फिनलैंड मगंलवार को दुनिया के सबसे बड़े सुरक्षा गठबंधन उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) का आधिकारिक तौर पर सदस्य बन जाएगा, लेकिन सैन्य गठबंधन के प्रमुख ने कहा कि वह नॉर्डिक देश में तब तक और सैनिक नहीं भेजेगा जब तक कि वह मदद नहीं मांगेगा।
पड़ोसी रूस पहले ही चेतावनी दे चुका है कि अगर नाटो अपने 31वें सदस्य राष्ट्र के क्षेत्र में अतिरिक्त सैनिक या उपकरण तैनात करेगा तो वह फिनलैंड की सीमा के पास अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत करेगा।
नाटो महासचिव जनरल जेन स्टोलटेनबर्ग ने ब्रसेल्स में नाटो मुख्यालय में संवाददाताओं से कहा, “फिनलैंड की सहमति के बिना फिनलैंड में और नाटो सैनिक नहीं भेजे जाएंगे।” लेकिन उन्होंने वहां और अधिक सैन्य अभ्यास आयोजित करने की संभावना से इनकार नहीं किया और कहा कि नाटो रूस की मांगों को संगठन के निर्णयों को निर्धारित करने की अनुमति नहीं देगा।
मंगलवार को दिन के उत्तरार्ध में फ़िनलैंड आधिकारिक तौर पर नाटो का 31वां सदस्य बनने और दुनिया के सबसे बड़े सुरक्षा गठबंधन में अपना स्थान प्राप्त कर लेगा। नाटो के ब्रसेल्स स्थित मुख्यालय के बाहर अन्य सदस्य देशों के ध्वज के साथ ही फिनलैंड का नीले और सफेद का रंग झंडा भी लहराया जाएगा।फिनलैंड के राष्ट्रपति, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री इस कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।
इस बीच, फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी में देश के झंडे के साथ नाटो के झंडे भी लगा दिए गए हैं। यह कार्यक्रम नाटो की 74वीं वर्षगांठ के दिन हो रहा है। चार अप्रैल 1949 को ही नाटो की स्थापना के लिए वाशिंगटन संधि पर हस्ताक्षर हुए थे।
यह संयोग ही है कि गठबंधन के विदेश मंत्रियों की बैठक भी हो रही है। फिनलैंड के गठबंधन में शामिल होने वाले आग्रह को मंजूरी देने वाला तुर्किये नाटो का अंतिम देश है। उसने गुरुवार को ऐसा किया। वह समारोह से पहले अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को अपने फैसले का आधिकारिक दस्तावेज (ऑफिशियल डॉक्यूमेंट्स) सौंपेगा। फिर फिनलैंड अपनी सदस्यता को आधिकारिक रूप देने के लिए ब्लिंकन को अपने अंतिम दस्तावेज सौंपेगा।
पिछले साल यूक्रेन पर रूस के हमले से चिंतित फिनलैंड ने कई साल तक सैन्य तौर पर गुटनिरपेक्ष रहने के बाद मई 2022 में नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन किया था। उसके पड़ोसी स्वीडन ने भी आवेदन किया था, लेकिन उसके गठबंधन में शामिल होने में कुछ वक्त लग सकता है।
फिनलैंड और रूस के बीच 1340 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह कदम रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए रणनीतिक और राजनीतिक रूप से झटका है। वह लंबे अरसे से शिकायत करते आए हैं कि नाटो रूस की ओर विस्तार कर रहा है।