उच्चतम न्यायालय ने संभल स्थित मुगलकालीन शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण पर उच्च न्यायालय के रुख स्पष्ट करने तक रोक लगा दी है। वहीं राज्य सरकार को हिंसा प्रभावित शहर में शांति एवं सद्भाव बनाए रखने को कहा। गत 19 नवंबर को संभल के दीवानी न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) की अदालत ने हिंदू पक्ष की याचिका पर गौर करने के बाद ‘एडवोकेट कमिश्नर’ से मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का एकपक्षीय आदेश पारित किया था।
याचिका में दावा किया गया था कि मस्जिद का निर्माण मुगल शासक बाबर ने 1526 में एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद कराया था। सर्वेक्षण संबंधी निचली अदालत के आदेश के बाद भड़की हिंसा में चार लोगों की जान चली गई थी। शहर में अब शांति है और शुक्रवार शाम इंटरनेट सेवाएं बहाल कर दी गईं।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार के पीठ ने शुक्रवार को निर्देश दिया कि शांति एवं सद्भाव बनाए रखा जाए और राज्य प्रशासन की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल (एएसजी) के.एम. नटराज द्वारा इस सिलसिले में दिए गए बयान पर गौर किया।
पीठ ने निर्देश दिया कि मस्जिद सर्वेक्षण के बाद ‘एडवोकेट कमिश्नर’ द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को सीलबंद कर दिया जाए तथा मस्जिद समिति की अपील पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय सहित अपीलीय अदालत द्वारा सुनवाई किए जाने तक इसे नहीं खोला जाए।
न्यायालय ने कहा, ‘दीवानी न्यायाधीश, याचिकाकर्ता द्वारा दायर की जाने वाली पुनरीक्षण याचिका/अपील उच्च न्यायालय या उपयुक्त अदालत के समक्ष सूचीबद्ध किए जाने तक मामले पर आगे नहीं बढ़ेंगे। एडवोकेट कमिश्नर ने यदि कोई रिपोर्ट सौंपी है, तो उसे एक सीलबंद लिफाफे में रखा जाए और खोला नहीं जाए। वाद में आगे की कोई भी कार्यवाही उच्च न्यायालय/उपयुक्त अदालत द्वारा पारित आदेश पर निर्भर करेगी।’
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि सर्वेक्षण आदेश के खिलाफ शाही जामा मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिका को तीन कार्य दिवस के भीतर इलाहाबाद उच्च न्यायालय या किसी अन्य उपयुक्त मंच के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।
आदेश में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता (मस्जिद समिति, संभल) को 19 नवंबर 2024 के आदेश को दीवानी प्रक्रिया संहिता 1908 और भारत का संविधान सहित, उपयुक्त अदालत/मंच पर कानून के अनुसार चुनौती देनी चाहिए।’
आदेश में कहा गया है कि हिंदू पक्ष की याचिका को दीवानी न्यायाधीश के समक्ष अगले साल 8 जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया जाए।
शीर्ष अदालत के फैसले का दोनों पक्षों ने स्वागत किया है। मस्जिद कमेटी के वकील शकील अहमद वारसी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का यह आदेश बेहतर है। वहीं, हिन्दू पक्ष के वकील श्रीगोपाल शर्मा ने कहा, ‘शीर्ष अदालत का निर्णय सिर आंखों पर है।’