सुरसा के मुंह की तरह बढती महंगाई कारोबार को निगलने की फिराक में है।
सरकारी अमला जिन हथियारों से इसे मिटाने की जद्दोजहद कर रहा है, वे इसके दानवी आकार के सामने बेअसर साबित हो रहे हैं।इसका सूरते-हाल और इसमें आखिर किस जुगत से काम लिया जाए, यह बताया हमें विश्लेषकों ने।
साथ ही, कारोबारियों और अलग-अलग तबकों ने अपनी पीड़ा भी बताई। आइए देखते हैं, विकराल रूप ले चुकी इस समस्या को किस नजरिए से देख रहा है देश का जनमानस
जीना मुहाल कर दिया इस महंगाई ने
महंगाई की मार खासकर दालों पर बुरी तरह पड़ी है, जिससे इस सेक्टर को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। जबकि अनाजों के लिहाज से महंगाई का खासा असर नहीं पडा है। साथ ही, बासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी से भी काफी राहत मिली है। खाद्य तेलों के लिहाज से देखा जाए तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थिति काफी भयावह है। ऐसी स्थिति में भारत भी अछूता नहीं रहा है। गौरतलब है कि अधिक मांग और आपूर्ति उस मात्रा में नहीं होने की स्थिति में कीमतें बढ़ रही हैं। मसलन, ग्राहकों का रुख खाद्यान्नों की ओर काफी कम हो रहा है। इसके अलावा मौसम की मार ने भी अपना असर दिखाया है। ऐसे में इस कमरतोड़ महंगाई में जीना मुहाल हो गया है।
– शरद मारू, अध्यक्ष, अनाज-दाल और खाद्य तेल एसोसिएशन, मुंबई
रीटेल के बड़े खिलाड़ी हैं इसके दोषी
बढ़ती महंगाई के लिए रीटेल कारोबार कर रहे बड़े औद्योगिक घराने सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। अपने रीटेल स्टोरों में सप्लाई के लिए इन्होंने जगह-जगह पर बड़े-बड़े वेयर हाउस बना रखे हैं। इन्हीं वेयर हाउसेज में आवश्यक वस्तुओं समेत अन्य वस्तुओं का स्टॉक रखा जा रहा है। इसके चलते बाजार में इन चीजों की सप्लाई नहीं हो पा रही। सरकार को इन वेयर हाउसेज की जांच करके इन पर शिकंजा कसना चाहिए। साथ ही, वायदा बाजार में जारी सट्टेबाजी की भी जांच होनी चाहिए।
– प्रवीण खंडेलवाल, राष्ट्रीय महामंत्री, कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स,करोल बाग, नई दिल्ली
लागत ज्यादा, कैसे करें स्पर्धा
महंगाई से लोहा, तांबा और अल्यूमिनियम की कीमतों में आग लग गई है। इससे लागत बढ़ गई है और हम अंतराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में स्पध्र्दा करने में कड़ी मुश्किलें उठा रहे हैं। सरकार को इस दिशा में गंभीरता से सोचकर ठोस कदम उठाने ही होंगे। अगर लागत कम नहीं हुई तो बाजार के मुकाबले में हम टिक नहीं पाएंगे।
– डी. के. जैन, प्रमुख,डीटेक इंजीनियरिंग प्रा. लिमिटेड,मंडीद्वीप, मध्य प्रदेश
क्या सिर्फ आयात चाहती है सरकार
डॉलर और रुपये के बीच उतार-चढ़ाव का गहरा नुकसान मध्यप्रदेश के निर्यातकों को झेलना पड़ रहा था। अब महंगाई की मार से ऐसा लगने लगा है कि केंद्र सरकार छोटे कारोबारियों को बस आयात करने पर मजबूर करने पर उतारू है। ताकि कारोबारी छोटे-मोटे दुकानदार बनकर रह जाएं।
– राधाशरण गोस्वामी, अध्यक्ष, मध्य प्रदेश लघु उद्योग संगठन
कैसे झेलें कृषि कारोबार को लगा झटका
रुई के बीज की लागत जहां पिछले कुछ सालों में 50-100 रुपये प्रति एकड़ थी, वहीं अब यह 1700 रुपये प्रति एकड़ हो गई है। महंगाई बढने से न खेत में कम वेतन में मजदूर मिल रहे हैं और न अनुसंधान करने के लिए प्रशिक्षु वैज्ञानिक। हमारी फर्म का हर कर्मचारी लगभग दोगुना वेतन ले रहा है। खरपतवारनाशक, कीटनाशक आदि की कीमतों में 50 फीसदी इजाफा हुआ है। यदि सरकार ने उर्वरकों पर सब्सिडी खत्म कर दी तो महंगाई काबू से बाहर हो जाएगी।
– एन.एस. सिपानी, कृषि और अनुसंधान कारोबारी ,मंदसौर, मध्य प्रदेश
कहीं कारोबार से ही न कर लूं किनारा
हमें राज्य सरकार से कोई मदद नहीं मिलती है। ऊपर से महंगाई ने इतना बोझ डाल दिया है कि लगता है कि कारोबार ही बंद करना पड़ेगा। मजदूर अधिक वेतन और बोनस की मांग कर रहे हैं। रबर की कीमतें 82 रुपये किलो से बढ़कर 104 रुपये किलो तक जा पहुंची हैं। स्टील के तारों की कीमत 55 रुपये किलो से उछलकर 70 रुपये प्रति किलो तक जा पहुंची है।
– रजनीश पाहवा, टायर निर्माता और निर्यातक, मध्य प्रदेश
लागत पर गिरी बिजली, कैसे बचें
बिजली के सामान बनाने के मुख्य घटक तांबे की कीमतें दोगुनी हो चुकी हैं। बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियों से हमें कड़ी टक्कर मिल रही है। सभी तरह के जतन करने पर भी हमारी लागत पिछले चंद महीनों में लगभग 45 फीसदी बढ़ गई है। समझ में नहीं आता कि खर्च कम करने के लिए क्या उपाय करें। और अगर खर्च कम नहीं हुआ तो कैसे इन कंपनियों के सामने टिक सकेंगे।
– आर.पी. सिंह, कार्यकारी निदेशक, बीएचईएल, भोपाल
खुशकिस्मती से बचे हैं हम
गारमेंट क्षेत्र में रीटेल कारोबार पर काफी गहरा असर पड़ा है। चूंकि हम कच्चा माल साल भर के लिए इकट्ठा खरीदते हैं, लिहाजा चारों तरफ पड़ती इस महंगाई की मार से खुशकिस्मती से हम बच गए हैं। लेकिन जाहिर सी बात है, बढ़ती महंगाई का असर देर-सबेर हम पर भी आएगा ही।
– एस. पाल, कार्यकारी अधिकारी, अनंत स्पिनिंग मिल्स, मध्य प्रदेश
वायदा कारोबार पर लगाई जाए पाबंदी
हाल में बढ़ी महंगाई का व्यापार पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। हमारा व्यापार गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों पर निर्भर करता है। ऐसे में व्यापार पर महंगाई का असर साफ देखा जा सकता है। हमारे व्यापार को इस महंगाई के चलते 50 फीसदी का नुकसान हुआ है।
सरकार मात्र उद्योगपतियों पर अपना ध्यानकेंद्रित किए हुए है, जबकि किसानों को वह नजरअंदाज कर रही है। यदि किसानों को सुविधाएं मुहैया नहीं की जाएगी तो महंगाई पर अंकुश पाना नामुमकिन है। वायदा कारोबार में खाद्यान्नों की बिक्री पर भी पूर्णत: प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। पेट्रोल पर से अतिरिक्त करों को हटा देना चाहिए और बिजली भी सस्ती कर देनी चाहिए।
– मनुभाई शाह, महासचिव, बॉम्बे किराना, कलर और केमिकल मर्चेंट्स एसोसियशन
नमक ही छिड़का सरकार ने
राज्य सरकार ने उपभोक्ताओं के जख्म पर नमक छिड़कने की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में वैट को लागू करवा दिया है। जब से प्रदेश में वैट लागू हुआ है, महंगाई की मार से उपभोक्ताओं को बचाने को लेकर सरकार किसी तरह की परवाह करती नजर नहीं आई। हालात जस के तस रहना तो दूर बदतर ही हुए हैं। अब तो हालत यह है कि इस जन विरोधी टैक्स को सफलतापूर्वक लागू करने को लेकर ही सरकार अपनी पीठ थपथपाने में जुटी हुई है।
– बनवारी लाल कंछल, राज्य सभा सदस्य और व्यापारी नेता, लखनऊ
हम भी उपभोक्ता हैं
बढ़ती महंगाई का कारोबारियों पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। व्यवसायी जिस वस्तु का व्यापार करता है,महंगी होने पर उसकी लागत बढ़ जाती है। इस वजह से उसका टर्नओवर तो बढ़ जाता है पर मार्जिन कम हो जाता है। ऊंची दर पर कारोबार करने से कीमत के कम होने पर होनेवाले नुकसान का भय हमेशा बना रहता है। व्यापारी एक उपभोक्ता भी है। महंगाई का बोझ उस पर भी पड़ता है । यह कारोबार को बढाने में रुकावट ही पैदा करती है।
– हेमंत गुप्ता, सचिव, दिल्ली वेजीटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसियशन
बकौल विश्लेषक
उपभोक्ता के कल्याण से ही होगा कारोबार का कल्याण
ऐसा नहीं है कि मुद्रास्फीति की दर में पहली बार इजाफा देखने को मिल रहा है। यह अलग बात है कि शुरूआत में मुद्रास्फीति के बढ़ने के साथ-साथ आर्थिक विकास दर में बढ़ोतरी देखने को मिलती थी।
जहां तक महंगाई की बात है तो खासकर उन कारोबार और कारोबारियों पर महंगाई की ज्यादा मार पड़ेगी, जो निम्न तबके के उपभोक्ताओं को लक्षित करते हैं। लिहाजा, जहां उपभोक्ताओं की एक निश्चित आय है या फिर जो बेहद गरीब हैं (अन्य शब्दों में कहें तो जिनकी खरीदारी की क्षमता बेहद कम है) उन क्षेत्रों में कारोबारियों को झटका लग सकता है।
मान लीजिए कि मुद्रास्फीति की दर बढ़ने के साथ-साथ उपभोक्ता की आमदनी ही बढ़नी बंद हो जाए हो तो फिर सभी के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। फिर, चाहे वह कोई कारोबारी हो या उपभोक्ता, बढ़ती महंगाई की मार सभी को झेलनी पड़ेगी। सरकार द्वारा कारोबारियों को समस्याओं से निजात दिलाने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। मसलन, सरकार द्वारा खाद्य उत्पादों और कच्चे तेलों पर लगाए जाने वाले आयात शुल्क को सिर्फ खत्म या घटा देने से बात नहीं बनेगी।
सरकार को अपनी वित्तीय संबंधी नीतियों को बदलना होगा। एक ऐसा भी दौर था जब देश के विभिन्न एफसीआई गोदामों में कई टन अनाज बर्बाद हो गए थे। उन अनाज की दरों में कटौती कर थोक व खुदरा कारोबारियों को बेचा जा सकता था। दूसरा उपाय यह किया जाना चाहिए कि जिन लोगों पर महंगाई की सबसे ज्यादा मार पड़ती हो, उनकी आय बढ़ाई जानी चाहिए। उपभोक्ता के कल्याण से ही कारोबारियों का कल्याण होगा।
– संजय बोहिदार, शिक्षक, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स
बातचीत: पवन कुमार सिन्हा
राजा भोज हो या गंगू तेली, सबको मार गई ये महंगाई
जिंस कारोबार से जुड़े अधिकांश कारोबारी इस सेक्टर के अस्थायी स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर मौजूदा दौर की महंगाई में कई ऐसी चीजें हैं, जो हमेशा होती रहने वाली मूल्य-वृद्धि से इसे अलग करती हैं। मसलन, इस बार महंगाई के कारण जिंस उत्पादों की कीमत में होने वाली ऐतिहासिक बढ़ोतरी को ही लीजिए। मुद्रास्फीति की वजह से कीमत में इतनी तेजी से बढ़ोतरी होगी, यह तो सोचा भी नहीं गया था।
लिहाजा इस तरह की मूल्य-वृद्धि के लिए यह क्षेत्र तैयार भी नहीं था। दूसरे, जिंस उत्पादों में हुई बढ़ोतरी ने इससे जुड़े सभी क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया। क्या कृषि और गैर-कृषि उत्पाद, ऊर्जा, क्षार धातु, खनिज और क्या सर्राफा, सभी इस तेजी से प्रभावित हुए हैं। तीसरे, यह महंगाई केवल घरेलू मोर्चे तक सीमित न रहकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी फैल गई।
इससे एक ओर तो आयातकों और निर्यातकों दोनों के लिए कई तरह की दिक्कतें पैदा हुई, वहीं आयात पर निर्भर करने वाले कई कारोबार भी इसके चपेट में आ गए। चौथे, मौजूदा तेजी उस पारंपरिक प्रवृत्ति को चुनौती दे रही है, जिसमंे कि उत्पादों के ऊंचे मूल्य का दौर अपेक्षाकृत कम कीमत के दौर से छोटा होता रहा है।
इस लिहाज से भी देखें तो मौजूदा महंगाई को संभालना बड़ा कठिन है। अंतिम चीज जो इस महंगाई को नियंत्रित करना और भी कठिन बना रही है, वह यह कि आज जैसी अस्थिरता पहले कभी भी नहीं देखी गई थी। नई ऊंचाई को छूने के बाद मार्च में वैश्विक जिंस कारोबार में अचानक तेज गिरावट आई, जो इससे निपटने में आने वाली दिक्कतों की एक झलक दे रही है। इस लिहाज से यह दौर कारोबार के लिए काफी मुश्किल है।
– सुरिन्दर सूद, कृषि संपादक, बिजनेस स्टैंडर्ड
पुरस्कृत पत्र
आर्थिक महाशक्ति की अजब विडंबना
यह कैसी विडंबना है कि भारत तेजी से आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, एशियाई अर्थव्यवस्था में इसे चौथा स्थान प्राप्त है, लेकिन आज भी इस देश में नमक-तेल-लकड़ी की बढ़ती कीमत को रोकने के कारगर उपाय नहीं हैं। हमारा सवाल है कि सरकार का रुख आग लगने पर कुंआ खोदने जैसा क्यों बना हुआ है?
सरकार के मंत्रियों का एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी बड़ा हास्यास्पद है। सप्लाई साइड वाली रियल इकानॉमी पर हमारा ध्यान क्यों नहीं केंद्रित हो रहा है? राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति को संतुलित करना बेहद जरूरी है। अन्यथा कहीं 30 के दशक वाला जर्मन संकट कि थैली में पैसा और मुट्ठी में सामान वाली स्थिति उत्पन्न न हो जाए।
– हर्षवर्द्धन कुमार, लोहानीपुर, पटना-03
अन्य सर्वश्रेष्ठ पत्र
गहरी साजिश की बू है इस महंगाई में
महंगाई ने कई तरीकों से हमारे कारोबार को चौपट किया है। खरीदार सेकेंड हैंड किताबों को खरीदने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं और इसी के चलते नई किताबों का बाजार बुरी तरह सिकुड़ रहा है। कीमतों में आई यह तेजी गहरी साजिश के चलते है। मुझे यह तो समझ में आता है कि कच्चा तेल विदेशों से लिया जाता है और अंतरराष्ट्रीय बाजार इसकी कीमत तय करता है। लेकिन सरसों का तेल जब आयात नहीं किया जाता तो इस तरह की आवश्यक वस्तुओं की कीमत क्यों बढ़ाई गई?
– जी.के. माणिक, स्टेशनरी शॉप मालिक,सेक्टर 17, चंडीगढ़
खुद-ब-खुद सुधर जाएंगे हालात
इस त्रासदी की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि जो इसके सबसे बड़े शिकार हैं, उन्हें ही इसके तथ्यों और प्रभाव का पता नहीं है। नीति निर्माता इसे लेकर हो-हल्ला तो खूब मचाते हैं लेकिन आम आदमी इतना सक्षम नहीं है कि अपनी बात उन तक पहुंचा सके। स्टील, सीमेंट और ईंधन जैसे अनेक कारोबारी क्षेत्र भी महंगाई के शिकार हैं। ये हालात अंतत: सुधर ही जाएंगे क्योंकि मांग और आपूर्ति के बीच बढ़ रही खाई को जल्द ही अर्थव्यवस्था की असल ताकतें खुद-ब-खुद काबू में कर लेंगी।
– अक्षत मेहता, लेक्चरार,पुलिस प्रशासन विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय
कारोबारी नहीं, सरकार है दोषी
राज्य में महंगाई के पीछे सबसे कारण वैट है। इसके लागू होने के बाद से ही आवश्यक वस्तुओं की कीमतें राज्य में तेजी से बढ़ी हैं। इसके उलट राज्य सरकार व्यापारियों को ही इस स्थिति के लिए दोषी ठहराने पर तुली हुई है। जब तक वैट राज्य में लागू नहीं हुआ था, तब तक हालात ठीक थे। इससे अचानक कीमतों में आग लग गई। कोई भी कारोबारी तरक्की नहीं कर सकता, जब तक कि उपभोक्ताओं की खरीदारी क्षमता मजबूत न हो। केंद्र सरकार को भी खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
– चंद्र कुमार छाबड़ा, कारोबारी, हजरतगंज, लखनऊ
निजी क्षेत्र की मोटी तनख्वाह है असल वजह
भारत में महंगाई के बढ़ने का प्रमुख कारण निजी क्षेत्रों में अचानक बढ़ रही तनख्वाह के कारण है न कि अर्थव्यवस्था में हो रहे क्रमिक विकास का एक हिस्सा, जैसा कि अमूमन बाकी देशों में होता है। इसी कारण उपभोग की वस्तुओं की कीमतों में हो रहे जबरदस्त इजाफे के कारण देश में महंगाई की रफ्तार इस कदर तेज हुई है। आर्थिक सुधारों के बाद देश को पहली बार इन हालात से रूबरू होना पड़ा है और इसीलिए इस समस्या से जूझने की मुस्तैदी और काबिलियत यहां नजर नहीं आ सकी।
– डॉ. अजय प्रकाश, फैकल्टी सदस्य, बिजनेस विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय
…और यह है अगला मुद्दा
सप्ताह के ज्वलंत विषय, जो कारोबारी और कारोबार पर गहरा असर डालते हैं। ऐसे ही विषयों पर हर सोमवार को हम प्रकाशित करते हैं व्यापार गोष्ठी नाम का विशेष पृष्ठ। इसमें उस विषय पर उमड़ते-घुमड़ते आपके विचारों को आपके चित्र के साथ प्रकाशित किया जाता है। साथ ही, होती है दो विशेषज्ञों की राय। इस बार का विषय है आर्थिक मंदी है अगला पड़ाव? अपनी राय और अपना पासपोर्ट साइज चित्र हमें इस पते पर भेजें: goshthi@bsmail.in