इस समय सत्यम कंप्यूटर्स सर्विसेज में हुई फर्जीवाड़े की घटना को लेकर चारो तरफ चर्चाएं गर्म हैं। इसके अलावा कर से जुड़े भी कुछ मुद्दे हैं जिनको लेकर सभी के मन में कई तरह के सवाल हिलकोड़े मार रहे हैं।
इन तमाम बातों के बीच एक सवाल यह है कि क्या सत्यम ने अपनी धोखाधरी के ठीक पहले तक जितने करों का भुगतान किया है क्या उकनी वापसी हो सकती है?
हालांकि इस तरह की स्थिति उस समय भी पैदा हो सकती है जब किसी व्यक्ति ने अपनी आय से ज्यादा करों का नियमित भुगतान किया है तो उस हालात में भी यह परेशानी खड़ी हो सकती है।
जब ऐसा कोई व्यक्ति बाद में अपने किसी विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आय से ज्यादा करों के भुगतान की बात स्वीकार करता है तो क्या ऐसी स्थिति में वह भी कर वापसी का दावा कर सकता है?
हालांकि एक बुनियादी सवाल यह पैदा होता है कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी आय को बढा-चढा कर दिखाने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? इसके पीछे बैंक से ज्यादा से ज्यादा कर्ज लेने का उद्देश्य हो सकता है। इसके अलावा इसका इस्तेमाल अवैध ढ़ंग से अर्जित कमाई पर पर्दा डालने के लिए भी किया जाता है।
हालांकि इन तमाम बातों के बीच यह सवाल पैदा होता है कि ऐसे कौन से लोग हो सकते हैं जो कर की वापसी के लिए कौन योग्य हो सकते हैं? सरल रूप से इसे ऐसे समझा जा सकता है कि कोई भी व्यक्ति जिसने अपनी कमाई की तुलना में ज्यादा करों का भुगतान किया हैं, वह अपने कर की वापसी का दावा कर सकता है।
अगला सवाल यह पैदा होता है कि कर की वापसी के लिए किस तरह से दावे किए जा सकते हैं? कोई भी करदाता अपने करों की वापसी के दावे को सामान्य तौर पर रिवाइज्ड रिटर्न फाइल करके कर सकता है जिसमें वह अपनी वास्तविक आमदनी, भुगतान किया हुए कर का ब्योरा दे सकता है।
कोई भी करदाता अपने किए गए कर वापसी का दावा आयकर समीक्षा की अवधि के एक साल के भीतर ही ऐसा कर सकता है। आम तौर पर कर वापसी के दावे आयकर विभाग की समीक्षा की अवधि तक या समीक्षाधीन अवधि से एक साल के भीतर किया जा सकता है।
इस तरह कानून तकनीकी तौर पर ऐसे लोगों को मौका प्रदान करता है जो अपने करों की वापसी करना चाहते हैं या फिर अपने मौजूदा रिटर्न में किसी तरह के बदलाव चाहते हैं।
इसके अलावा कर वापसी का लाभ लेने वाले इच्छुक धारा 154 के तहत रेक्टीफिकेशन एप्लीकेशन या त्रुटि आवेदन पत्र के तहत कर वापसी का दावा कर सकते हैं।
लेकिन यह तभी किया जा सकता है जब कोई खामी हो या फिर यह दस्तावेजों से ऐसा मालूम पडता है। इस तरह के त्रुटि के आवेदन कर वापसी के इच्छुक व्यक्ति द्वारा उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पहले जिसमें कि समीक्षा की मांग की गई थी, के चार साल के भीतर दाखिल कर सकता है।
कर वापसी के सभी तरह के दावों को आवश्यक आवेदन प्रपत्र संख्या 30 में किया जाएगा। हालांकि कर वापसी के दावों को दाखिल करते हुए इच्छुक व्यक्ति अपने दावों की समीक्षा हो जाने के बाद इस पर किसी तरह की अंगुली नहीं उठा सकता है या फिर इसी आवेदन के तहत इसमें किसी सुधार की मांग नहीं कर सकता है।
इसके अलावा जो एक और बात है, वह यह कि आवेदक इन करों की वापसी पर सालाना 6 फीसदी का ब्याज हासिल करने के भी हकदार होते हैं।
लेकिन धारा 138 ( 5) और 154 केवल स्वभाविक गलतियों पर ही लागू होती हैं और इस लिहाज से ऐसे व्यक्ति जो जान-बूझकर इस तरह के अपराध जैसे अपनी परिसंपत्तियों का गलत ब्योरा, गलत मुनाफा आदि को दर्शाते हैं उनको इस नियम का लाभ नहीं मिल सकता है।
यह बिल्कुल स्पष्ट है कि कर वापसी से संबंधित नियमों का लाभ केवल स्वभाविक रूप से किए गए गलतियों के लिए ही मिल सकता है। जबकि जान-बूझकर की गई गई किसी गलतियों के लिए इस तरह के काई प्रावधान नहीं हैं।
लेखक चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं।