भारत ने ग्लासगो में संपन्न हुए जलवायु सम्मेलन में चर्चा का हिस्सा होते हुए भी भले ही सतत कृषि पर सीओपी26 कार्रवाई एजेंडा पर हस्ताक्षर नहीं किया लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि उसे कृषि स्थिरता के मुद्दे का समाधान करने में तेजी से कदम उठाने की जरूरत है।
क्लाइमेट एनालिसिस इंडिकेटर्स टूल (सीएआईटी) के 1990 से 2018 तक के आंकड़ों का बिजनेस स्टैंडर्ड की ओर से किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि भले ही कुल ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के मामले में भारत तीसरे स्थान पर आता है लेकिन कृषि उत्सर्जन के मामले में यह शीर्ष स्थान पर है। भारत ने कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों से वैश्विक ग्रीनहाउस उत्सर्जन में 12 फीसदी का योगदान दिया। उसने इस मामले में चीन से सात फीसदी और ब्राजील से 30 फीसदी अधिक योगदान किया। कृषि उत्सर्जन के मामले में चीन दूसरे और ब्राजील तीसरे स्थान पर काबिज है। मात्रा की दृष्टि से भारत की ओर से किया जाने वाला कृषि उत्सर्जन 71.9 करोड़ टन कार्बनडाईऑक्साइड के बराबर था जबकि चीन ने 67.3 करोड़ टन कार्बनडाईऑक्साइड का उत्सर्जन किया। इस प्रकार भारत ने इस मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया जो 2011 में शीर्ष स्थान पर काबिज था।
भारत के कुल उत्सर्जन में हो सकता है कि कृषि की हिस्सेदारी घटी हो। 2009 से 2018 के बीच इसकी हिस्सेदारी 20 फीसदी से थोड़ी ऊपर रही जबकि इससे पहले इसका योगदान एक तिहाई के करीब हुआ करता था। सीएआईटी का और अधिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि कृषि उत्सर्जन की वृद्घि दर 2015 से बढ़ती जा रही है। सालाना आधार पर 2016 में इसमें 0.5 फीसदी और 2017 में 0.83 फीसदी की वृद्घि हुई थी।
2018 में उत्सर्जन में 1.3 फीसदी का इजाफा हुआ था। भले ही 2018 के बाद से आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन चावल की खेती में इजाफे को देखते हुए कृषि से उत्सर्जन में भी वृद्घि हुई है। कृषि उत्सर्जन में चावल की खेती की हिस्सेदारी 18 फीसदी है।
अगस्त में जारी किए गए चौथे अग्रिम अनुमानों से पता चलता है कि 2020-21 में चावल का उत्पादन 12.227 करोड़ टन रहेगा जो पिछले पांच वर्ष के औसत उत्पादन से 8.7 फीसदी अधिक है।