टीका कूटनीति: आखिर रूस कैसे मिली कामयाबी

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 5:57 AM IST

सारी दुनिया जब कोरोनावायरस के संक्रमण की पहली लहर से जूझ रही थी तब अगस्त 2020 के आखिर में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने इस महामारी पर रोकथाम लगाने वाला पहला टीका बनाने में सफलता की घोषणा की थी। रूस में विकसित इस पहले कोरोना टीका को स्पूतनिक-वी का नाम दिया गया। उस समय करीब 25 टीका उम्मीदवार दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में कोविड महामारी का प्रतिरोधी टीका बनाने की होड़ में लगे हुए थे। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने टीके के तीसरे चरण का परीक्षण शुरू कर दिया था जबकि जॉनसन ऐंड जॉनसन का एकल खुराक वाला टीका पहले एवं दूसरे दौर के परीक्षणों से ही गुजर रहा था।
ऐसी स्थिति में कोविड का टीका विकसित कर लिए जाने की पुतिन की घोषणा को तमाम लोगों ने काफी असमंजस भरी नजरों से देखा था। रूस के भीतर और बाहर के आलोचकों ने तीसरे दौर का क्लिनिकल परीक्षण पूरा हुए बगैर ही टीके के इस्तेमाल पर सवालिया निशान लगाए थे। कुछ लोगों ने इस टीके के विकास में अपनाई गई परीक्षण पद्धतियों पर भी शंका जाहिर की। लेकिन रूस ने फरवरी 2021 में अपने आलोचकों को शांत कर दिया जब स्पूतनिक-वी टीका 91.6 फीसदी से भी अधिक असरदार पाया गया। 25 अस्पतालों में 20,000 लोगों पर किए गए अध्ययन से पता चला कि इस टीके से गंभीर बीमारी को रोका जा सकता है।
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर तेज होने से लगातार बढ़ते मामलों के बीच भारत सरकार ने भी गत सोमवार को स्पूतनिक-वी टीके के आपात उपयोग की मंजूरी दे दी। यह भारत में सरकारी मंजूरी हासिल करने वाला तीसरा कोविड टीका है। भारत में कोविशील्ड एवं कोवैक्सीन टीकों का इस्तेमाल पहले से ही हो रहा है। स्पूतनिक-वी टीके का विकास गमालेया नैशनल सेंटर फॉर एपिडेमीलॉजी ऐंड माइक्रोबायोलॉजी ने किया है। इस सेंटर ने पहले भी इबोला वायरस संक्रमण से लडऩे वाले टीके विकसित किए थे जिनका उपयोग रूस में पहले से हो रहा है। यह केंद्र इन्फ्लूएंजा एवं मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम के टीकों का भी क्लिनिकल परीक्षण कर रहा है।
इस शोध केंद्र की स्थापना 1891 में एक निजी प्रयोगशाला के तौर पर की गई थी। लेकिन रूस में माइक्रो-बायोलॉजी के दिग्गज निकोलाई गमालेया के नाम पर 1949 से इसका नामकरण कर दिया गया। स्पूतनिक-वी की वेबसाइट के मुताबिक यह शोध केंद्र दुनिया में अपनी तरह का अनूठा वायरस लाइब्रेरी भी चलाता है और इसके पास टीका उत्पादन का अपना संयंत्र भी है।
स्पूतनिक-वी टीके को मिली वैश्विक सफलता ने रूस को सॉफ्ट-पावर कूटनीति में अप्रत्याशित ढंग से एक बड़ी सफलता दिला दी है। इसके पहले रूस अपनी सैन्य ताकत और तेल एवं गैस संसाधनों के दम पर दुनिया पर दबदबा बनाने की कोशिश करता रहा है। आज के समय में रूस में विकसित इस टीके को असली दुनिया के साथ वर्चुअल दुनिया में भी मजबूत पहचान मिल रही है। स्पूतनिक-वी कोविड महामारी के लिए विकसित इकलौता टीका है जिसका अपना फेसबुक पेज, यूट्यूब चैनल एवं ट्वीटर हैंडल भी है। फॉच्र्यून में प्रकाशित एक रिपोर्ट में स्पूतनिक-वी को रूस का अविश्वसनीय नया सोशल मीडिया सितारा बताया गया है। इसके तीसरे दौर के क्लिनिकल परीक्षण संयुक्त अरब अमीरात, भारत, वेनेजुएला एवं बेलारूस में संपन्न हुए। स्पूतनिक-वी टीके को दुनिया के 55 से भी ज्यादा देशों में उपयोग की मंजूरी हासिल हो चुकी है।
यूरोपीय देशों में इस टीके के प्रति मिला-जुला रुझान देखा गया है। जहां फ्रांस एवं जर्मनी जैसे देशों ने यह टीका खरीदने की मंशा जताई है वहीं रूस के पड़ोसी देश यूक्रेन, पोलैंड एवं लिथुआनिया ने टीके के असर पर संदेह जताते हुए कहा है कि यह यूरोप को बांटने वाला एक हाइब्रिड हथियार है।

First Published : April 13, 2021 | 11:13 PM IST