भारत ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और छोटे द्वीप विकासशील देशों (एसआईडीएस) के साथ मिलकर इन्फ्रास्ट्रक्चर फॉर रिजिलिएंट आइलैंड स्टेट्स (आईआरआईएस) नाम से एक नए समूह की शुरुआत करेगा। यह समूह आगामी सीओपी26 (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज) सम्मेलन के अवसर पर अस्तित्व में आएगा। इस मंच का मकसद एक ऐसा गठजोड़ तैयार करना है जो द्वीपीय देशों में प्राकृतिक आपदाओं के समय पर टिके रहने वाले और आर्थिक नुकसान को कम करने वाले बुनियादी ढांचे का विकास करे।
ऑस्ट्रेलिया, भारत और ब्रिटेन ने आईआरआईएस के लिए 1 करोड़ डॉलर के शुरुआती कोष के लिए प्रतिबद्घता जताई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य कमल किशोर ने कहा, ‘जापान सहित कई और देश भी इस पहल के लिए योगदान कर सकते हैं। आईआरआईएस फिलहाल अपने शुरुआती चरण में है और परियोजनाओं की आवश्यकता के मुताबिक संसाधनों की व्यवस्था की जाएगी।’ दो दिवसीय संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ग्लासगो जाने की उम्मीद है। इसी दौरान वहां पर आईआरआईएस का शुभारंभ किया जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस वर्ष नई दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था, ‘हमें सबसे पहले सर्वाधिक संकटग्रस्त देशों और समुदायों की चिंता करनी होगी। इस संबंध में छोटे द्वीप विकासशील देश जो पहले से ही भयानक होते जा रहे आपदाओं के असर को महसूस कर रहे हैं, उन्हें निश्चित तौर पर उनके लिए जरूरी समझे जाने वाले सभी तकनीकों, जानकारियों और सहायता तक आसान पहुंच मुहैया कराई जानी चाहिए।’
एसआईडीएस देशों में बुनियादी ढांचा सहित आपदा से नुकसान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के तौर पर सर्वाधिक है। किशोर ने कहा, ‘इन देशों को एक दूसरे से जोडऩे वाले महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की जरूरत है जिससे कि बाजार तक पहुंच हो सके। विचार समावेशी तरीके से नियोजन प्रक्रिया को समर्थन देना, क्षमता निर्माण के साथ साथ बुनियादी ढांचे का निर्माण करने का है जो उपयोगकर्ता समूहों की जरूरतों को पूरा करे।’ उन्होंने कहा, ‘हमें फिजी और मॉरिशस में देश स्तरीय समर्थन के लिए अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं।’
एसआईडीएस जिसमें कैरेबियाई, प्रशांत, अटलांटिक, हिंद महासागर, भूमध्यसागर और दक्षिण चीन सागर के 58 देश शामिल हैं, ये सभी भूभौतिकीय और जल-मौसम संबंधी खतरों के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील और संकटग्रस्त हैं। इनमें से अधिकांश देशों में सूनामी, चक्रवात, भूकंप और भारी बारिश की स्थिति बार बार और भयंकर स्वरूप में उत्पन्न होती रहती है। आपदाओं के कारण यहां पर अपेक्षाकृत बहुत अधिक आर्थिक नुकसान होता है। आपदा से होने वाले आर्थिक नुकसान का स्तर वार्षिक तौर पर जीडीपी के 1 से 10 फीसदी के बीच रहता है।