भारतीय बंदरगाहों पर पोतों से माल उतारने में लगने वाला समय कम करने की कवायद जारी है।
इस सिलसिले में 12 बड़े घरेलू बंदरगाहों की 60,000 करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना है। अभी इन बंदरगाहों की कार्गो हैंडलिंग क्षमता 51 करोड़ 90 लाख टन है जिसे दोगुना कर 1 अरब 20 लाख टन किया जाएगा। इसे पूरा करने में चार साल का वक्त लग सकता है।
अभी इन बंदरगाहों में माल उतारने में लगने वाला समय यानी टर्नअराउंड टाइम तीन से साढ़े तीन दिन है जिसे घटाकर 12 से 14 घंटे करने की योजना है।हांगकांग में टर्नअराउंड समय तकरीबन 10 घंटे और कोलंबो में 16.5 घंटे है।
भारतीय अधिकारी मानते हैं कि यहां के बंदरगाहों में बर्थ की कमी है। गुजरात के कांडला बंदरगाह पर, जहां देश के कुल नौवहन ट्रैफिक का नियंत्रण होता है, का टर्नअराउंड समय वर्ष 2007-08 के मुताबिक 3.26 दिन है। किसी जहाज को अपनी बर्थ पाने के लिए औसतन 1.29 दिन इंतजार करना पड़ता है। क्षमता बढाने के लिए चार ड्राई कार्गो बर्थ और चार अपतटीय बर्थ बनाने की योजना बनाई जा रही है।
ड्राई कार्गो से प्रतिवर्ष 80 लाख टन की ढुलाई और अपतटीय बर्थ से दो करोड़ टन की ढुलाई करने की टयूना बंदरगाह की योजना है। कांडला पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रवीण अग्रवाल कहते हंर कि अगर यह प्रोजेक्ट कामयाब होता है तो बर्थ के लिए जहाजों के इंतजार करने का समय शून्य हो जाएगा। विदित है कि बर्थ के लिए जो इंतजार करना पड़ता है, उससे टर्नअराउंड समय में काफी वृद्धि हो जाती है। उन्होंने कहा कि इससे उत्पादकता में बढाेतरी होगी और टर्नअराउंड समय में गिरावट आएगी।
जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) का भी मानना है कि इस प्रोजेक्ट की कामयाबी से टर्नअराउंड समय में कमी आएगी। 2007-08 में इस पोर्ट पर टर्नअराउंड समय 24 घंटे रहा है। वैसे इस पोर्ट पर दूसरे और तीसरे कंटेनर का टर्नअराउंड समय क्रमश: 20 और 18 घंटे रहा है। इन कंटेनर को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी निजी कंपनियों के हाथ में है और इसे नई तकनीक, नए उपकरण और अधिक क्रियाशील दक्षता के साथ नियंत्रित किया जाता है।
यही वजह है कि इसका टर्नअराउंड समय कम होता है। केपीएमजी एडवाइजरी सर्विस लि. के कार्यकारी निदेशक अरविंद महाजन कहते हैं कि भारतीय बंदरगाहों का टर्नअराउंड समय वैश्विक संदर्भ में एकाएक बहुत कम नहीं हो पाएगा। लेकिन कुछ ऐसे बंदरगाह जहां नए टर्मिनल लगाए जा रहे हैं, वहां हम उम्मीद कर सकते हैं कि टर्नअराउंड समय घटकर 8, 10 या 12 घंटे रह जाए।
पीआईएनसी के लॉजिस्टिक विश्लेषक सैयद सगीर मानते हैं कि सोची समझी योजनाओं से अगर इन बंदरगाहों पर यातायात को नियंत्रित किया जाए तो इसके टर्नअराउंड समय में कमी आनी चाहिए। हम वैश्विक मानदंड को तो हासिल नहीं क र सकते लेकिन अगर टर्नअराउंड समय में कमी हो जाएगी तो हम सामान ज्यादा से ज्यादा आवाजाही को आकर्षित कर सकते हैं।
जेएनपीटी बीपीसीएल के साथ बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (बीओटी) के आधार पर चौथा कंटेनर बनाने की योजना बना रहा है। पोर्ट अपने बर्थ को भी 330 मीटर करने जा रहा है ताकि बड़े जहाजों को रखा जा सके। इसकी योजना मुख्य चैनल और जेएन पोर्ट चैनल को ज्यादा गहरा और ज्यादा चौडा करने की भी योजना है।
चेन्नई पोर्ट भी बीओटी आधार पर एक मेगा टर्मिनल बनाने की योजना बना रहा है जबकि कोलकाता बंदरगाह हल्दिया डॉक कॉम्प्लेक्स पर दो बर्थ और एक जेट्टी बनाने की योजना बना रहा है। कोलकाता बंदरगाह डायमंड हार्बर पर चार जेट्टी बनाने की भी सोच रहा है। एन्नोर पोर्ट एक कोयला लौह अयस्क और एक एलएनजी टर्मिनल बनाने की योजना बना रहा है।