उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के बीच तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमा पर किसानों के जमावड़े पर चिंता व्यक्त करते हुए गुरुवार को केंद्र से सवाल किया कि क्या ये किसान कोरोनावायरस संक्रमण से सुरक्षित हैं। न्यायालय ने कहा कि कोरोनावायरस पर अंकुश लगाने के लिए बने दिशानिर्देशों का पालन होना चाहिए। न्यायालय ने पिछले साल इस महामारी पर काबू पाने के लिए लागू हुए लॉकडाउन के दौरान आनंद विहार बस अड्डे और निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात के आयोजन में बड़ी संख्या में लोगों के एकत्र होने की घटना की सीबीआई जांच के लिए दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कोरोनावायरस से किसानों की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे,न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन के पीठ ने सुनवाई के दौरान केंद्र से कहा, ‘आपको हमें बताना चाहिए कि क्या हो रहा है। किसानों के आंदोलन से भी वैसी ही समस्या पैदा होने जा रही है। हमें नहीं मालूम कि क्या किसान कोविड से सुरक्षित हैं। वही समस्या फिर पैदा होने जा रही है।’ न्यायालय ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि क्या विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान कोविड-19 से सुरक्षित हैं। मेहता ने जवाब दिया, ‘निश्चित ही ऐसा नहीं है।’ मेहता ने कहा कि वह दो सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट दाखिल करके बताएंगे कि क्या किया गया है और क्या करने की जरूरत है।
यह याचिका अधिवक्ता सुप्रिय पंडिता ने दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि दिल्ली पुलिस बड़ी संख्या में लोगों को एकत्र होने से नहीं रोक सकी और निजामुद्दीन मरकज का मुखिया मौलाना साद अभी तक गिरफ्तारी से बच रहा है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ओम प्रकाश परिहार ने कहा कि मौलाना साद के बारे में केंद्र ने कोई बयान नहीं दिया है। इस पर पीठ ने परिहार से सवाल किया, ‘आपकी दिलचस्पी एक व्यक्ति में क्यों हैं? हम कोविड के मुद्दे पर हैं। आप विवाद क्यों चाहते हैं? हमारी दिलचस्पी है कि कोविड दिशानिर्देशों का पालन होना चाहिए। अदालत यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है कि कोविड संक्रमण फैले नहीं।’