भारत

पशुओं में ऐंटीबायोटिक के उपयोग पर नजर रखें राज्य

एक अनुमान है कि ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध की समस्या के कारण 2050 तक भारत में 20 लाख लोगों की जान जा सकती है।

Published by
संकेत कौल   
Last Updated- June 09, 2025 | 11:38 PM IST

ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध (एएमआर) की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने सभी राज्य दवा नियंत्रकों से पशुओं में ऐंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग की निगरानी के लिए ऐंटीमाइक्रोबियल उपयोग (एएमयू) रिपोर्टिंग ढांचा विकसित करने में सहयोग के लिए कहा है। एक अनुमान है कि ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध की समस्या के कारण 2050 तक भारत में 20 लाख लोगों की जान जा सकती है। पहली बार सीडीएससीओ, राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरणों (एसएलए) तथा पशुपालन और डेरी विभाग के प्रतिनिधियों के एक संयुक्त कार्यबल का गठन किया जाएगा जो रिपोर्टिंग ढांचे के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने पर काम करेगा।

जानकारों के मुताबिक यह ढांचा पशु चिकित्सा उपयोग के लिए ऐंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री, निर्माण और आयात पर व्यवस्थित रूप से डेटा संग्रह पर ध्यान केंद्रित करेगा। केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में पशुधन और मुर्गी पालन के लिए पशु चिकित्सा उपचार दिशानिर्देश जारी ​किए थे जिनमें मनुष्यों की तरह ही ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध को रोकने के लिए पशुओं में ऐंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को कम करने पर जोर दिया गया था।

दिशानिर्देश का उद्देश्य सभी तरह के पशु रोगों के लिए रोग के प्रयोगशाला में पुष्टि होने तक रोगसूचक उपचार प्रदान करना है और ऐंटीबायोटिक दवाओं के न्यूनतम से शून्य उपयोग के लिए उचित सावधानी बरतनी चाहिए। ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी मनुष्यों और पशुओं के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली ऐंटीमाइक्रोबियल दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन  के अनुसार ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध के कारण 2050 तक दुनिया भर में लगभग 1 करोड़ मौतें होने का अनुमान है, जिसमें भारत में कम से कम 20 लाख लोगों की जान जा सकती है। 2019 में दुनिया भर में 12.7 लाख मौतों के लिए ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध सीधे तौर पर जिम्मेदार था। विश्व व्यापार संगठन का कहना है कि ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध मुख्य रूप से मनुष्यों, पशुओं और पौधों में संक्रमण के उपचार, रोकथाम या नियंत्रण के लिए ऐंटीमाइक्रोबियल दवाओं के दुरुपयोग और अत्यधिक उपयोग के कारण होता है।

सब्जियों, मुर्गी पालन और डेरी उत्पादों में ऐंटीबायोटिक अवशेष होते हैं और इनका सेवन करने पर ये मानव रक्त में मिल जाते हैं जिससे जोखिम और बढ़ जाता है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल में प्रकाशित हालिया अध्ययन में कहा गया है कि मनुष्यों और पशुओं में ऐंटीबायोटिक खपत और ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध दरों के बीच परस्पर संबंध है यानी पशुओं में ऐंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग मनुष्यों में ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध का कारण बन सकता है और मनुष्यों से पशुओं में भी। 2015 में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि वैश्विक ऐंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री का लगभग दो-तिहाई हिस्सा पशु कृषि में उपयोग किया जाता है।

भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) राजीव रघुवंशी ने सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के औष​धि नियंत्रकों को लिखे अपने पत्र में ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध पर समन्वित कार्रवाई का आह्वान किया है, विशेष रूप से पशु चिकित्सा क्षेत्र में।

पत्र में सभी एसएलए को एक नोडल अधिकारी नामित करने का निर्देश दिया गया है जो ऐंटीबायोटिक प्रतिरोध डेटा संग्रह और संयुक्त कार्यबल के साथ संबंधित सभी मामलों के लिए संपर्क बिंदु के रूप में कार्य करेगा। इसमें राज्य के नियामकों से अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में पशु चिकित्सा ऐंटीबायोटिक दवाओं के निर्माण, वितरण और बिक्री में शामिल दवा कंपनियों की एक व्यापक सूची प्रदान करने के लिए भी कहा गया है।

5 जून के एक अलग पत्र में डीसीजीआई ने सीडीएससीओ के सभी क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय कार्यालयों से पशु चिकित्सा उपयोग के लिए अनुमोदित दवाओं, जिनमें ऐंटीबायोटिक दवाएं, फिक्स्ड ड्रग कॉम्बिनेशन (एफडीसी) और उनके प्रीमिक्स की सूची साझा करने के लिए भी कहा है।

केंद्रीय औष​धि नियामक ने पिछले महीने बिना इस्तेमाल की गई या वैधता अव​धि खत्म हो चुकी दवाओं के सुरक्षित निपटान के लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी किया था, जिसका उद्देश्य ऐंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध और अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिमों को रोकना है। केंद्र ने पिछले साल सभी फार्मासिस्टों से केवल पंजीकृत चिकित्सक के पर्चे पर ही ऐंटीबायोटिक दवाएं देने का आग्रह किया था जिससे काउंटर से इसकी बिक्री सीमित हो गई थी।

First Published : June 9, 2025 | 10:59 PM IST