भारत, चीन, रूस और मध्य पूर्वी देशों में कच्चे तेल की खपत पहली बार अमेरिकी खपत के आंकड़े को पार कर देगी।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार इस वर्ष इन देशों में कच्चे तेल की खपत प्रतिदिन 2.067 करोड़ बैरल रहने की संभावना है। इन देशों में तेल की खपत में 4.4 फीसदी का इजाफा हुआ है।
अमेरिका जो अब तक सबसे अधिक तेल की खपत करता आया है में मांग में कमी आने की संभावना है। देश में कच्चे तेल की खपत दो फीसदी घटकर प्रतिदिन 2.038 करोड़ बैरल रह सकती है। भारत और चीन में तेल की खपत बढ़ने की कई वजहे हैं। एक तो इन दोनों ही देशों की आर्थिक विकास दर इाठ फीसदी के ऊपर है, वहीं यहां कार मालिकों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है।
दोनों देशों की कुल आबादी 2.45 अरब से अधिक है ऐसे में कारों के खरीदार बढ़ना भी स्वभाविक है। आईईए के अनुसार अमेरिका को छोड़कर इस वर्ष दुनिया भर में तेल की खपत में औसतन दो फीसदी की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। विश्लेषक तो अब यह भी मानने लगे हैं कि अमेरिकी मांग में कमी आने के बावजूद कच्चे तेल के बाजार पर कोई खास फर्क पड़ने की संभावना नहीं के बराबर है।
सोसियाते जेनेराल के तेल शोध के प्रमुख माइक विटनर कहते हैं कि अमेरिकी खपत और मांग का वाकई में कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है। उनका मानना है कि मांग में बढ़ोतरी पर सीधा असर अब भारत, चीन और मध्य पूर्वी देशों की खपत से पड़ता है।
विश्लेषक यह भी मानते हैं कि अमेरिकी मंदी के बावजूद अगर तेल की खपत में बढो़तरी देखने को मिल रही है तो इसका सीधा ताल्लुक विकासशील देशों से है, जहां तेजी से तेल की खपत की जा रही है।
टोरंटो के सीआईबीसीवर्ल्ड मार्केट्स इंक में प्रमुख अर्थशास्त्री जेफरी रुबिन का कहना है कि जिस गति से विकासशील देशों में मांग बढ़ रही है, उस तेजी से आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इस वर्ष उम्मीद है कि कच्चे तेल की कीमत औसतन 120 डॉलर प्रति बैरल रहेगी, जबकि इस वर्ष की पहली तिमाही में कीमतें 98 डॉलर प्रति बैरल के करीब थीं।