कमला हैरिस : भारत के लिए खड़ी कर सकती हैं मुश्किलें

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 3:30 AM IST

लगभग एक साल पहले सितंबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टैक्सस के ह्यूस्टन में एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया जिसका आयोजन मूलत: भारतीय मूल के लोगों द्वारा किया गया था। इस कार्यक्रम में मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के लिए जोरदार नारा दिया था, ‘अबकी बार ट्रंप सरकार’।
मुमकिन है कि उनकी भविष्यवाणी सही हो जाए। मगर ऐसा नहीं होता है तब एक ऐसी संभावना बन सकती है कि भारत के लिए व्हाइट हाउस कई वजहों से मुश्किलों का सबब बन जाए। अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेट उम्मीदवार  जो बाइडन ने उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर कमला हैरिस को चुना है और इस खबर पर चेन्नई के बेसेंट नगर में खुशी देखी जा सकती है कि यहां की लड़की दुनिया में अच्छा कर रही है लेकिन साउथ ब्लॉक में इस खबर को लेकर वैसा उत्साह बिल्कुल नहीं होगा।
हैरिस की नानी चेन्नई में रहती हैं और उनका कहना है कि हैरिस में मूल्यों के प्रति जो प्रतिबद्धता दिखती है वह उनमें उनके बचपन से ही है। जब वह छोटी थीं तब वह सुबह की सैर पर अपने नाना और उनके दोस्तों के साथ जाया करती थी जो भ्रष्टाचार, नागरिक अधिकारों और क्या सही है और क्या गलत है उस पर बात किया करते थे। हैरिस की मां श्यामला वैज्ञानिक थीं और वह 1950 और 1960 के दशक में अमेरिका जाने वाले कई लोगों में से एक थीं। जब उनकी मां कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में पीएचडी कर रही थीं तब उनकी मुलाकात जमैका के एक प्रतिभाशाली युवा अर्थशास्त्री डॉनल्ड हैरिस से हुई और बाद में उन्होंने उनसे ही शादी कर ली। कमला और उसकी बहन माया का जन्म अमेरिका में हुआ था।
हैरिस खुद को भारतीय के रूप में देखती हैं या फिर अश्वेत? एक साक्षात्कार में पत्रकार अजीज हनीफा ने हैरिस से नस्लीय मूल का सवाल करते हुए बॉबी जिंदल जैसे नेताओं की मिसाल दी थी जिन्हें अमेरिकी राजनीति में खुद को स्वीकार्य बनाने के लिए अपने नस्लीय मूल को खारिज करना पड़ा था। हैरिस ने अपने जवाब में कहा, ‘एक दूसरे के बहिष्कार के लिए नहीं है। मेरा मानना है कि यह मूल बात ही इस मुद्दे के केंद्र्रबिंदु में है। हमें मुद्दों और लोगों को भी शीशे के एक आयाम के जरिये देखना बंद करना है इसके बजाय, हमें यह देखना होगा कि अधिकांश लोग एक प्रिज्म (वर्णक्रम) के जरिये अपना अस्तित्व बनाते हैं और वे कई कारकों के नतीजे के रूप में नजर आते हैं। यही इसकी वास्तविकता है।’
लेकिन ज्यादातर अफसरशाह शायद ही कभी चीजों को इस तरह से देखते हैं। हैरिस का अश्वेत/भारतीय के रूप में देखे जाने और मान्यता मिलने का संघर्ष कई बाधाओं से भरा था। साल 2003 में वह सैन फ्रांसिस्को की पहली महिला डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी चुनी गईं। वह दोबारा से उस पद के लिए निर्वाचित हुईं लेकिन उन्होंने मृत्युदंड का समर्थन करने से इनकार कर दिया। उन्होंने नस्लीय अपराधों और बच्चों से हुए दुव्र्यवहार के मामले में माफ न करने वाली सख्ती दिखाई। जब एक मौजूदा सीनेटर रिटायर हुईं तब उन्होंने उनकी ही सीट से चुनाव लड़ा और जीत गईं। वह अमेरिकी सीनेट के लिए चुनी जाने वाली दूसरी अश्वेेत महिला थीं।
सीनेटर के रूप में भी हैरिस ने अपना दमखम दिखाया और जब वह सीनेट सत्र की चर्चा में सवालों की झड़ी लगाती थीं तब दिग्गजों की मुश्किलें बढ़ती दिखती थीं। ऐसा ही एक वाकया पूर्व सीनेटर और अमेरिका के अटॉर्नी जनरल जेफ सेशंस के साथ भी हुआ था। एक बार उन्होंने हैरिस के ही सवालों का सामना करते हुए उनसे ही कहा था, ‘मैं इतनी तेजी नहीं दिखा सकता और इससे मुझे परेशानी होती है।’
भारत को उनकी इस खासियत पर गौर करना होगा। चेन्नई के समुद्र तटों पर घूमने और कांजीवरम साडिय़ों को लेकर मीठी बातों से ज्यादा इस बात पर गौर करना जरूरी है कि हैरिस किस तरह पक्ष लेती हैं। उनकी एक दोस्त और अमेरिकी कांग्रेस सांसद प्रमिला जयपाल से पिछले साल दिसंबर में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मिलने से इनकार कर दिया था क्योंकि उन्होंने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर में लगाए गए सभी प्रतिबंधों को हटाने की भारत से अपील करते हुए एक प्रस्ताव अमेरिकी कांग्रेस में पेश किया था। जयशंकर ने कहा था कि उन्हें जयपाल और उनके जैसे अन्य लोगों से मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इस पर हैरिस ने ट्वीट किया, ‘किसी भी विदेशी सरकार का कांग्रेस को यह बताना गलत है कि कैपिटल हिल की बैठकों में सदस्यों को किस चीज की अनुमति दी जाए।’ उन्होंने यह भी कहा कि वह जयपाल के साथ खड़ी हैं।
अमेरिका के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि हैरिस को अश्वेत उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जा रहा है ताकि अश्वेत आंदोलन के मौजूदा माहौल में बाइडन की संतुलित नजर आए।

First Published : August 12, 2020 | 11:29 PM IST