देश के सबसे प्रतिष्ठित अर्जुन टैंक के बारे में सेना की राय रक्षा मामलों पर गठित स्थायी संसदीय समिति को रास नहीं आई है।
समिति ने कल संसद में पेश अपनी 29वीं रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है कि सेना की ओर से अर्जुन टैंक की क्षमता पर जो सवाल उठाए गए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। दरअसल, सेना ने समिति के समक्ष कहा था कि ठंड के दिनों में जब अर्जुन टैंक का परीक्षण किया गया, तो यह अपनी क्षमता पर खरा नहीं उतरा। हालांकि समिति इस बात से सहमत नहीं है।
बिजनेस स्टैंडर्ड को समिति के तीन सदस्यों ने बताया कि अर्जुन टैंक की क्षमता को लेकर सेना की ओर से जो सवाल उठाए गए हैं, वे स्वीकार करने योग्य नहीं हैं। दरअसल, वर्ष 2007-08 की सालाना रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय ने खुद अर्जुन टैंक की तमाम खूबियों का जिक्र किया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि अर्जुन टैंक अपने तरह का अनूठा टैंक है और इसकी तकनीक टी-72 से कहीं बेहतर है।
यह विदेशी टैंकों से तकरीबन 6 से 8 करोड़ रुपये सस्ता भी है। इसकी मारक क्षमता टी-72 और टी-90 से भी सटीक है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया था कि अर्जुन टैंक को परीक्षण के दौरान 60,000 किलोमीटर तक चलाया गया है और इससे करीब 8,000 राउंड फायर भी किए गए हैं, लेकिन टैंक में किसी तरह की समस्या नहीं आई।
इसके बाद सेना की ओर से अर्जुन टैंक की क्षमता पर उंगली उठाना सही प्रतीत नहीं होता है। यही वजह है कि समिति के अध्यक्ष बालासाहेब विखे पाटिल और रक्षा सचिव के साथ-साथ समिति के अन्य सदस्य इस बात पर सहमत हैं कि भारतीय टैंक के भविष्य को लेकर एक स्पष्ट नीति बनाई जानी चाहिए। दरअसल, समिति के सदस्यों का मानना है कि सेना रूस के टैंक टी-72 और टी-90 का पक्ष ले रही है, यही वजह है कि वह अर्जुन टैंक की क्षमता को कम आंक रहे हैं।
समिति ने रिपोर्ट में कहा है कि सेना की ओर अर्जुन टैंक के बारे में भ्रामक तथ्य पेश किए गए हैं। दरअसल, सेना की ओर से बताया गया है कि अभी टैंक का परीक्षण जारी है, जबकि सच तो यह है कि सेना ने 2006 की गर्मियों में इसका परीक्षण करने के बाद कहा था कि अर्जुन टैंक की मारक क्षमता वाकई सटीक है। जहां तक परीक्षण की बात है, तो पोखरण में इसके कल-पुर्जे, ईंधन और लुब्रिकेंट आदि की जांच चल रही है।
स्थायी समिति के समक्ष सेना ने कहा कि परीक्षण के दौरान चार बार टैंक का इंजन फेल हो गया था, जोकि सही नहीं है। परीक्षण से जुड़े सूत्रों ने बताया कि समस्या गियर बॉक्स में आई थी, जिसे जर्मनी की कंपनी रेंक एजी ने बनाया था। वैसे, टैंक को 2000 किलोमीटर तक चलाने पर चार हाइड्रो-न्यूमैटिक सस्पेंशन में लीकेज की समस्या आई थी।
हालांकि अर्जुन टैंक को विकसित करने वाली संस्था सेंट्रल वीइकल आर ऐंड डी लैबोरेटरी का कहना है कि 2000 किलोमीटर तक चलाने के बाद सस्पेंशन की सर्विस जरूरी है और सामान्यत: इसे लीकेज से पहले ही बदल देना चाहिए। स्थायी समिति का कहना है कि नौसेना देश में निर्मित युद्ध पोत को स्वीकार कर रही है, लेकिन थल सेना यह चाहती है कि अर्जुन टैंक से जुड़ी सभी समस्याओं को डीआरडीओ दूर करे।