दिल्ली की एक अदालत ने आज नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की पूर्व प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी चित्रा रामकृष्ण को सात दिन की सीबीआई हिरासत में भेज दिया।
सीबीआई ने रविवार की रात रामकृष्ण को -लोकेशन मामले में गिरफ्तार कर आज दिल्ली की एक अदालत के समक्ष पेश किया था। सीबीआई ने आज एनएसई के पूर्व समूह परिचालन अधिकारी आनंद सुब्रमण्यन की हिरासत को भी 9 मार्च तक बढ़वा लिया। सुब्रमण्यन की 10 दिनों की हिरासत रविवार को समाप्त हो गई थी।
एक आधिकारिक सूत्र ने पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘रामकृष्ण और सुब्रमण्यन से एकसाथ पूछताछ कर को-लोकेशन मामले में और अधिक जानकारी जुटाई जाएगी।’
ये गिरफ्तारियां को-लोकेशन घोटाला से संबंधित मामले में हुई हैं जिसके लिए मई 2018 में एफआईआर दर्ज की गई थी। तब देश के सबसे बड़े स्टॉक एक्सजेंज में अनियमिततताओं के बारे में ताजा घटनाक्रम सामने आए थे। सीबीआई ने इससे पहले रामकृष्ण, सुब्रमण्यन और एनएसई के पूर्व मुख्य कार्याधिकारी रवि नारायण से पूछताछ की थी। पिछले महीने आई भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि रामकृष्ण ने एनएसई में 2013 से 2016 तक हिमालय में रहने वाले किसी योगी की सलाह पर प्रमुख निर्णय लिए थे। योगी से रामकृष्ण की कभी मुलाकात नहीं हुई थी। योगी ने रामकृष्ण को सुब्रमण्यन को समूह परिचालन अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया था।
सीबीआई की चार साल पुरानी एफआईआर मुख्य तौर पर ओपीजी सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक संजय गुप्प्ता के खिलाफ थी। इसमें उसके बहनोई अमन कोकराडी और एनएसई द्वारा नियुक्त डेटा विशेषज्ञ और शोधकर्ता अजय शाह के भी नाम थे। इसके अलावा विवाद में भूमिका के लिए एनएसई और सेबी के अन्य अज्ञात अधिकारियों के भी नाम एफआईआर में शामिल थे।
जून 2010 और मार्च 2014 के बीच एनएसई ने अपनी कोलो सुविधा में तथाकथित टिक बाई टिक (टीबीटी) आर्किटेक्चर को काम पर रखा था। टीबीटी ने क्रमवार तरीके से डेटा को फैलाया जिसमें उसने कोलो सर्वर से पहले जुड़ चुके ट्रेडिंग सदस्यों को प्रमुखता दी थी।
व्यवस्था का लाभ उठाते हुए ओपीजी सिक्योरिटीज ने एनएसई के कुछ चिह्नित कर्मचारियों की मिलीभगत से कई बार एक्सचेंज प्रणाली तक सबसे पहले पहुंच हासिल किए। यह मामला केन फोंग नाम के मुखबिर के जरिये प्रकाश में आया जिसने जनवरी, अगस्त और अक्टूबर, 2015 में तीन शिकायती पत्र सेबी के पास भेजे थे जिसके बाद नियामक ने इस मामले में कई जांचें और फॉरेंसिक ऑडिट आरंभ किए।
अप्रैल 2019 में सेबी ने एक्सचेंज को अपनी कोलो सुविधा में अनियमितताओं के लिए 2014 से 12 फीसदी ब्याज के साथ 625 करोड़ रुपये जमा कराने का निर्देश दिया। इन अनियमितताओं के तहत कुछ निश्चित ब्रोकरों को एक्सचेंज में अनुचित पहुंच प्रदान की गई थी। सेबी ने एक्सचेंज सर्वर के दुरुपयोग के दौरान संचालन के स्तर पर नियुक्त रहे नारायण और रामकृष्ण को एक निश्चित अवधि के लिए अपने वेतन का एक चौथाई जमा कराने के लिए भी कहा था।
बाजार नियामक ओपीजी सिक्योरिटीज, गुप्ता और तीन अन्य को अप्रैल 2014 से सालाना 12 फीसदी ब्याज के साथ 15.6 करोड़ रुपये जमा कराने का निर्देश दिया था। इन सभी ने आदेश के खिलाफ प्रतिभूति अपील अधिकरण का रुख किया था जहां पर फिलहाल मामले की सुनवाई चल रही है।