शेयरों में मुनाफावसूली का आ गया समय

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 8:37 AM IST

हाल ही में दो बार दिन के कारोबार के दौरान 50,000 अंक का आंकड़ा लांघने के बाद आखिरकार बुधवार को सेंसेक्स इसके ऊपर जाकर बंद हुआ। पहली बार सेंसेक्स का खूंटा 50,000 के पार गडऩे के बाद निवेशकों को सतर्क हो जाना चाहिए। उन्हें अपने पोर्टफोलियो में विभिन्न संपत्ति श्रेणियों के आवंटन पर नजर डालनी चाहिए और जरूरत महसूस होने पर उनमें बदलाव भी करना चाहिए।
पुराने संपत्ति आवंटन पर लौटें
यदि शेयर बाजार चरम पर पहुंच गया हो और आपकी समझ में नहीं आए कि पैसा लगाए रहें या शेयर बेचकर बाजार से निकल लें तो जांची-परखी तरकीब अपनाइए। यह तरकीब संपत्ति आवंटन पर नजर दौड़ाने की है। एक्विरस वेल्थ मैनेजमेंट के मुख्य कार्य अधिकारी अंकुर माहेश्वरी कहते हैं, ‘पिछले कुछ महीनों से शेयर बाजार की दौड़ देखकर ज्यादातर निवेशकों ने अपने पोर्टफोलियो में शेयरों की हिस्सेदारी कुछ ज्यादा ही कर ली होगी। मौका अच्छा है, थोड़ी मुनाफावसूली कीजिए और शेयर आवंटन का स्तर पहले की तरह कर लीजिए।’ मगर सारे शेयर बेचना भी ठीक नहीं। बाजार में बने रहिए।
मुनाफावसूली के समय संपत्ति उप श्रेणियों के भारांश का भी पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। वैलिडस वेल्थ के मुख्य निवेश अधिकारी राजेश चेरुवु की सलाह है, ‘मिड-कैप और स्मॉल-कैप शेयर शायद बाजार से बेहतर प्रदर्शन करेंगे क्योंकि इन श्रेणियों में आय में वृद्घि उम्मीद से ज्यादा रहने की संभावना है।’
देसी कंपनियों के शेयर तो सरपट दौड़ ही रहे हैं, अमेरिका में भी शेयरों ने खासी रफ्तार पकड़ी है। यदि आपने वहां निवेश कर रखा है तो उसमें भी मुनाफावसूली अच्छी रहेगी। चेरुवु कहते हैं, ‘अमेरिकी बाजार बहुत महंगे हो गए हैं। ऐसे में आप निवेश के लिए यूरोप, जापान और उभरते बाजारों के फंडों को खंगाल सकते हैं।’
जिन निवेशकों को खुद संपत्ति आवंटन का तरीका नहीं आता, उन्हें बैलेंस्ड एडवांटेज फंड का सहारा लेना चाहिए।

डेट फंड में अवधि के जोखिम से बचें
स्थिर आय के बाजारों पर तीन कारकों का असर पड़ेगा। सबसे पहले तो राजकोषीय घाटे का है, जिसका अनुमान सरकार ने 2020-21 के लिए बदलकर 9.5 फीसदी कर दिया है। सरकार की उधारी भी अच्छी खासी रहेगी। दूसरा कारक तरलता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले कुछ समय में अच्छी खासी तरलता बाजार में डाली है, जिसके बाद तरलता का स्तर सामान्य होने लगा है। तीसरा कारक भी रिजर्व बैंक से ही संबंधित है, जो 5 से 10 वर्ष की श्रेणी में अधिक अवधि के बॉन्ड खरीद रहा है।
तरलता का स्तर सामान्य होने से बॉन्ड प्राप्तियां और भी ऊपर जा सकती हैं। छोटी अवधि की प्राप्ति में ऐसा खास तौर पर देखा जा सकता है। अतिरिक्त सरकारी उधारी से लंबी अवधि की प्राप्तियों में उछाल देखी जा सकती है। यदि केंद्रीय बैंक इसी तरह बॉन्ड खरीदता रहा तो लंबी अवधि की प्राप्तियों को कुछ बल मिल सकता है। क्वांटम म्युचुअल फंड में फंड प्रबंधक – स्थिर आय पंकज पाठक का कहना है, ‘अगले दो साल में सभी प्रकार की बॉन्ड प्राप्तियों में तेजी आने की उम्मीद है।’
यदि खुदरा निवेशक लंबी अवधि के फंडों में रकम लगाते हैं तो उन्हें उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। जो जोखिम से दूर रहना पसंद करते हैं, उन्हें ऐसे फंडों से भी तौबा ही करना चाहिए। निवेश करना ही है तो कम से कम 3-4 साल के लिए कीजिए।
जोखिम नहीं चाहिए तो बेहद कम अवधि वाले फंडों पर दांव खेलिए। पाठक का सुझाव है, ‘वे लिक्विड फंड और बेहद कम अवधि के (अल्ट्रा-शॉर्ट ड्यूरेशन) फंड में निवेश कर सकते हैं। लेकिन ऐसे फंड चुनते वक्त ऋण की गुणवत्ता को ढंग से परखना जरूरी है।’ जिन्हें जोखिम से कोई परहेज नहीं है और तीन-चार साल के लिए निवेश करना चाहते हैं, वे डायनमिक बॉन्ड फंड चुन सकते हैं। जहां तक ऋण जोखिम वाले (क्रेडिट-रिस्क) फंडों की बात है, जोखिम से दूर रहने वाले फिलहाल इनसे भी दूरी ही बरतें।
स्थिर आय वाली दूसरी योजनाओं में माहेश्वरी को कर मुक्त 7.1 फीसदी ब्याज वाली लोक भविष्य निधि (पीपीएफ ) और 7.15 फीसदी प्रतिफल वाले रिजर्व बैंक सेविंग्स बॉन्ड पसंद हैं। लेकिन इन बॉन्ड पर मिलने वाला प्रतिफल कर से मुक्त नहीं है।

रियल एस्टेट पर दांव का वक्त
पिछले 7-8 साल में मकानों की कीमतें एक दायरे के भीतर ही सिमटी रही हैं। कुल मिलाकर मकान खरीदना आसान और किफायती हो गया है। ऐसे में एनारॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के निदेशक एवं प्रमुख – शोध प्रशांत ठाकुर इसी में निवेश करने की राय देते हैं। वह कहते हैं, ‘रियल एस्टेट में कीमतें कम हैं और डेवलपर कई तरह के ऑफर तथा छूट दे रहे हैं। जिससे मकान की आखिरी कीमत काफी कम हो गई है।’ ठाकुर को लगता है कि जल्द ही मांग जोर पकडऩे लगेगी, जिसके बाद कीमतें भी चढ़ेंगी। फिर भी निवेशकों को कम से कम 7 साल तक संपत्ति अपने पास रखे रहने के लिए तैयार रहना चाहिए।

सोने में हेरफेर नहीं
दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में वास्तविक ब्याज दरें अब भी ऋणात्मक हैं और डॉलर में कमजोरी आने के आसार हैं। उस सूरत में सोने का प्रदर्शन ऐसा ही बना रहना चाहिए। पोर्टफोलियो में उसकी 10-15 फीसदी हिस्सेदारी बनाए रखनी चाहिए।

First Published : February 7, 2021 | 11:50 PM IST