चीन युद्ध के अपने तरीकों को बदल रहा है। वो अब युद्ध को सिर्फ गोला-बारूद और खून-ख़राब तक सीमित नहीं रखना चाहता। चीन का फोकस अब “संज्ञानात्मक युद्ध” (cognitive warfare) पर है। इसका मतलब है कि चीन अब लड़ाई लड़ने के बजाय लोगों के सोचने-समझने के तरीके को प्रभावित करना चाहता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की सेना (PLA) इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है।
वो इंटरनेट, सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर लोगों की सोच को अपनी तरफ मोड़ना चाहती है। उदाहरण के लिए, वो डीपफेक वीडियो बनाकर लोगों को गुमराह कर सकती है। इस तरह चीन बिना किसी सीधे युद्ध के अपने सैन्य और राजनीतिक मकसद को पूरा करना चाहता है।
PLA डेली अखबार में किया गया जिक्र
5 अक्टूबर 2022 के PLA डेली अखबार में इस बारे में लिखा गया था। अखबार के मुताबिक, इस तरह के युद्ध में दुश्मन देश के लोगों की सोच को अपनी तरफ कर लिया जाता है। ये सोच बदलने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं, जैसे गलत जानकारी फैलाना, साइबर हमले करना। इससे दुश्मन देश में लोगों में आपस में कन्फ्यूजन पैदा हो जाता है और वे लड़ने के लिए तैयार नहीं रहते।
आसान भाषा में कहें तो चीन अब सीधे बंदूकें तानने के बजाय लोगों के दिमाग को “हथियार” बनाकर लड़ना चाहता है। सोशल मीडिया के दौर में ये काम काफी आसान हो गया है। सोशल मीडिया पर गलत खबरें और झूठ तेजी से फैलते हैं, जिसका फायदा चीन उठाना चाहता है।
AI का सहारा ले रही चीनी सेना
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, चीन की सेना ने “संज्ञानात्मक युद्ध” (cognitive warfare) के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का भी सहारा लिया है। AI की मदद से वो न सिर्फ असली दिखने वाले फर्जी वीडियो बना सकता है बल्कि बेहतर अनुवाद सेवाओं के जरिए भाषा की दीवार भी गिरा सकता है। इससे चीन अपने “हथियार” यानी गलत जानकारी को कहीं भी, किसी के पास भी तेजी से पहुंचा सकता है। हालांकि, अभी तक सिर्फ दिमाग का खेल खेलकर कोई युद्ध नहीं जीता जा सकता। इसलिए चीन असल लड़ाई और सूचना फैलाने जैसी चीजों के साथ-साथ “संज्ञानात्मक युद्ध” का इस्तेमाल करता है।
ताइवान के खिलाफ हथकंडे आजमा चुका है चीन
इसका मतलब हुआ कि शांति के वक्त भी दुश्मन देश को दबाव में रखना और युद्ध के वक्त जीत हासिल करना। उदाहरण के तौर पर, ताइवान के राष्ट्रपति और विधायिका के चुनावों के आसपास चीन ने इसी तरह के हथकंडे अपनाए थे। खबरों के मुताबिक, उसने फर्जी तस्वीरें फैलाकर और परोक्ष रूप से विपक्षी पार्टियों को समर्थन देकर चुनाव के नतीजों को अपनी तरफ मोड़ने की कोशिश की थी। साथ ही चीन ने वहां सैन्य गतिविधियां भी बढ़ा दी थीं।
cognitive warfare में लगातार आगे बढ़ रहा चीन
चीन “cognitive warfare” में लगातार आगे बढ़ रहा है। वो नई तरह की कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और ब्रेन-मशीन इंटरफेस (BMI) टेक्नोलॉजी डेवलप कर रहा है। इन टेक्नोलॉजी की मदद से वो ऐसी फर्जी वीडियो बना सकेगा जिन्हें असली से अंतर कर पाना लगभग नामुमकिन होगा। इतना ही नहीं, हो सकता है कि भविष्य में वो सीधे लोगों के दिमाग को भी प्रभावित कर सके।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह की तकनीकें खासतौर पर खुले और स्वतंत्र देशों के लिए खतरनाक हैं। चुनावों में गड़बड़ी फैलाना, लोगों में आपसी फूट डालना – ऐसे मकसदों से “संज्ञानात्मक युद्ध” लड़ा जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि लोकतांत्रिक देश सतर्क रहें और इस तरह के खतरों से बचने के लिए उपाय करें।