कच्चे तेल की रिकार्ड कीमतों का रोना केवल उपभोक्ता ही नहीं रो रहे हैं बल्कि, तेल उत्पादक और शोधक कंपनियों का हाल भी बेहाल है।
लीमान ब्रदर्स होल्डिंग्स के आंकड़ों के अनुसार एक्सन मोबिल, रॉयल डच शेल, बीपी, शेवरॉन कॉरपोरेशन, टोटल एसए और कोनको फिलिप्स इस वर्ष तेल शोधन और उत्पादन के लिए रिकार्ड 98.7 अरब डॉलर खर्च करेंगी।
श्रम और उत्पादन खर्च में बेतहाशा बढ़ोतरी होने की वजह से इन कंपनियों को 2000 की तुलना में इस वर्ष चारगुणा अधिक खर्च करना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार अगले चार सालों में ओपेक देशों के बाहर के देशों की ओर से तेल की मांग का कुल 20 फीसदी हिस्सा वहन किये जाने की उम्मीद है।
मांग और आपूर्ति में जो अंतर देखने को मिल रहा है उससे यही लगता है कि अगले आठ सालों में तेल की कीमतें प्रति बैरल 120 डॉलर के आस पास ही बनी रहेंगी। वाशिंगटन में सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक ऐंड इंटरनेशनल स्टडीज में ऊर्जा कार्यक्रमों के अध्यक्ष रॉबर्ट इबेल ने कहा कि आने वाले दिन अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियों के लिए मुश्किल भरे रहेंगे। उनके लिए तेल का उत्पादन बहुत आसान रहने वाला नहीं होगा।
ऐसा माना जा रहा है कि वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों की खोज नहीं कर पाने की वजह से अगले दो वर्षों में कच्चे तेल की कीमतें 150 से 200 डॉलर प्रति बैरल बने रहने की संभावना है। रूस ने पूर्वी साइबेरिया के कोवित्का गैस फील्ड में बीपी की हिस्सेदारी पर कब्जा जमा लिया है।