भारत में चरम पर पहुंच चुका है जलवायु जोखिम

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 11:42 PM IST

जलवायु सम्मेलन सीओपी26 के अंतिम कुछ दिनों में जलवायु जोखिम के चरम पर पहुंचने के कारण हो रहे नुकसान और क्षति संबंधी अधिक तात्कालिक समस्या पर विचार किया जाएगा। स्कॉटलैंड को छोड़कर किसी भी अन्य देश ने अब तक सम्मेलन में किसी प्रकार के नुकसान और क्षति कोष के लिए प्रतिबद्घता नहीं दिखाई है।     
एक ओर जहां भारत सरकार ने विकसित देशों से जलवायु आपदा कोष के लिए समान सोच रखने वाले 24 विकासशील देशों (एलएमडीसी) के साथ हाथ मिलाया है वहीं विशेषज्ञों ने इंगित किया कि सीओपी में प्रस्तुत करने के लिए भारत के पास कोई योजना ही नहीं है।
विशेषतौर पर भारत आपदाओं की चपेट में है क्योंकि इसके 95 फीसदी तटीय जिले जलवायु जोखिमों के लिए उच्च स्तरीय हॉटस्पॉट माने जाते हैं।   
पिछले पांच वर्षों में ही चक्रवातों ने 59 लाख हेक्टेयर रकबे को बर्बाद किया है। इसके अलावा इस दौरान 720 मौतें और 29.7 लाख मकानों को क्षति पहुंची। भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस) का अनुमान है कि भारतीय तट पर समुद्र के स्तर में औसतन सालाना करीब 1.7 मिलीमीटर का इजाफा हो रहा है। भारत के पूर्वी तट पर चक्रवात नियमित रूप से आते रहे हैं लेकिन हाल के दशकों में पश्चिमी तट भीे पर चक्रवातों की संख्या बढ़ी है और इसके साथ ही अत्यधिक नुकसानदाय घटनाओं की बारंबारता और गहनता में भी इजाफा हुआ है। ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) में जोखिम और अनुकूलन के कार्यक्रम प्रमुख अविनाश मोहंती ने कहा, ‘एक बात यह हो रही है कि भारत भर में बढ़ते सूखे की स्थितियों ने चक्रवात उत्नन्न करने वाली प्रक्रिया को जन्म दिया है जिसके कारण तेजी से गर्म हो रहे भारतीय महासागर में दबाव गहरे दबाव में और गहरा दबाव चक्रवाती तूफानों में तब्दील हो जाता है। मैंग्रोव सहित अन्य क्षेत्रों पर कब्जे के कारण प्राकृतिक सुरक्षा समाप्त हो रही है जो कि चिंता की बड़ी बात है।’
सीओपी में चर्चा दल में शामिल भारतीय अधिकारियों ने कहा कि भारत विकसित विश्व को जलवायु आपदाओं का सामाना करने के लिए धन देने के लिए सहमत करने की योजना बना रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘प्रदूषक भूगतान करे का सिद्घांत यहां लागू किया जाना चाहिए। ये देश ऐतिहासिक तौर पर प्रदूषक होने चाहिए। लेकिन हमें योगदान करने के लिए कहा जाएगा तो हम करेंगे। हमारे कार्बन उत्सर्जन की सीमा किसी न किसी प्रकार से कम है इसलिए हम कर सकते हैं।’ हालांकि विशेषज्ञों ने इंगित किया कि भारत ने इसके बजट रकम को तय नहीं किया है। एक जलवायु विशेषज्ञ ने कहा, ‘भारत को जलवायु आपदा से होने वाले नुकसान का आकलन करने की जरूरत है। इसके बाद उसे नीतियों पर विचार करने की जरूरत होगी।’    
एक ओर जहां सरकार अभी भी जलवायु के अनुकूल बुनियादी ढांचा लाने के लिए शुरुआती चरण में हैं वहीं विशेषज्ञों ने समुद्र स्तर के बढऩे से जुड़े खतरों की ओर इंगित किया जिससे निम्र स्तर वाले क्षेत्रों में सुनामी, तूफान में वृद्घि, तटीय बाढ़ और तटीय कटाव जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।  
विशेषज्ञ बताते हैं कि अधिकांश राज्यों को समुचित चेतावनी प्रणाली लाने और संकटग्रसत समुदायों के बीच शमन प्रयासों को लागू करने के लिए प्रयासों को तेज करना होगा। राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना (एनसीआरएमपी) के पहले चरण को पहले ही आंध्र प्रदेश और ओडिशा में लागू किया जा चुका है। इस परियोजना के तहत आंध्र प्रदेश और ओडिशा में कुल मिलाकर 535 बहुउद्देश्यीय चक्रवात आश्रयगृह, 1,087 किलोमीटर की सड़कें, 34 पुल और 88 किलोमीटर सेलाइन तटबंध बनाए जा चुके हैं।
हालांकि परियोजना का दूसरा चरण जिसकी मंजूरी जुलाई 2015 में दी गई थी और इसे मार्च 2020 में पूरा किया जाना था, अब भी पूरी तरह से शुरू नहीं हो पाया है। बहरहाल, पिछले पांच वर्षों में कई सारे चक्रावातों का सामना कर चुके तमिलनाडु को इन दो चरणों में जगह नहीं मिली है।  सीओपी सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीडीआरआई की इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर रेसिलिएंट आइलैंड स्टेट्स (आईआरआईएस) की शुरुआत की थी जिसका मकसद छोटे द्वीपीय विकासशील देशों में बुनियादी ढांचा प्रणालियों से उत्पन्न मुद्दों के लिए तकनीकी समाधान मुहैया कराना और बुनियादी ढांचा संपत्तियों की आपदा और जलवायु लचीलेपन को बढ़ावा देना है।
हालांकि, नुकसान और क्षति होने पर कोष की व्यवस्था के लिए भारत की ओर से मजबूत कदम उठाया जाना अभी बाकी है।

First Published : November 7, 2021 | 11:47 PM IST