ब्रिटेन के जलवायु परिवर्तन मामलों के मंत्री आलोक शर्मा ने कोयले से अक्षय ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाने सहित जलवायु परिवर्तन का असर कम करने की दिशा में भारत के प्रयासों की सराहना की है। जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका के विशेष दूत जॉन कैरी के बाद इस मुद्दे पर भारत की सराहना करने वाले वह दूसरे अंतरराष्ट्रीय नेता हैं।
इस वर्ष नवंबर में ग्लासगो में 26वां यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्ग कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (सीओपी26) आयोजित होना है। शर्मा इस सम्मेलन की तैयारी में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रत्रा दिवस पर अपने अभिभाषण में कहा था कि भारत वर्ष 2030 तक 450 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करना चाहता है। शर्मा ने प्रधानमंत्री कीमंशा की तरीफ की और कहा कि यह वास्तव में काफी उत्साहवद्र्धक है। नई दिल्ली की अपनी यात्रा के अंतिम चरण में संवाददाताओं से बातचीत में शर्मा ने कहा, ‘जब मैं पिछली बार यहां आया था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मेरी मुलाकात हुई थी। हमने जैव विविधता से लेकर प्रकृति से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर बातचीत की थी। प्रधानमंत्री जलवायु परिवर्तन के विषय पर काफी संजीदा हैं।’
शर्मा ने पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव, बिजली मंत्री आर के सिंह और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से भी मुलाकात की। शर्मा ने कहा ‘मैं दुनिया के लगभग सभी देश जा चुका हूं लेकिन भारत पहला ऐसा देश जहां मैं दूसरी बार आया हूं। इसकी वजह यह है कि भारत एक सक्षम कारोबारी अर्थव्यवस्था है।’
शर्मा ने स्वीकार किया कि 2009 में विकसित देशों के लिए जलवायु परिवर्तन की रोकथाम के लिए 100 अरब डॉलर रकम दिए जाने की घोषणा की गई थी लेकिन इसका अब तक क्रियान्वयन नहीं होना चिंता की बात है। उन्होंने कहा, ‘मैं जर्मनी गया था और बर्लिन में यह विषय उठाया था। यह कोष सभी के लिए आपसी विश्वास का विषय है।’
शर्मा ने खास तौर पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए विकसित हो रही तकनीक में निजी वित्त पोषण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन दुनिया में अपने तटों से दूर पवन ऊर्जा का उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा देश है। शर्मा ने कहा कि उनके देश ने निजी क्षेत्र को परियोजनाएं देकर पवन ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाया है।
उन्होंने कहा, ‘विभिन्न देशों में ऊर्जा के कई स्रोत होते हैं। भारत कोयला आधारित ऊर्जा के बजाय अब अक्षय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। भारत में प्रति यूनिट अक्षय ऊर्जा उत्पादन की लागत भी कम हो रही है।’ अक्षय ऊर्जा के भंडारण के लिए तकनीक के विकास पर ब्रिटेन और भारत आपस में सहयोग कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त को राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन अभियान की घोषणा की थी जो इसी प्रयास का एक हिस्सा है।
शर्मा ने उम्मीद जताई कि ग्लासगो सम्मेलन में तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर दुनिया के देशों के बीच आपसी सहमति बन पाएगी। हालांकि यह तभी संभव होगा जब भारत 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लिए राजी हो जाता है। इस वर्ष मार्च में आईईए-सीओपी26 नेट जीरो समिट में बिजली मंत्री आर के सिंह ने शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को नामुकिन बताया था और इसे हासिल करने लिए चल रही वास्तविक गतिविधियों पर सवाल उठाए थे। नेपल्स में हाल में आयोजित जलवायु परिवर्तन विषय पर भारत ने सम्मेलन के अंत में जारी वक्तव्य का समर्थन करने से इनकार कर दिया था और अपनी असहमति जताई थी। इसके बाद लंदन में आयोजित बैठक में सिंह ने भाग नहीं लिया मगर शर्मा ने कहा कि मुख्य वार्ताकार की उपस्थिति से आपसी सहयोग की भावना को बल मिला।
भारत दुनिया में कार्बन डाईऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश है इसलिए उस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी अधिक है। इसकी वजह यह है कि विकसित देशों ने उत्सर्जन कम करने के लिए महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखे हैं। राष्टï्रपति जो बाइडन के नेतृत्व वाले अमेरिकी प्रशासन ने कहा है कि वह 2030 तक उत्सर्जन 50-52 प्रतिशत तक कम कर 2005 के स्तर से नीचे ले आएगा। इसके बाद यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और जापान ने भी 2030-35 तक उत्सर्जन कम संबंधी लक्ष्य किए हैं। इन देशों की घोषणाओं के बाद उन देशों पर दबाव बढ़ गया है जिन्होंने उत्सर्जन कम करने संबंधी लक्ष्य तय नहीं किए हैं। भारत भी दन देशों की सूची में शामिल है। इसके बाद तत्कालीन पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा था कि दुनिया में भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन सबसे कम है। भारत का तर्क है कि उत्सर्जन की तीव्रता के आधार पर भारत एक मात्र ऐसी बड़ी अर्थव्यवस्था है जो पेरिस सम्मेलन में तय लक्ष्य प्राप्त करने के करीब है।