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विदेशी कंपनी से मप्र हाई कोर्ट में जाने को कहा सुप्रीम कोर्ट ने

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 12:11 AM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने विंध्या टेलीलिंक्स लिमिटेड के साथ विवाद में विदेशी कंपनी शिन-इत्सु केमिकल कंपनी लिमिटेड की अपील खारिज कर दी।
न्यायालय ने कहा कि विदेशी कंपनी अंतराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में जा सकती है। रेवा के जिला न्यायाधीश ने आर्बिट्रेशन ऐंड कंसीलिएशन ऐक्ट की धारा 45 के तहत विदेशी कंपनी की याचिका को ठुकरा दिया था। यह कंपनी सीधे सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई।
भारतीय कंपनी भी सर्वोच्च न्यायालय में चली गई और उसने यह कहते हुए इसकी अपील का विरोध किया कि उच्च न्यायालय द्वारा ठुकराए जाने के बाद विदेशी कंपनी सर्वोच्च न्यायालय में मामला नहीं चला सकती।
जब उच्च न्यायालय स्तर पर वैकल्पिक उपाय मौजूद है तो इसे अधीनस्थ अदालतों के आदेशों के खिलाफ अपील दायर करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय की विशेष अनुमति नहीं तलाशी जानी चाहिए। इस दलील को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
उसने इस बात पर जोर दिया कि इस कंपनी को सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का अधिकार नहीं है और अपील की सुनवाई के लिए विशेष अनुमति तभी दी जाएगी जब दोनों पक्षों के लिए मौजूद अन्य सभी उपाय समाप्त हो गए हों।
डीएलएफ पावर और सीसीएल का विवाद
डीएलएफ पावर लिमिटेड और सेंट्रल कोलफील्ड्स के बीच एक विवाद में सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों पक्षों को दर को दोबारा निर्धारित किए जाने के लिए नई दिल्ली में विद्युत अपीली न्यायाधिकरण से संपर्क करने को कहा है।
2007 में न्यायालय ने सीसीएल और डीएलएफ के बीच विद्युत खरीद समझौते के फॉर्मूले के आधार पर मैसर्स अर्न्स्ट ऐंड यंग को राजरप्पा और गिद्दी संयंत्रों के लिए वास्तविक पूंजी लागत निर्धारित करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि इस लागत की रिपोर्ट की प्रति झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग को दी जाए।
सीसीएल की शिकायत है कि यह रिपोर्ट सिर्फ डीएलएफ द्वारा भेजे गए दस्तावेजों के आधार पर ही तैयार की गई है। इसकी शिकायत को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा है कि हालांकि  दर निर्धारण में मूल्यांकन की प्रक्रिया जटिल है, इसलिए अगर यह मुद्दा ट्रिब्यूनल के समक्ष उठाया जाता है तो वह टैरिफ पर सीसीएल के दृष्टिकोण की सुनवाई करेगा।
एफडी पर ऋण का मामला
सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात को-ऑपरेटिव बैंकों के घोटाले में इंडियन बैंक द्वारा दायर याचिका में अपने फैसले को स्पष्ट किया है। इन सहकारी बैंकों ने सावधि जमा के रूप में बैंकों में रकम जमा की थी जिसके आधार पर इन्हें अंधाधुंध तरीके से ऋण दे दिया गया था।
जब यह घोटाला उजागर हुआ तो गुजरात उच्च न्यायालय ने एक समिति बनाई और सीबीआई को भी इस घोटाले की जांच में लगाया गया। पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय ने जमाकर्ताओं के हित में निर्देश जारी किए थे। एक ताजा आदेश में सर्वोच्च न्यायालय ने इंडियन बैंक से उन सहकारी बैंकों की पहचान करने को कहा जो सीबीआई जांच के दायरे में नहीं थे।
को-ऑपरेटिव जमाकर्ताओं को उनकी जमा परिपक्वता के बारे में सूचित किया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर इसे लेकर कोई विवाद नहीं है तो को-ऑपरेटिव जमाकर्ताओं को ऋण लेने की अनुमति दी जाएगी। अन्यथा इस विवाद पर संबद्ध फोरम या अदालत द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
मध्यस्थता की मंजूरी
सर्वोच्च न्यायालय ने नॉर्दर्न रेलवेज और निर्माण फर्म मैसर्स सिंह बिल्डर्स के बीच लगभग एक दशक पुराने विवाद में मध्यस्थ के तौर पर सेवानिवृत न्यायाधीश आर सी चोपड़ा की नियुक्ति को बरकरार रखा है। हालांकि इनके बीच समझौते में मध्यस्थता का क्लॉज शामिल था, लेकिन रेलवे ने किसी मध्यस्थ की नियुक्ति नहीं की और जब मध्यस्थ की नियुक्ति की गई तो उसका अन्य जगह स्थानांतरण हो गया।
निर्माण फर्म मध्यस्थ की नियुक्ति की तलाश के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में चली गई। इसने इसके लिए जज को चुना। रेलवे ने इसके खिलाफ अपील दायर कर दी। न्यायालय ने अपील खारिज कर दी और मध्यस्थ की नियुक्ति पर अपनी सहमति जता दी।
अधिग्रहण के खिलाफ याचिका खारिज
सर्वोच्च न्यायालय ने एक आवासीय योजना के लिए प. बं. सरकार द्वारा किए जाने वाले भूमि अधिग्रहण के खिलाफ की गई अपील को ठुकरा दिया है। यह आवासीय योजना बंगाल पीयरलेस लिमिटेड द्वारा चलाई जानी थी।
कलकत्ता उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अधिग्रहण को यह कहते हुए गलत ठहराया था कि यह सार्वजनिक उद्देश्य के लिए नहीं है, बल्कि कंपनी की तिजोरी भरने के वास्ते है। बाद में उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के लिए है। सर्वोच्च न्यायालय ने खंडपीठ के इस फैसले को बरकरार रखा।

First Published : April 13, 2009 | 3:12 PM IST