दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली के तहत राष्ट्रीय मुनाफाखोरी-रोधी प्राधिकरण की संवैधानिक वैधता के मामले में बहुप्रतिक्षित सुनवाई को 4 जनवरी तक के लिए टाल दिया।
इसके खिलाफ दाखिल करीब 50 याचिकाओं में हिंदुस्तान यूनिलीवर, पतंजलि, जुबिलैंट फूडवक्र्स, रेकिट बेंकिजर, जॉन्सन ऐंड जॉन्सन, फिलिप्स और सबवे जैसी बड़ी कंपनियों की याचिकाएं लंबित हैं।
मामले पर सुनवाई टलने की वजह यह रही कि एनएए के खिलाफ उठे 48 प्रश्नो में से कितने प्रश्नों पर सुनवाई की जाए, इसको लेकर कोई सहमति नहीं बन पाई। ज्यादातर याचिकाकर्ताओं के वकील और खेतान ऐंड कंपनी लिमिटेड में पार्टनर अभिषेक रस्तोगी ने कहा कि अदालत सभी प्रश्नों को सुनने का निर्णय लिया और महसूस किया कि मामले पर सुनवाई तीन से चार हफ्ते बाद हो सकती है।
रस्तोगी ने कहा, ‘एक ओर जहां यह अच्छी बात है कि अदालत सभी मुद्दों पर व्यापक सुनवाई करने के लिए सहमत हो गई है, जहां तक प्रावधानों के संवैधानिक पहलू पर निर्णय लेने की बात है तो स्पष्ट रूप से सूची को संक्षिप्त किया जा सकता है।’
याचिकाओं की संख्या को देखते हुए, अदालत ने पहले प्रत्येक याचिकाकर्ता को पांच पृष्ठों में अपनी प्रस्तुति दाखिल करने का निर्देश दिया था।
सुनवाई के आरंभिक चरण में, अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि प्राधिकरण को चुनौती देने वालों और केंद्र सरकार के बीच उठाए जाने वाले मुद्दों पर किसी प्रकार की सहमति नहीं है। 48 मुद्दों में से केंद्र सरकार ने केवल 14 को जरूरी बताया है।
क्या मुनाफाखोरी रोधी तंत्र संविधान में कानून की गुणवत्ता के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, क्या यह कीमत नियंत्रण करता है, क्या न्यायिकसदस्य की अनुपस्थिति में एनएए की स्थापना असंवैधानिक है, क्या मुनाफाखोरी पता करने के लिए पूर्व निर्धारित तरीके का अभाव और इसे मामला दर मामला के आधार पर तय करना मनमाना और अतार्किक है जैसे प्रश्न एनएए के खिलाफ उठाए जा रहे कुछ महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में शामिल हैं।