दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को 37 वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) मुनाफाखोरी याचिकाओं पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई की और मुनाफाखोरी प्रावधान की संवैधानिक वैधता को लेकर भारत के महाधिवक्ता को नोटिस जारी किया। इनमें जॉनसन ऐंड जॉनसन (जेऐंडजे), रैकिट बेंकिजर (आरबी), हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल), पतंजलि, फिलिप्स और आईएफबी द्वारा पेश की गई याचिकाएं शामिल हैं।
उच्च न्यायालय के पीठ ने याचियों को सेंट्रल जीएसटी (सीजीएसटी) ऐक्ट की धारा 171 की संवैधानिक वैधता पर संयुक्त रूप से सवालों को अंतिम रूप देने का निर्देश दिया। इस धारा में कहा गया है कि किसी वस्तु या सेवा की आपूर्ति पर कर दर में किसी तरह की कटौती या इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ प्राप्तकर्ता को कीमतों में कमी के रूप में दिया जाना चाहिए।
मुनाफाखोरी के मामले से जुड़े सवालों की सूची याचियों द्वारा सौंपे जाने की जरूरत होगी।
पीठ ने मौखिक तौर पर संकेत दिया है कि वह संवैधानिक मुद्दों पर कानून के सवालों पर पहले निर्णय लेगा और मुनाफाखोरी प्रावधानों की व्याख्या निर्णय पर आधारित होगी। उसके बाद, यदि जरूरत हुई तो हरेक मामले में व्यक्तिगत तौर पर तथ्यात्मक मुद्दों पर निर्णय लिया जाएगा।
इस मामले की सुनवाई 3 नवंबर 2020 तक स्थगित कर दी गई है। इन कंपनियों ने सीजीएसटी ऐक्ट
और अन्य संबंधित कानूनों में मुनाफाखोरी की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।
केपीएमजी में पार्टनर हरप्रीत सिंह ने कहा, ‘यह सबसे ज्यादा विचार-विमर्श वाली कार्रवाइयों में से एक है, क्योंकि इस मामले का परिणाम मुनाफाखोरी प्रावधानों के पालन के संदर्भ में उद्योग के लिए आगे की राह निर्धारित कर सकता है और इससे उनकी प्रस्तावित विपणन रणनीति भी प्रभावित हो सकती है।’
मुनाफाखोरी से संबंधित सात याचिकाओं पर बहस कर रहे खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर अभिषेक ए रस्तोगी ने कहा, ‘जहां अदालत शुरू में सीजीएसटी ऐक्ट की धारा 171 की संवैधानिक वैधता पर निर्णय लेगी, वहीं मुनाफाखोरी की मात्रा के निर्धारण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा और इसलिए प्रत्येक विशिष्ट याचिका के लिए तर्क पेश किया जाएगा। प्रत्येक याचिका में ये तथ्य वास्तविक मुनाफाखोरी तय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।’
राष्ट्रीय मुनाफाखोरी प्राधिकरण (एनएए) ने कम जीएसटी का लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिए जाने की वजह से हिंदुस्तान यूनिलीवर पर 462 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। एफएमसीजी दिग्गज ने कीमतें घटाने के बजाय जीएसटी के तहत कम करों का लाभ देने के लिए अपने उत्पादों का ग्रामेज बढ़ा दिया था। एचयूएल को एनएए द्वारा निर्धारित जुर्माने के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय से रोक आदेश मिला था।