दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि संबंधित करदाता की मृत्यु होने पर उसके कानूनी उत्तराधिकारियों की बाध्यता नहीं है कि वे आयकर विभाग को इसकी सूचना दें। न्यायालय ने कहा, ‘न्यायालय का विचार है कि वैधानिक नियम न होने की स्थिति में यह जिम्मेदारी करदाता के कानूनी प्रतिनिधियों पर नहीं डाली जा सकती कि वह करदाता की मृत्यु के बारे में आयकर विभाग को सूचना दे।’
इसमें कहा गया है कि कुल मिलाकर यह मामला बन सकता है कि मामले में कानूनी प्रतिनिधि मृत करदाता से अलग है या मृत करदाता ने अपनी पूरी संपत्ति परोपकार के लिए वसीयत की है।
न्यायालय ने कहा, ‘साथ ही पैन रिकॉर्ड अद्यतन था या नहीं या विभाग कानूनी प्रतिनिधियों के बारे में जानता था या नहीं, इसका कोई मतलब नहीं है।’
न्यायालय के सामने एक मसला आया था, जिसमें कर विभाग ने मार्च 2019 में एक व्यक्ति को नोटिस भेजा था और उसमें रिटर्न में कुछ आमदनी स्पष्ट न होने संबंधी जानकारी मांगी गई थी। जिस व्यक्ति को नोटिस भेजा गया था, वह दिसंबर 2018 में मर चुका था। उसके बाद विभाग ने मृत व्यक्ति को नोटिस भेजा कि क्यों न इस मामले में जुर्माना लगाया जाए।
यह जानने पर कि करदाता की मृत्यु हो चुकी है, कर अधिकारी ने नवंबर 2019 में आदेश दिया कि करदाता पर जारी नोटिस का अनुपालन न करने के कारण मृत करदाता के उत्तराधिकारियों पर जुर्माना लगाया जाएगा।
इसी की सुनवाई करते हुए न्यायालय ने स्थिति साफ की है।
मामले की सुनवाई के बाद न्यायालय ने उपरोक्त व्यवस्था की और इस मामले में आकलन अधिकारी के सभी नोटिस और इससे संबंधित सभी आदेश रद्द कर दिए।
होस्टबुक्स लिमिटेड के संस्थापक कपिल राणा ने कहा, ‘कानूनी उत्तराधिकारी आकलन प्रक्रिया में पक्ष हो सकते हैं, जिसमें आकलन पहले ही शुरू हो चुका है या कानूनी उत्तराधिकारी ने अपने से मामले में पक्ष बनने की सहमति दी है।’
टैक्समैन के कर विशेषज्ञ नवीन वाधवा ने कहा कि अगर करदाता की कर दाखिल करने के पहले मृत्यु हो जाती है तो उसके कानूनी उत्तराधिकारी को आयकर रिटर्न दाखिले को लेकर सावधान रहना होगा। उन्होंने कहा, ‘अगर इस तरह के रिटर्न नहीं दाखिल हो पाते हैं तो आयकर विभाग से इस पर नोटिस आ सकता है। बहरहाल इस तरह के नोटिस करदाता के कानूनी उत्तराधिकारी के नाम होंगे, न कि मृत व्यक्ति के नाम पर।’