। कुछ का मानना है कि कीमतें कोई खास असर नहीं डालती जबकि कुछ का कहना है कि कीमतों का असर तो पड़ता ही है लेकिन और भी कई वजहों से गुड़गांव कॉरपोरेट दुनिया के लिए दूसरे नंबर की पसंद है। गुड़गांव के उद्योग विहार इलाके  में प्रापर्टी लीज पर देने का काम करने वाले जयभगवान बताते हैं कि पहले इस क्षेत्र में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण और हरियाणा राज्य औद्योगिक विकास परिषद फ्लोर एरिया रेशियो देती थी, लेकिन उसे बंद कर दिया गया।

अब यह डीएलएफ में मिलने लगा है, इसलिए कंपनियां उधर का रुख कर रही हैं। इससे साफ है कि कीमतें हर हाल में असर डालती हैं लेकिन चूंकि गुड़गांव दिल्ली से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है तो मांग कभी इतनी नहीं गिरेगी कि चिंता में पड़ जाएं कि अब क्या होगा। औद्योगिक जमीनों में डील करने वाले प्रदीप भाटिया की राय कुछ और ही है। प्रदीप कहते हैं कि लोग गुड़गांव का रुख दो वजहों से करते हैं।

एक तो विकास का स्तर ठीक है सुविधाओं के लिए मारा-मारी नहीं है। दूसरा वही कंपनियां इधरा का रुख करती हैं जिन्हें दिल्ली के कनॉट प्लेस या दक्षिणी दिल्ली इलाके में जगह नहीं मिल पाती। भाटिया का मानना है कि कंपनियां अपनी इच्छा से यहां आती हैं। कोई विकल्प नहीं होना इसकी वजह है।

अब जैसे दिल्ली के जसरोला या साकेत या कनॉट प्लेस में 200 रुपये से लेकर 500 रुपये प्रति वर्गफुट का दाम है और गुड़गांव के एमजी रोड पर 60 से 70 रुपये प्रति वर्गफुट में जमीन मिल रही है, ऐसे में लागत कम करने का लालच कंपनियों को खींचेगा। वैसे कीमतें यहां भी बढ़ी है, लेकिन तुलना करने पर दिल्ली से तो काफी सस्ता है ही। यहां बुनियादी सुविधाएं वैसे विकसित नहीं हुई जैसा सोचा गया था।

First Published : April 14, 2008 | 10:59 PM IST