यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) कृष्णमूर्ति वी. सुब्रमण्यन (Krishnamurthy V Subramanian) की लिखी एक किताब की करीब 2 लाख कॉपियां खरीदने पर लगभग ₹7.25 करोड़ खर्च किए। द इकोनॉमिक टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब हाल ही में सुब्रमण्यन को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत के कार्यकारी निदेशक (ED) के पद से निर्धारित समय से छह महीने पहले हटा दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के सेंट्रल ऑफिस ने ‘India@100: Envisioning Tomorrow’s Economic Powerhouse’ नामक किताब की 1,89,450 पेपरबैक और 10,422 हार्डकवर कॉपियां का ऑर्डर दिया था। इन किताबों को देशभर के ग्राहकों, कॉरपोरेट्स, स्कूलों, कॉलेजों और लाइब्रेरियों में बांटा जाना था। एक पेपरबैक किताब की कीमत ₹350 और हार्डकवर वाले किताब की कीमत ₹597 थी। इस तरह, इन किताबों को खरीदने के लिए कुल ₹7 करोड़ से ज्यादा खर्च किए गए।
अगस्त 2024 में किताब के पब्लिश होने से पहले ही रूपा पब्लिकेशंस को 50% राशि एडवांस में ही दे दिया गया था। शेष राशि का भुगतान बैंक के मिसलेनियस रेवेन्यू बजट (miscellaneous revenue budget) से किया जाना था।
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संदर्भ के लिए रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में अंग्रेजी भाषा की किताबों की बिक्री आमतौर पर 10,000 कॉपियों से आगे नहीं जाती। ऐसे में यूनियन बैंक द्वारा करीब 2 लाख कॉपियों की खरीद को असामान्य बताया गया है। यह ऑर्डर बैंक के 18 जोनल ऑफिसों के जरिए पूरा किया गया, जहां हर एक ऑफिस को 10,000 से ज्यादा कॉपियां बांटने के लिए सौंपी गईं।
1 अगस्त 2024 को पब्लिश हुई इस किताब में भारत को 2047 तक एक 55 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में बदलने का रोडमैप प्रस्तुत किया गया है। भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) के तौर पर लेखक के अनुभवों पर आधारित यह पुस्तक चार मुख्य स्तंभों (pillara) पर स्ट्रैटेजिक फ्रेमवर्क पेश करती है: निरंतर मैक्रोइकोनॉमिक ग्रोथ को बढ़ावा देना, समावेशी विकास को प्रोत्साहित करना, नैतिक संपत्ति निर्माण की वकालत करना और निवेश आधारित विकास को प्राथमिकता देना।
यह किताब आर्थिक सिद्धांत को व्यावहारिक नीतिगत सुझावों के साथ जोड़ने का दावा करती है और अगले दो दशकों में भारत को टिकाऊ और सबके लिए एक जैसे विकास (equitable prosperity) की राह पर आगे बढ़ाने का दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।
सुब्रमण्यन ने नवंबर 2022 में IMF में कार्यभार संभाला था और भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। हालांकि, भारत सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को जारी एक आदेश के तहत सुब्रमण्यन का IMF में तीन साल का कार्यकाल तत्काल प्रभाव से समाप्त करने का फैसला किया। उनका कार्यकाल इस साल अक्टूबर में समाप्त होना था।
शुरुआती अटकलों में कहा गया था कि सुब्रमण्यन का कार्यकाल समाप्त होने की वजह उनकी किताब में प्रकाशित IMF डेटा सेट्स की आलोचना को लेकर उत्पन्न तनाव हो सकता है। अब सामने आई ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, किताब के प्रचार-प्रसार के तरीके में भी गड़बड़ी हो सकती है। माना जा रहा है कि सरकार ने यूनियन बैंक द्वारा की गई भारी मात्रा में किताब की खरीद को अनुपयुक्त, या कम से कम, अत्यधिक खर्चीला माना, खासकर तब जब सुब्रमण्यन जैसे वरिष्ठ पद पर आसीन व्यक्ति से यह जुड़ा मामला हो।
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने कृष्णमूर्ति वी. सुब्रमण्यन के कार्यकाल समाप्त होने से खुद को अलग रखते हुए स्पष्ट किया कि उन्हें हटाने का फैसला पूरी तरह भारत सरकार का था और यह निर्णय IMF से संबंधित नहीं था।
IMF के प्रवक्ता ने ईमेल के जरिए भेजे गए सवालों के जवाब में बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, “कार्यकारी बोर्ड के किसी भी सदस्य की नियुक्ति और पद से हटाना सदस्य देशों का अधिकार होता है। कार्यकारी निदेशक सुब्रमण्यन को हटाने का फैसला भारत सरकार का है।” प्रवक्ता ने आगे कहा, “हम उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हैं और उनके उत्तराधिकारी के साथ काम करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।” IMF की वेबसाइट पर उन्हें 2 मई तक कार्यकारी निदेशक के रूप में लिस्ट किया गया था।
सुब्रमण्यन ने अब तक इस पूरे घटनाक्रम पर कोई सार्वजनिक टिप्पणी नहीं की है। सुब्रमण्यन 2018 से 2021 के बीच भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (CEA) रह चुके हैं। उनके पास यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस से फाइनेंशियल इकोनॉमिक्स में पीएचडी की डिग्री है।