एफटीए से छवि बदलने का संकेत

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 9:07 PM IST

ऐसे समय में जब भारत ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के साथ महत्त्वाकांक्षी व्यापार सौदों पर बातचीत कर रहा है, तो भारत रिकॉर्ड 88 दिनों में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर करके छवि में बदलाव का संकेत देना चाहता है।
वर्षों की बातचीत के बाद चीन समर्थित एशियाई व्यापार ब्लॉक – क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) और यूरोपीय संघ के द्विपक्षीय व्यापार और निवेश समझौते (बीटीआईए) को छोडऩे से किसी भी व्यापार सौदे के लिए भारत की इच्छा के संबंध में संदेह पैदा हो गया था।
विशेषज्ञों ने कहा कि हालांकि भारत इस बात का स्पष्ट संदेश दे रहा है कि अब भारत व्यापार सौदा करने का इच्छुक है, लेकिन फिर भी अन्य विकसित देशों के साथ समझौता करना जटिल रहेगा। उन्होंने कहा कि यूएई के साथ पिछले सप्ताह किए गए व्यापार समझौते के मामले में पूरकताएं कहीं अधिक हैं, जिससे इस तरह के सौदों के साथ आगे बढ़ाना आसान हो गया है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विश्वजीत धर ने कहा कि ये (अन्य एफटीए) बहुत अधिक जटिल होंगे। यूएई के साथ यह एक अलग तरह का मामला था। घरेलू उद्योग के मामले में ज्यादा दिक्कत नहीं थी, क्योंकि भारत संयुक्त अरब अमीरात से जो भी आयात करता है, उससे उन्हें कोई चिंता नहीं है। अन्य समझौते बहुत जटिल रहे हैं, जिससे इस बात का पता चलता है कि हम उन पर बातचीत करने में बहुत ज्यादा वक्त क्यों लगाते रहे हैं। हालांकि हम वास्तव में अन्य देशों के साथ यूएई (व्यापार सौदे) की तुलना नहीं कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ सीमित व्यापार के मामले में दोनों देशों ने पहले 25 दिसंबर या तीन महीने के आस-पास की समय सीमा निर्धारित की थी, लेकिन सौदे को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका, क्योंकि दोनों देश बाजार तक पहुंच के मुद्दों पर असहमति का समाधान करने के संबंध में सक्षम नहीं थे। वर्तमान में दोनों देश सौदे पर सक्रिय रूप से बातचीत कर रहे हैं और मार्च के मध्य की एक और आक्रामक समय सीमा निर्धारित की है।
इसी प्रकार पहले भारत ने तकरीबन आठ साल तक आरसीईपी की बातचीत में हिस्सा लिया था और इसके बाद व्यापार समझौते से दूर जाने का फैसला किया, यह कहते हुए कि यह एक संतुलित समझौता नहीं था और इससे भारत के किसानों, छोटे कारोबारों तथा डेयरी उद्योग को नुकसान हो जाता। भारत और यूरोपीय संघ के बीच औपचारिक बातचीत वर्ष 2013 में कई मुद्दों पर मतभेदों की वजह से रोक दी गई थी। यह बातचीत छह साल तक चली थी।
धर ने कहा कि जब से भारत आरसीईपी से बाहर हुआ है, तब से हम जो बदलाव देख रहे हैं, वह यह है कि सरकार व्यापार सौदों पर हस्ताक्षर करने की मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखा रही है।

First Published : February 21, 2022 | 11:28 PM IST