अगर दिल्ली सरकार सर्वोच्च न्यायालय के सुझाव को अमल में लाती है तो दिल्ली की सड़कों पर ऐप से चलने वाली करीब दो तिहाई टैक्सी सड़कों से बाहर हो जाएंगी। अदालत ने कहा है कि क्या यह संभव है कि शहर में सिर्फ दिल्ली में पंजीकृत टैक्सियों को चलने की इजाजत दी जाए और दूसरे राज्यों में पंजीकृत टैक्सियों को यहां चलने की इजाजत न मिले। ये टैक्सियां मुख्य रूप से सीएनजी या बिजली से चलती हैं।
यह सुझाव सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले एक हफ्ते से दिल्ली को अपनी गिरफ्त में लेने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर सुनवाई के दौरान दिया। उद्योग के अनुमान के मुताबिक दिल्ली की सड़कों पर 1.3 लाख से ज्यादा ऐप आधारित टैक्सियां चलती हैं और उनमें से ज्यादातर सीएनजी और करीब 4 फीसदी टैक्सियां बिजली से चलने वाली हैं।
उबर इंडिया दिल्ली में अपने प्लेटफॉर्म के जरिये 70 हजार से ज्यादा टैक्सियों का परिचालन करती है और उसने सख्त लहजे में दिल्ली सरकार के परिवहन आयुक्त व उपराज्यपाल को गुरुवार को लिखे पत्र में कहा है कि सीएनजी जैसे स्वच्छ ईंधन से चलने वाले वाहनों पर भेदभाव वाली पाबंदी लोगों को पेट्रोल या डीजल से चलने वाले वाहनों की ओर जाने के लिए बाध्य करेगी।
इसमें कहा गया है कि ऐसे कदमों का प्रदूषण पर न के बराबर असर होगा और आम लोगों को काफी परेशानी होगी। यह दिल्ली-एनसीआर के नागरिकों के लिए मोबिलिटी लॉकडाउन जैसा होगा और वे एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और मुख्य अस्पताल तक पहुंचने में भारी मुसीबत का सामना करेंगे। इसमें यह भी कहा गया है कि दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि दिल्ली के वायु प्रदूषण में चारपहिया वाहनों की हिस्सेदारी 2 फीसदी से भी कम है।
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देश भर में परिचालन करने वाली ऐप आधारित टैक्सी सेवा कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस कदम का दिल्ली के टैक्सी ऐप प्लेटफॉर्म पर भारी असर होगा। करीब दो तिहाई इलेक्ट्रिक या सीएनजी कार सड़कों से बाहर हो जाएंगी क्योंकि ज्यादातर वाहन मालिक दिल्ली से सटे नोएडा, गुड़गांव और फरीदाबाद में रहते हैं।
अधिकारी ने कहा कि ऐप आधारित सभी वाहन सीएनजी या बिजली से चलते हैं, जो पेट्रोल या डीजल के मुकाबले स्वच्छ ईंधन है। ऐसे में इन्हें सड़कों से हटाने से प्रदूषण में कमी नहीं आएगी।
हालांकि ऐप आधारित ज्यादातर टैक्सियां ऑड-ईवन योजना का समर्थन करती हैं। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यह योजना महज दिखावा है। इस मामले पर एमिकस क्यूरी के तौर पर अदालत की मदद करने वाली वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह ने कहा है कि ऑड-ईवन के आधार पर पाबंदी लगाने की मांग अवैज्ञानिक तरीका है।
हालांकि दिल्ली सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि उसकी योजना 13 नवंबर से इस स्कीम को लागू करने की है। ऐप आधारित टैक्सियों का कहना है कि यह योजना सीएनजी व इलेक्ट्रिक वाहनों पर लागू नहीं होती।
ऐसे में उनके ड्राइवरों पर इसका असर नहीं होगा। दूसरा, उन्हें उम्मीद थी कि सरकार कम प्रदूषण वाले वाहनों (सीएनजी) पर दिल्ली में प्रवेश के दौरान लगने वाले 100 रुपये के शुल्क को माफ कर उसे प्रोत्साहन देगी ताकि दिल्ली में स्वच्छ ईंधन वाली टैक्सियों की उपलब्धता में बढ़ोतरी हो।
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एक दिन ऑड और एक दिन ईवन नंबर वाली कारों के संचालन के मामले पर दिल्ली सरकार की 2016 की रिपोर्ट में कहा गया था कि इससे पीएम 2.5 का संकेंद्रण औसतन 10 फीसदी घटकर 13 फीसदी रह गया।
यह रिपोर्ट शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनैशनल डेवलपमेंट के सहयोग से बनी थी। सुबह आठ बजे से शाम 8 बजे के बीच उत्सर्जन में 10 फीसदी की अतिरिक्त कमी आई, हालांकि शाम 7 बजे के बाद हवा की गुणवत्ता पर खास असर नहीं हुआ।
सिंह ने वाहनों के प्रदूषण पर रोक के लिए अदालत में वैकल्पिक रास्ता सुझाया है – कलर कोडेड स्टिकर लागू करना। पेट्रोल व सीएनजी वाहनों के लिए ब्लू स्टिकर, डीजल वाहनों के लिए ऑरेंज स्टिकर। ऑरेंज स्टिकर पर पाबंदी होनी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने इस सुझाव पर दिल्ली सरकार से रिपोर्ट मांगी है।