पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोयला क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को अनुमति देने का विरोध किया है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने सरकार से इस फैसले पर फिर से विचार करने को कहा है।
पत्र में उन्होंने कहा है कि इस समय पूरी दुनिया का ध्यान अक्षय ऊर्जा और टिकाऊ ऊर्जा स्रोतों पर है, ऐसे में जैसा कि केंद्र सरकार अनुमान लगा रही है, इस क्षेत्र में उतना विदेशी निवेश आकर्षित होने की संभावना नहीं है। साथ ही उन्होंने कहा कि इससे विदेश से भारत में किसी तकनी के हस्तांतरण की भी राह नहीं खुलने वाली है।
बनर्जी ने पत्र में लिखा है, ‘इस नीति से न तो एफडीआई आने की संभावना है, और न ही ऐसी तकनीक या ज्ञान आएगा, जिस तक हमारी पहुंच नहीं है। हाल की धारणा से साफ पता चलता है कि वैश्विक निवेशक कोयला खनन की तुलना में अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं में रुचि ले रहे हैं। दरअसल शोध से पता चलता है कि करीब 100 प्रतिशत वैश्विक वित्तीय संस्थान कोयले में निवेश से हट रहे हैं। ऐसे में कोयले में एफडीआई केवल शोरगुल है।’
उदाहरण के लिए दुनिया की सबसे बड़ी फंड प्रबंधक 7 लाख करोड़ डॉलर की ब्लैकरॉक ने थर्मल कोल से अपना सभी निवेश वापस लेने का फैसला किया है। वहीं 52 अरब डॉलर की ऑस्ट्रेलिया की दिग्गज हेक्सा ने थर्मल कोल से अपना निवेश निकाला है और 2050 तक अपना पूरा निवेश शून्य उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में करने को प्रतिबद्धता जतार्ई है। बनर्जी ने कहा है कि कोयला क्षेत्र में एफडीआई आत्मनिर्भर भारत की योजना के भी विरुद्ध है क्योंकि इससे कोयला क्षेत्र की सरकारी दिग्गज कोल इंडिया की क्षमता कम होगी, जो दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है और उसके पास 31,000 करोड़ रुपये नकदी है और 2018-19 में कंपनी ने 27,000 करोड़ रुपये कमाए थे। इसका देश के कोयला बाजार पर 80 प्रतिशत नियंत्रण है। बहरहाल कोल इंडिया का विचार है कि विदेशी कंपनियों के भारत में आने और उनके भारत में उत्पादन शुरू करने से आयात पर निर्भरता घटाने में मदद मिलेगी।