देश की 10 बड़ी ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने बुधवार को ‘भारत बंद’ का ऐलान किया है। इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल में बैंक, बीमा, पोस्ट ऑफिस, कोयला खनन, राज्य परिवहन और निर्माण उद्योग जैसे कई क्षेत्रों के 25 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी शामिल हो सकते हैं। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की अमरजीत कौर ने बताया कि किसान और ग्रामीण मजदूर भी इस आंदोलन में देशभर में शामिल होंगे।
ट्रेड यूनियनों का कहना है कि उन्होंने पिछले साल श्रम मंत्री मनसुख मांडविया को 17 मांगों का ज्ञापन दिया था, लेकिन सरकार ने अब तक इन मांगों पर कोई गंभीर चर्चा नहीं की। इसके अलावा पिछले 10 सालों से सरकार ने राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन तक नहीं बुलाया है। यूनियनों का आरोप है कि सरकार लगातार ऐसे फैसले ले रही है जो मज़दूरों के हितों के खिलाफ हैं। वे कहते हैं कि जो चार लेबर कोड लाए गए हैं, उनका मकसद यूनियन की ताकत को कम करना, सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार छीनना और ‘इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ के नाम पर सिर्फ कंपनियों को फायदा पहुंचाना है।
24 जुलाई को होने वाली देशव्यापी हड़ताल से कुछ ज़रूरी सेवाओं पर असर पड़ सकता है। सरकारी और कोऑपरेटिव बैंकों में कामकाज रुक सकता है क्योंकि कई कर्मचारी यूनियन हड़ताल में शामिल होंगी। बीमा कंपनियों जैसे LIC और GIC में भी कुछ कर्मचारी हड़ताल कर सकते हैं। डाक सेवाएं भी कुछ जगहों पर बंद रह सकती हैं।
कुछ राज्यों में बिजली सप्लाई पर असर पड़ सकता है, और पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी हड़ताल से प्रभावित हो सकता है, खासकर जहां मज़दूर यूनियनें मज़बूत हैं। कोयला खदानों और बड़ी फैक्ट्रियों में भी काम ठप हो सकता है।
हालांकि, स्कूल और कॉलेज खुले रहेंगे क्योंकि सरकार ने उन्हें बंद करने का आदेश नहीं दिया है। ज़्यादातर प्राइवेट दफ्तर और इमरजेंसी सेवाएं भी चलती रहेंगी, लेकिन ट्रांसपोर्ट में परेशानी के कारण थोड़ी देर हो सकती है। अस्पताल खुले रहेंगे, लेकिन कुछ जगहों पर सपोर्ट स्टाफ हड़ताल में शामिल हो सकता है जिससे थोड़ी परेशानी हो सकती है।
ट्रेड यूनियनों ने यह भी आरोप लगाया कि मौजूदा आर्थिक नीतियों के चलते देश में बेरोज़गारी बढ़ रही है, ज़रूरी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं, मज़दूरी घट रही है और सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और नागरिक सुविधाओं पर खर्च कम कर रही है।
यूनियनों ने सरकारी संस्थानों और सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ भी आवाज़ उठाई है। उनका कहना है कि ठेका और अस्थायी मज़दूरी को बढ़ावा देकर मज़दूरों के अधिकार छीने जा रहे हैं। संसद से पास हुए चार लेबर कोड को वे ट्रेड यूनियन आंदोलन को कुचलने और काम के घंटे बढ़ाने की कोशिश मानते हैं।
संयुक्त मंच ने सरकार से मांग की है कि देश में खाली पड़े सरकारी पदों को तुरंत भरा जाए, नई नौकरियां पैदा की जाएं और मनरेगा (MGNREGA) में काम के दिन और मज़दूरी दोनों बढ़ाई जाएं। साथ ही शहरों के लिए भी ऐसा ही रोज़गार गारंटी कानून बनाया जाए। यूनियन का आरोप है कि सरकार इसके बजाय केवल कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए Employment Linked Incentive (ELI) स्कीम चला रही है।
ऑल इंडिया बैंक इम्प्लॉइज एसोसिएशन (AIBEA) से जुड़ी बंगाल प्रांतीय बैंक कर्मचारी एसोसिएशन ने पुष्टि की है कि बैंक यूनियनें भी इस हड़ताल में शामिल होंगी। इनमें AIBEA, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (AIBOA) और बैंक इम्प्लॉइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (BEFI) भी शामिल हैं। इनका कहना है कि वे केंद्र सरकार की ‘कॉरपोरेट परस्ती’ के खिलाफ यह विरोध कर रहे हैं।