ज्यादा धन और कार्बन स्पेस मांगेगा भारत

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 11:51 PM IST

ग्लासगो में चल रहे वैश्विक जलवायु सम्मेलन सीओपी26 में विकसित और विकासशील दुनिया में साफ विभाजन नजर आएगा। इसमें विकासशील देश, विकसित देशों को वित्तपोषण के लिए जवाबदेह ठहराएंगे, वहीं विकसित देश जलवायु प्रतिबद्धताओं की उम्मीद करेंगे।
‘नेट जीरो’ इसकी मुख्य अवधारणा होगी। एनर्जी ऐंड क्लाइमेट इंटेलिजेंस यूनिट और ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के के नेट जीरो ट्रैकर पोर्टल से संकेत मिलता है कि ‘नेट जीरो’ लक्ष्य का वर्ष विश्व की 62 प्रतिशत आबादी को कवर कर रहा है। 617 कंपनियों ने भी ‘नेट जीरो’ का लक्ष्य घोषित किया है।
भारत उन देशों में शामिल नहीं है और विकसित देशों की ओर से ‘नेट जीरो’ लक्ष्य वर्ष घोषित करने को लेकर भारत पर दबाव है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने ग्लोबल एनर्जी रिव्यू, 2021 में कहा है, ‘उभरते बाजार व विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की सीओ2 उत्सर्जन में दो तिहाई से ज्यादा हिस्सेदारी है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ढांचागत रूप से उत्सर्जन कम हुआ है।’
2020 में महामारी के दौर में कार्बन उत्सर्जन में रिकॉर्ड 5.8 प्रतिशत की गिरावट आई है, लेकिन पूरे विश्व की अर्थव्यवस्थाएं महामारी के असर से उबर रही हैं, ऐसे में आईईए का मानना है कि उत्सर्जन भी अब तक के रिकॉर्ड पर पहुंचेगा।
ऊर्जा की वैश्विक मांग खासकर चीन, यूरोपीय संघ, भारत आदि जैसे देशों में तेजी से बढ़ी है, जहां महामारी से आर्थिक गतिविधियां उबर रही हैं। ऐसे में यह उम्मीद है कि आर्थिक वृद्धि के साथ आगे जीवाश्म ईंधन की जरूरत और बढ़ेगी।
चीन ने 2060 तक नेट जीरो की प्रतिबद्धता जताई है, वहीं ऊर्जा के संकट के कारण उसने कोयले का उत्पादन बढ़ाने की योजना बनाई है। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि चीन में इस वित्त वर्ष के अंत तक कोयले का उत्पादन 5 से 6 प्रतिशत बढ़ेगा, क्योंकि उसने नई खदानें खोली हैं। चीन विश्व का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक और उपभोक्ता है। चीन में 2020 में 3.8 अरब टन कोयले का खनन हुआ था।
इसकी तुलना में भारत का मौजूदा कोयला उत्पादन 70 करोड़ टन है, जो बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए तार्किक लगता है। वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि देश अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को लेकर प्रतिबद्ध है और और इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘इससे कोयले के इस्तेमाल पर असर पड़ेगा, लेकिन दो अंकों की वृद्धि दर का लक्ष्य रखने वाला कोई देश किस तरह से अपने प्राथमिक ईंधन को घटाने की प्रतिबद्धता जता सकता है?’ भारत के बिजली व अक्षय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कई बार कहा है कि पश्चिमी दुनिया को विकासशील देशों के लिए कार्बन स्पेस खाली करना चाहिए।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव, जो सीओपी-26 में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे, ने बार बार कहा है कि इस तरह के दीर्घकालीन लक्ष्य की कोई जरूरत नहीं है। हाल के साक्षात्कारों में यादव ने कहा, ‘हमने नेट जीरो के लक्ष्य को खारिज करने जैसा कोई दावा नहीं किया है। हमारा नेतृत्व हमारे जलवायु लक्ष्य की घोषणा उचित समय और उचित मंच पर करेगा।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सीओपी-26 के शुरुआती दो दिनों के कार्यक्रम में शामिल होंगे, जब विभिन्न देश जलवायु प्रतिबद्धता, मांगों व तरीकों को लेकर अपना बयान देंगे। भारत के सीओपी-26 की योजना में अभी 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के 2030 तक कालक्ष्य और उत्सर्जन घटाना शामिल है, जिसके बारे में केंद्र सरकार का दावा है कि देश इसे हासिल करने की ओर बढ़ रहा है।
नेट जीरो अभी रहस्य बना हुआ है, वहीं भारत ने जलवायु वित्तपोषण को लेकर अपना रुख साफ कर दिया है। भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि भारत सरकार अपने रुख पर कायम रहेगी और विकसित दुनिया से अनुरोध करेगी कि वह हर साल 100 अरब डॉलर जलवायु वित्तपोषण करे।
क्लाइमेट फाइनैंस डिलिवरी प्लान (सीएफडीपी) बना रहे कनाडा और जर्मनी ने एक संयुक्त बयान में कहा है कि यह साफ है कि 2020 तक 100 अरब डॉलर वित्तपोषण का लक्ष्य विकसित देशों ने हासिल नहीं किया है। बयान में कहा गया है, ‘पिछले कई महीनों से हम इस बात को लेकर चिंता के बारे में सुन रहे हैं कि 2020 तक 100 अरब डॉलर वित्तपोषण का लक्ष्य पूरा नहीं किया गया। अभी वित्तीय आंकड़े उपलब्ध नहीं है, लेकिन यह साफ है कि विकसित देशों ने 100 अरब डॉलर जुटाने का काम नहीं किया है।’  
सीईईडब्ल्यू के सीईओ अरुणाभ घोष ने कहा, ‘सीएफडीपी पहला कदम है और विकासशील देश अपर्याप्त वित्तपोषण का सामना कर रहे हैं। विकासशील देशों को 5.9 लाख करोड़ डॉलर की जरूरत 2030 तक है, जो लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जरूरी है। अगर इस तरह का फंड नहीं रहता है तो कुछ विकासशील देश उत्सर्जन घटाने की अपनी कवायदें तेज नहीं कर पाएंगे।’
भारतीय अधिकारी ने कहा कि समान विचारधारा वाले 24 विकासशील देश (एलएमडीसी) इस मांग के साथ हैं। इसमें कुछ आईलैंड वाले देश, कम विकसित देश शामल हैं, जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावित  होने वाली पहली कतार में हैं।
क्लाइमेट ऐक्शन नेटवर्क (सीएएन) के वरिष्ठ सलाहकार हरजीत सिंह ने कहा कि सीओपी26 वार्ताओं में दोनों चीजें शामिल होनी चाहिए कि विकसित देश कार्बन उत्सर्जन कम करने की अपनी योजना बताएं और विकासशील देशों को हरित विकास की राह अपनाने के लिए धन दें।

First Published : October 31, 2021 | 11:12 PM IST