भारत को इस साल अक्टूबर तक वैश्विक बॉन्ड सूचकांक में शामिल किए जाने का भरोसा है, लेकिन वह आगामी वित्त वर्ष में कोष जुटाने में सक्षम नहीं होगा, क्योंकि इन चर्चाओं से अवगत दो अधिकारियों का मानना है कि सूचकांक में शामिल किए जाने के बाद भी वास्तविक सूचीबद्घता में करीब 12 महीने लग सकते हैं।
वर्ष 2019 से, भारत ने वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल होने की दिशा में लगातार प्रयास किया है, क्योंकि बढ़ रही सरकारी उधारी के कारण व्यापक निवेश आधार के लिए बड़े घरेलू बॉन्ड बाजार को खोले जाने की जरूरत बढ़ी है। सूत्रों का कहना है कि भारत द्वारा आगामी वित्त वर्ष (1 अप्रैल से शुरू) में सूचीबद्घता पूरी किए जाने की उम्मीद थी, क्योकि इससे उसे उधारी लागत नीचे लाने में मदद मिलेगी, जो हाल के सप्ताहों में तेजी से बढ़ी है। सरकार ने कोविड-19 महामारी से प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था को मंदी से निकालने के लिए आगामी वित्त वर्ष में अपने उधारी कार्यक्रम के वित्त पोषण के लिए 165.24 अरब डॉलर के बॉन्ड जारी करने की योजना बनाई है। सूचकांक प्रदाता का हवाला देते हुए एक अधिकारी ने कहा, ‘सूचकांकों पर सितंबर में विचार किया जाएगा। हम उनकी कई चिंताओं पर बातचीत की है और हम अन्य समस्याओं को सुलझाने में भी सक्षम हो सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘हम सितंबर या अक्टूबर में कम से कम एक प्रमुख सूचकांक में इसके शामिल होने की संभावना है।’ हालांकि उन्होंने कहा कि वास्तविक सूचीबद्घता में लंबा समय लग सकता है और यह कार्य वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले पूरा नहीं होगा। वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक आरबीआई ने इस मुद्दे पर पूछे गए सवालों का तुरंत कोई जवाब नहीं दिया है।
पिछले साल सितंबर में, जेपी मॉर्गन ने निवेशकों द्वारा पूंजी नियंत्रण, निपटान और अन्य परिचालन संबंधित समस्याएं बताए जाने के बाद भारत के सरकारी बॉन्डों को अपने प्रमुख उभरते बाजार सूचकांकों में से एक में शामिल नहीं किया था। दो अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि भारत भारतीय बॉन्डों के निपटान के लिए यूरोक्लियर के साथ बातचीत के अंतिम चरण में था और यह बॉन्ड सूचीबद्घता के लिए अग्रगामी हो सकता है, क्योंकि इससे निवेशकों की कई चिंताएं दूर हो जाएंगी।