सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड के पारिवारिक संपत्ति विवाद मामले में यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश दिया, जहां किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड के सीएमडी संजय किर्लोस्कर ने बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी और मामले में मध्यस्थता का निर्देश देने का आग्रह किया था। सर्वोच्च न्यायालय का यथास्थिति बरकरार रखने का फैसला केबीएल मामले में पुणे की दीवानी अदालत में चल रही कार्यवाही पर भी लागू होगा, जहां पारिवारिक वसीयत के उल्लंघन पर क्षतिपूर्ति की मांग की गई है।
इस मामले के पक्षकारोंं को मध्यस्थता की संभावना तलाशने की सलाह देते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमना और न्यायमूर्ति सूर्य कांत के पीठ ने संजय किर्लोस्कर की अपील पर नोटिस जारी किया और उन्हें छह हफ्ते के भीतर जवाब देने को कहा।
अदालत ने किर्लोस्कर बंधुओं संजय व अतुल से कहा कि वह संपत्ति को लेकर विवाद निपटाने के लिए मध्यस्थता की संभावना तलाशे। पीठ ने कहा, हम दोनों न्यायाधीशों को लगता है कि यह साख वाले परिवारों व कंपनियों में से एक है। हमें लगता है कि मध्यस्थता से मामला सुझलाया जाना चाहिए, जो कंपनी के बेहतर हित मेंं है।
पीठ ने कहा, आप जानते हैं कि आप दीवानी अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। मैं सिस्टम पर टिप्पणी नहीं करना चाहता। सभी वकील एक साथ बैठकर मामला सुलझाने का रास्ता निकाल सकते हैं और अगर आप बाहरी सहायता चाहते हैं तो हम अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकते हैं। आप क्यों अनावश्यक रूप से कानूनी लड़ाई लडऩा चाहते हैं। आपके पास वैकल्पिक समाधान हो सकता है। आप सभी को चाहने वालेपारिवारिक मित्र निश्चित रूप से होंगे और वे मध्यस्थता कर सकते हैं।
अपील में कहा गया है कि उच्च न्यायालय का आदेश तथ्यात्मक व कानूनी रूप से स्वीकार करने योग्य नहीं है और इसमें गंभीर तथ्यात्मक व कानूनी खामियां और असत्य नतीजे हैं।
किर्लोस्कर परिवार के सदस्य साल 2009 में डीड ऑफ फैमिली सेटलमेंट (डीएफएस) में शामिल हुए थे। अपील में कहा गया है, डीएफएस के मुताबिक किर्लोस्कर इंस्टिट््यूट ऑफ एडवांस्ड मैनेजमेंट स्टडीज और किर्लोस्कर फाउंडेशन से जुड़े विवाद आमसहमति से निपटाए जाने चाहिए और अगर इस पर आमसहमति न हो तो इसे दो मध्यस्थों अनिल अलवानी और सीएच नानीवाडेकर के सामने रखा जाना चाहिए। अगर उनकी राय अलग-अलग हो तो इस विवाद को तीसरे मध्यस्थ श्रीकृष्म इनामदार को संदर्भित किया जाना चाहिए।
अपील में कहा गया है, डीएफएस में स्पष्ट है कि सिर्फ दोनों संस्थानों से संबंधित विवाद ही मध्यस्थ को संदर्भित किया जाएगा, न कि अन्य विवाद। डीएफएस का अन्य उपबंध कहता है कि परिवार का कोई भी सदस्य कारोबार में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा नहीं करेगा। उदाहरण के लिए अगर एक भाई पंप बनाता है तो दूसरा उस कारोबार में नहीं उतरेगा।
केबीएल के मुताबिक, इस उपबंध का राहुल व अतुल ने उल्लंघन किया है, जिसने ला गज्जर मशीनरीज प्राइवेट लिमिटेड के नाम से पंप बनाने वाली कंपनी में हिस्सेदारी ली है। केबीएल ने इससे पहले पुणे की दीवानी अदालत में मामला दायर कर इस करार के उल्लंघन पर 750 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति मांगी थी।