क्या है क्रीमी लेयर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 9:10 PM IST

क्रीमी लेयर शब्द पहली बार 1992 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में आया। यह फैसला मंडल आयोग की अनुशंसा के मुताबिक केंद्र सरकार की नौकरियों में पिछड़ी जाति के 27 प्रतिशत आरक्षण पर आया था।


सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का मतलब था कि पिछड़ी जातियों के संपन्न तबके (क्रीमी लेयर) को आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए। न्यायालय ने क्रीमी लेयर निर्धारित करने का फैसला राज्यों पर छोड़ दिया था।


ज्यादातर राज्यों ने क्रीमी लेयर के लिए कुछ मानदंड निर्धारित किए लेकिन केरल जैसे कुछ राज्यों ने ऐसा नहीं किया। सर्वोच्च न्यायालय ने 1992 के फैसले में क्रीमी लेयर निर्धारित किए जाने के कु छ सिध्दांत भी बताए थे।


इसमें संवैधानिक पदों पर काम कर रहे पदाधिकारी जैसे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों और संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से सेवाएं दे रहे लोगों के बच्चों के साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों के समूह-ए और बी क्लास वन और क्लास टू अधिकारियों को भी बाहर रखे जाने का प्रावधान होना चाहिए।


साथ ही निजी क्षेत्र में काम कर रहे कुछ पदाधिकारियों के आश्रितों क ो भी इससे बाहर रखे जाने की अनुसंशा की गई थी। कुछ संपत्ति के आधार पर प्रतिबंध भी शामिल है, जैसे सिंचित और असिंचित कृषि और बागवानी करने वाले उन लोगों के बच्चों को लाभ से वंचित रखे जाने की बात थी जिनकी वार्षिक आमदनी 2.5 लाख रुपये से ज्यादा हो।


इसके साथ ही डॉक्टरों, इंजिनियरों, डेंटिस्ट, चार्टर्ड एकाउंटेंट, आईटी कंसल्टेंट, मीडिया प्रोफेशनल्स, लेखकों, और स्पोर्टस प्रोफेशनल्स को भी क्रीमी लेयर में शामिल किया गया था। राज्य सरकारों ने इन सुझावों को ध्यान में रखते हुए क्रीमी लेयर तैयार किया था, जिसमें कुछ छूट भी दी गई। इसके बारे में स्पष्टीकरण भी दिया।

First Published : April 10, 2008 | 10:53 PM IST