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नागरिकता अधिनियम की धारा 6A वैध, इस अवधि के बीच असम आए प्रवासी होंगे भारतीय सिटीजनशिप के हकदार

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है।

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भाषा   
Last Updated- October 17, 2024 | 9:55 PM IST

उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को नागरिकता अधिनियम की उस धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच असम आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करती है।

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान है। असम समझौते के अंतर्गत आने वाले लोगों की नागरिकता के मामलों से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ी गई थी।

प्रधान न्यायाधीश ने अपना फैसला लिखते हुए धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा और कहा कि असम की भूमि के छोटे आकार और विदेशियों की पहचान कर पाने की लंबी प्रक्रिया के मद्देनजर इस राज्य में प्रवासियों के आने की दर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपनी और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की ओर से फैसला लिखते हुए प्रधान न्यायाधीश से सहमति जताई और कहा कि संसद के पास इस प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता है। उच्चतम न्यायालय के बहुमत के फैसले में कहा गया कि असम में प्रवेश और नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 तक की समय सीमा सही है।

उच्चतम न्यायालय ने नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के संबंध में कहा कि किसी राज्य में विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति का मतलब अनुच्छेद 29(1) का उल्लंघन कदापि नहीं है।

बहरहाल, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने असहमति जताते हुए धारा 6ए को असंवैधानिक करार दिया। पीठ ने धारा 6ए की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।

नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए में उन अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है, जो 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 के बीच असम में आए थे। इनमें अधिकतर अवैध प्रवासी बांग्लादेश से आए हैं। यह प्रावधान 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ के बीच असम समझौते पर हस्ताक्षर के बाद शामिल किया गया था।

इसमें कहा गया है कि 1985 में संशोधित नागरिकता अधिनियम के अनुसार, बांग्लादेश सहित निर्दिष्ट क्षेत्रों से जो लोग 1 जनवरी, 1966 को या उसके बाद, लेकिन 25 मार्च, 1971 से पहले असम आए थे और तब से पूर्वोत्तर राज्य के निवासी हैं, उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए धारा 18 के तहत खुद को पंजीकृत कराना होगा। परिणामस्वरूप, असम में रहने वाले प्रवासियों, विशेषकर बांग्लादेश से आए लोगों को इस प्रावधान के तहत नागरिकता प्रदान करने के लिए 25 मार्च, 1971 अंतिम तिथि निर्धारित की गई।

बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला ने कहा कि 1 जनवरी 1966 और 25 मार्च 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करने वाली, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए, मनमानी और संवैधानिक रूप से अवैध है।

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने असहमति जताते हुए कहा कि जाली दस्तावेजों के आने के कारण धारा 6ए की खुली प्रकृति का दुरुपयोग होने की अधिक आशंका हो गई है।

उन्होंने अलग से 127 पन्नों के असहमति के आदेश में कहा, ‘समय के साथ धारा 6ए की खुली प्रकृति का दुरुपयोग होने की आशंका बढ़ गई है, क्योंकि इसमें अन्य बातों के अलावा, असम में प्रवेश की गलत तारीख, गलत वंशावली, भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा बनाए गए झूठे सरकारी रिकॉर्ड, अन्य रिश्तेदारों द्वारा प्रवेश की तारीख की बेईमानी से पुष्टि आदि को स्थापित करने के लिए जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि उन अवैध प्रवासियों की मदद की जा सके जो 24 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने के कारण धारा 6ए के तहत पात्र नहीं हैं।’

न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि धारा 6ए आवेदन की अंतिम तिथि के बिना असम में और अधिक आव्रजन को बढ़ावा देती है।

असम में 1979-85 तक अवैध प्रवासियों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई करने वाले अखिल असम छात्र संघ (एएएसयू) ने न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है, जबकि कानून के प्रावधान को चुनौती देने वाले मूल याचिकाकर्ता ने फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि यह राज्य को विदेशियों के लिए डंपिंग ग्राउंड बना देगा।

First Published : October 17, 2024 | 9:55 PM IST (बिजनेस स्टैंडर्ड के स्टाफ ने इस रिपोर्ट की हेडलाइन और फोटो ही बदली है, बाकी खबर एक साझा समाचार स्रोत से बिना किसी बदलाव के प्रकाशित हुई है।)