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श्रीलंका में 2022 में जन आंदोलन के बीच राष्ट्रपति पद से हटाए गए गोटबाया राजपक्षे ने गुरुवार को संकेत दिया कि कुछ पश्चिमी शक्तियों के इशारे पर उनके खिलाफ बढ़ते जन असंतोष के बावजूद भारत इच्छुक था कि वह पद पर बने रहें।
राजपक्षे (74) ने भारत का नाम लिए बिना अपनी किताब में लिखा, ‘तथ्य यह है कि प्रमुख विदेशी शक्ति मुझसे कह रही थी कि मुझे पद से इस्तीफा नहीं देना चाहिए और उन्होंने इच्छा प्रकट की थी कि श्रीलंका की हर जरूरत की चीज उपलब्ध कराई जाएगी।’
राजपक्षे ने ‘द कन्स्पिरसी टू आउस्ट मी फ्रॉम द प्रेजीडेंसी’ शीर्षक से किताब लिखी है जो बृहस्पतिवार से पाठकों के लिए उपलब्ध है। किताब का औपचारिक विमोचन हालांकि नहीं किया गया है।
जुलाई 2022 के मध्य में गोटाबाया राजपक्षे का इस्तीफा और देश छोड़कर मालदीव भाग जाना तब हुआ जब भारत ने चार अरब अमरीकी डॉलर की सहायता के साथ एक कर्ज व्यवस्था का विस्तार किया था। यह सहायता तब दी गई थी जब श्रीलंका की अर्थव्यवस्था दिवालिया हो गई थी और इस घटनाक्रम से पहले चार महीने तक आवश्यक वस्तुओं और ईंधन के लिए देश में लंबी कतारें लगी थीं। उनकी किताब में भारत से मिली इस महत्वपूर्ण सहायता का जिक्र है।
पूर्व राष्ट्रपति ने अपनी किताब में लिखा, ‘‘ मैंने श्रीलंका के लोगों को कुछ राहत देने के लिए राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया था।’’
गोटाबाया राजपक्षे ने कहा कि दो साल के कोविड-19 लॉकडउन, विद्यालयों के बंद होने और रोजगार के अवसर खत्म होने की वजह से जीवनयापन का खर्च बढ़ गया था। उन्होंने कहा, ‘‘मैं नहीं चाहता था कि मेरे कारण लोगों को लंबे समय तक राजनीतिक गतिरोध में रहना पड़े।’’
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘…मैंने इस्तीफा दिया ताकि राजनीतिक षडयंत्रों और हमलों के दौर को खत्म किया जा सके जो प्रत्येक व्यक्ति की जिंदगी को मुश्किल बना रहा था। किसी के लिए भी यह दावा करना बेहद मूर्खतापूर्ण होगा कि मुझे सत्ता से बेदखल करने के लिए उठाए गए कदमों में कोई विदेशी हाथ नहीं था।’’
राजपक्षे ने लिखा, ‘‘विदेशी शक्तियां और कुछ स्थानीय दल मुझे हटाने के लिए हिंसक विरोध प्रदर्शन और तोड़फोड़ का वित्तपोषण और आयोजन कर रहे थे। वे तब तक नहीं रुकते जब तक मैं सत्ता में रहता। इस प्रकार लोगों को अधिक तोड़फोड़, अधिक तंगी, अधिक दंगे और प्रदर्शन सहने पड़ते और सामान्य स्थिति बहाल नहीं हो पाती।’’
उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया, लेकिन “कुछ देश खुद को दुनिया भर में लोकतंत्र और कानून के शासन के संरक्षक के रूप में पेश करना पसंद करते हैं” जैसे वाक्यों से स्पष्ट है कि उन्होंने किस पश्चिमी देश की ओर इशारा किया है।
पूर्व राष्ट्रपति ने लिखा, ‘‘वास्तव में, किसी भी विकासशील देश में लोकतंत्र को सबसे बड़ा नुकसान उन वैश्विक शक्तियों से नहीं होता है जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां निरंकुश शासन है, बल्कि कुछ धनी विकसित लोकतंत्रों और उनके वेतनभोगी पांचवें स्तंभकारों से होता है।’’