बीएस बातचीत
भारत इस समय कोविड-19 की भयानक लहर से जूझ रहा है और स्वास्थ्य व्यवस्था करीब ध्वस्त है। ऐसे में अमेरिका व कुछ अन्य देशों ने मदद की पेशकश की है। अमेरिका भारत रणनीतिक साझेदारी मंच (यूएसआईएसपीएफ) के अध्यक्ष और मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) मुकेश अघी ने महामारी पर प्रतिक्रिया के लिए बने वैश्विक कार्यबल, भारत के समर्थन वाली अपनी योजनाओं, टीके के निर्यात आदि पर श्रेया नंदी से बात की। प्रमुख अंश…
भारत जिस तरह महामारी से निपट रहा है, इसके बारे में आपका क्या कहना है?
यह सिर्फ भारत में नहीं है। अमेरिका सहित यूरोप और कुछ अन्य देश भी दूसरी और तीसरी लहर से जूझ रहे हैं। मुझे लगता है कि बड़ा अंतर बुनियादी ढांचे का है। अमेरिका में हॉस्पिटल शिप तैनात करने, स्टेडियमों को अस्पताल बनाने में सक्षम थे। इसे ध्यान में रखते हुए हमने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर्स का समर्थन बढ़ाया है। लोग इसे घरों में इस्तेमाल कर सकते हैं और अस्पताल जाने की जरूरत नहीं होगी। हर देश में ऐसा ही दृश्य बन रहा है। स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढांचा भारत के लिए सबसे दुखद मसला है।
वैश्विक कार्यबल की क्या योजना है?
यूएसआईएसपीएफ, अमेरिका के कारोबारियों का संगठन और बिजनेस राउंडटेबल इस समय भारत की जरूरतों को पूरी करने के लिए सामने आए हैं। उदाहरण के लिए हम ऑक्सीजन कंसंट्रेटर पाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारा लक्ष्य 1,00,000 का है और अब तक हमने 31,000 कंसंट्रेटर जुटाए हैं। इसे भारत भेजने का काम शुरू हो चुका है और मई के अंत तक 31,000 कंसंट्रेटर्स भेज दिए जाएंगे।
कम समय पर मेडिकल आपूर्ति के निर्यात की राह में क्या आपको कोई समस्या आ रही है?
जब आप आपातकालीन स्थिति में सीमा पार करते हैं तो हमेशा चुनौतियां आती हैं। कुछ सदस्य कंपनियों ने बैंकॉक से क्रायोजेनिक टैंक उठाए और यह भारतीय वायुसेना की साझेदारी से हुआ। हम मैक्सिको, इजरायल, तुर्की, गुयाना से सोर्सिंग कर रहे हैं। हम नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के नेतृत्त्व में भारत में 3 लोगों की अथिकार प्राप्त समिति के साथ काम कर रहे हैं। ऐसे में प्रक्रिया सही है। हम किसी सीमा शुल्क, जीएसटी का भुगतान नहीं कर रहे हैं, लेकिन हमें चीन से चुनौतियां मिली थीं क्योंकि वे चीन से भारत सीधे जहाज भेजने की अनुमति नहीं दे रहे हैं। हमें इसकी वजह नहीं पता। हमें शिपमेंट को टोक्यो से लाना पड़ रहा है, जिससे 10-12 घंटे समय बढ़ रहा है, जबकि हमारे पास समय कम है। यह आपात स्थिति है और इसमें तेजी होनी चाहिए।
टीके के कच्चे माल की आपूर्ति के मामले में भारत को रक्षा उत्पादन अधिनियम से छूट कब तक मिलेगी? भारत को टीके के लिए कितना कच्चा माल भेजा जाएगा?
अमेरिका में रक्षा उत्पादन अधिनियम है। इसके तहत कंपनियों को सरकार के ठेकों को प्राथमिकता देनी होती है और उसके बाद दूसरों की बारी आती है। ऐसे में जब कोई संसाधन बचा रह जाता है तो आप अन्य क्षेत्रों में इसे भेज सकते हैं। हमने आपूर्ति सरल करने के लिए बाइडेन प्रशासन पर बहुत दबाव डाला है, जिससे सीरम इंस्टीच्यूट को व्यवधानरहित आपूर्ति हो सके। यह यहां एक बार की छूट है। इसके लिए कोई समयसीमा नहीं है और यह निश्चित समय के लिए खुला मामला है।
टीके के कच्चे माल की मात्रा सीरम इंस्टीट्यूट आफ इंडिया की जरूरतों पर निर्भर है। आपको समझना होगा कि जुलाई तक अमेरिका में करीब 30 करोड़ खुराक अतिरिक्त होगी। समय के साथ करीब 50 प्रतिशत आबादी की किसी तरह का टीकाकरण हो चुका होगा। मुझे लगता है कि अमेरिका से ज्यादा अमेेरिका के बाहर मांग होगी।
हाल में अमेरिका ने एस्ट्राजेनेका के 6 करोड़ टीके की खुराक अन्य देशों से साझा किया है। भारत क्या उम्मीद कर सकता है?
अमेरिका के पास करीब 6.5 करोड़ एस्ट्राजेनेका टीके की खुराक है। इन टीकों का इस्तेमाल अमेरिका में नहीं होगा क्योंकि एफडीए (फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) की मंजूरी इसे नहीं मिली है। ऐसे में इन टीकों का इस्तेमाल यूरोप, भारत व अन्य देशों में होगा। अमेरिका सरकार को हमारी सिफारिश है कि 2 करोड़ टीका भारत को कर्ज के रूप में दे। भारत बाद में इसे वापस कर सकता है या अमेरिका के कहे के मुताबिक किसी और देश को दे सकता है।