मेटा ने अमेरिका में तथ्यों की जांच करने के कार्यक्रम (फैक्ट चेकर्स प्रोग्राम) को बंद का फैसला किया है जिसके चलते भारत में इसके साझेदारों के बीच चिंता बढ़ गई है। इनमें से कई फैक्ट चेकर्स अपनी रणनीति का दोबारा मूल्यांकन कर रहे हैं और विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम का भारत के सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं पर बड़ा असर पड़ेगा।
हालांकि मेटा ने इस बात की पुष्टि की है कि इस फैक्ट चेकर्स प्रोग्राम को केवल अमेरिका में बंद किया जा रहा है लेकिन भारत में इसका क्या असर देखने को मिलेगा इस पर सबकी नजर है क्योंकि कंपनी भारत में अपना सबसे बड़ा फैक्ट चेकिंग नेटवर्क चलाती है। मेटा अब अमेरिका में अपने थर्ड पार्टी फैक्ट चेकिंग की जगह ‘कम्युनिटी नोट्स’ से काम चलाएगी जिसके जरिये इसके मंच पर सामग्री की सत्यता की पुष्टि की जा सकेगी।
भारत में मेटा 11 स्वतंत्र, सर्टिफाइड फैक्ट चेकिंग संगठनों के साथ फैक्ट चेकिंग के लिए सहयोग करती है जिसमें 15 भाषाओं की सामग्री कवर की जाती है। कई हिमायती समूहों और उद्योग विशेषज्ञों ने यह चेतावनी दी है कि फैक्ट चेक प्रोग्राम बंद करने से उपयोगकर्ताओं के लिए भ्रामक सूचनाओं के जाल में फंसने का जोखिम और बढ़ेगा।
दि डायलॉग के वरिष्ठ प्रोग्राम प्रबंधक प्रणव भास्कर तिवारी का कहना है, ‘इससे गंभीर चिंता बढ़ रही है क्योंकि पेशेवर फैक्ट चेकर्स जिस तरह से फर्जी या पक्षपाती खबरों की पहचान कर पाते हैं उस लिहाज से अप्रशिक्षित व्यक्ति किसी पक्षपाती सामग्री या खबरों की पहचान करने के लिए उतना जागरुक नहीं हो सकता है या उसके पास ऐसा कोई टूल नहीं हो सकता है कि वह इस काम को कर पाएं।’
उन्होंने कहा कि अवैध सामग्री जैसे कि आतंकवाद, बाल शोषण, फर्जीवाड़े से जुड़ी सामग्री को सक्रियता से रोकने की कोशिश की जाएगी लेकिन किसी संदर्भ के तौर पर जोखिम भरी सामग्री की जांच करने की जिम्मेदारी अब उपयोगकर्ताओं की होगी।
मेटा की यह नीति, विशेषतौर पर नाबालिग उपयोगकर्ताओं और कम जागरुक उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा के लिए इस प्लेटफॉर्म की क्षमता पर भी सवाल खड़े करती है क्योंकि कई भ्रामक सामग्री, सामुदायिक स्तर पर ऐसी सामग्री को नियंत्रित करने की पहल के बावजूद छूट सकती हैं।
तिवारी ने कहा, ‘मेटा की कम्युनिटी नोट्स पहल भी अब परिपक्व हो रही है ऐसे में हमें मंच पर राजनीतिक रूप से पक्षपाती सामग्री की अधिकता रोकने के लिए काफी मेहनत करनी होगी ताकि यह डिजिटल मंच पक्षपाती नहीं बल्कि समावेशी बना रहे।’
भारत में मेटा के साथ काम करने वाले फैक्ट चेकर्स में से कुछ ने बताया कि अब तक इस नीति का कोई असर नहीं देखा जा रहा है लेकिन उन्होंने अपनी कारोबारी रणनीति में बदलाव करना शुरू कर दिया है। कई लोगों ने तिवारी की तरह ही समान रूप से चिंता जताई है।
भारत के पहले फैक्ट चेकिंग न्यूजरूम बूम के प्रबंध निदेशक जेंसी जैकब ने लिंक्डईन की पोस्ट में लिखा, ‘इस प्रोग्राम को एक न एक दिन खत्म होना ही था और यह निश्चित रूप से अमेरिका के फैक्ट चेकर्स के लिए भी कोई हैरानी की बात नहीं है। लेकिन मेटा सीईओ के शब्दों का चयन बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और यह उनकी अपनी टीम के वास्तविक अनुभव के अनुरूप नहीं है जिन्होंने इस प्रोग्राम को लागू किया और इस पर कड़ी मेहनत की। यह प्रोग्राम खत्म हो सकता है लेकिन तथ्यों की जांच या ईमानदार सार्वजनिक विमर्श के महत्व के लिए इसकी जरूरत बढ़ेगी भले ही इसके लिए फंड मिलना मुश्किल हो जाए। अब फैक्ट चेकर्स को बाजार में बने रहने और अपने दायरे को बढ़ाने या कम करने के लिए वैकल्पिक तरीकों की तलाश करनी होगी।’