बीएस बातचीत
बाजार सीमित दायरे में हैं और कोविड की दूसरी लहर से हुए आर्थिक नुकसान के आकलन का इंतजार कर रहे हैं। क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट में इंडिया इक्विटी रिसर्च के प्रमुख जितेंद्र गोहिल ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा कि उभरते बाजारों में, भारत को पिछली कुछ तिमाहियों में शानदार एफपीआई प्रवाह मिला है और इसलिए वे विदेशी निवेशकों द्वारा और ज्यादा मुनाफावसूली की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आप मानते हैं कि बाजार में गिरावट के कई कारक हैं?
हमारा मानना है कि भारत में कोविड मामलों की संख्या मई के मध्य तक चरम पर पहुंच जाएगीी और इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में रिकवरी होगी, हालांकि इसकी रफ्तार पूर्व अनुमान से कम रहेगी। अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार के बीच कमजोर संबंध है। वैश्विक आर्थिक वृद्घि से संबंधित बड़ी सूचीबद्घ कंपनियां (जैसे आईटी, धातु, रसायन और दवा क्षेत्र में) बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं और छोटी कंपनियों से बाजार भागीदारी हासिल कर रही हैं। यदि कोविड वायरस की रोकथाम के लिए देशव्यापी लॉकडाउन लगा तो यह बिकवाली का अगला कारक होगा, लेकिन इस तरह की आशंका काफी कम लग रही है। हमारी रणनीति गिरावट पर खरीदारी की है।
क्या भारतीय बाजारों में विदेशी प्रवाह धीमा पड़ा है?
यह इस पर निर्भर करता है कि डॉलर और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल को लेकर स्थिति कैसी रहती है। फिलहाल अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल 2021 में 2 प्रतिशत से नीचे बने रहने की संभावना है और डॉलर में बहुत ज्यादा तेजी नहीं आएगी। हम उभरते बाजारों (ईएम) इक्विटी पर तटस्थ बने हुए हैं। ईएम में, भारत को पिछली कुछ तिमाहियों के दौरान ज्यादा एफपीआई निवेश मिला है और इसलिए, हम विदेशी निवेशकों द्वारा और ज्यादा मुनाफावसूली से इनकार नहीं कर रहे हैं।
आपके पसंदीदा क्षेत्र कौन से हैं?
हम रक्षात्मक को लेकर चक्रीयता का सुझाव दे रहे हैं। निजी क्षेत्र के बड़े बैंकों में निवेशकों की अच्छी दिलचस्पी दिखेगी, लेकिन हमने वाहन क्षे पर तटस्थ नजरिया बनाए रखा है। इसके अलावा, वाहन इसलिए भी नजर रखे जाने वाला आकर्षक क्षेत्र है, क्योंकि दूसरी छमाही में आपूर्ति समस्याएं घटने और मांग बढऩे से मदद मिल सकती है। वाहन कंपनियों को आगामी महीनों में कीमत वृद्घि करनी होगी और माना जा रहा है कि यह त्योहारी सीजन तक होगा। आपूर्ति दबाव घटेगा और कीमत वृद्घि शुरू होगी।
क्या लॉकडाउन हटने पर मांग फिर से बढऩे की स्थिति में 2021 भी 2020 जैसा हो सकता है?
हां, लेकिन इसका असर अलग होगा। पिछला लॉकडाउन बेहद सख्त था, लेकिन मौजूदा लॉकडाउन स्थानीय स्तर का है और कई गतिविधियों को अनुमति दी गई है। हम उन अर्थव्यवस्थाओं पर भी नजर रख रहे हैं जो टीकाकरण अभियान के मध्य में हैं। अमेरिका और ब्रिटेन ने अपना टीकाकरण अभियान तेजी से बढ़ाने के बाद वृद्घि गति फिर से हासिल की है, और अब यूरोप का स्थान है, जहां हम टीकाकरण में अच्छी तेजी देख रहे हैं।
कॉरपोरेट आय पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
जून तिमाही में कॉरपोरेट आय कमजोर रह सकती है और हम कुछ डाउनग्रेड देख सकते हैं। कमजोर खपत परिवेश को देखते हुए, कंपनियां कच्चे माल की ऊंची लागत का बोझ ज्यादा जल्द ग्राहकों पर डालने में सक्षम नहीं होंगी। फिर भी, दीर्घावधि नजरिये से हम वित्त वर्ष 2023 पर अपने अनुमानों को आधार बना रहे हैं, और हमारा मानना है कि तब सकारात्मक बदलाव के लिए कुछ गुंजाइश पैदा होगी। बड़ी कंपनियों ने बाजार भागीदारी बढ़ाई है और पूंजी तक उनकी पहुंच में सुधार आया है।
निवेशकों को किन बातों पर खास ध्यान देने की जरूरत होगी?
हमें उम्मीद है कि भारत में, हम सितंबर तक टीकाकरण, स्वास्थ्य ढांचे, और प्रतिरोधक क्षमता में अच्छी वृद्घि दर्ज करेंगे। इससे व्यापार पुन: खुलने और वैश्विक चक्रीयता से जुड़ी कंपनियों को मदद मिल सकेगी। जिस अन्य पहलू पर ध्यान रखने की जरूरत होगी, वह है मॉनसून। इस साल मॉनसून सामान्य रहने की संभावना है। लगातार तीसरा सामान्य मॉनसून सीजन कृषि क्षेत्र के लिए काफी हद तक सकारात्मक रहेगा। इसके अलावा कर अनुपालन भी सकारात्मक है और यह सरकारी खर्च के लिए अच्छा संकेत है।
क्या सामान्य मॉनसून से मुद्रास्फीति की चिंताएं घटेंगी?
आरबीआई आगामी तिमाहियों में 6 प्रतिशत के अपने ऊपरी दायरे के मुकाबले कुछ हद तक ऊंची मुद्रास्फीति की अनुमति दे सकता है और वृद्घि पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। इसलिए, कुछ हद तक ऊंची मुद्रास्फीति और कम ब्याज दरों से आय में मदद मिलेगी।